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रुपरेखा : प्रस्तावना - उगादी 2021 - उगादी फेस्टिवल मनाने के पीछे का इतिहास - उगादी फेस्टिवल क्यों मनाया जाता है - उगादी उत्सव कैसे मनाया जाता है - उगादी पर्व का महत्व - उपसंहार।
प्रस्तावना -उगादी या जिसे समवत्सरदी युगादी के नाम से भी जाना जाता है दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। इसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक जैसे राज्यों में नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि वसंत आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह पर्व नयी फसल के आगमन का अवसर होता है।
वर्ष 2021 में उगादी या तेलुगू नया साल 13 अप्रैल मंगलवार को मनाया जायेगा। उगादी का पवित्र उत्सव आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में मनाया जाता है।
उगादी फेस्टिवल मनाने के पीछे का इतिहास काफी प्रचीन है और इस त्योहार को कई सदियों से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जा रहा है। दक्षिण भारत में चंद्र पंचाग को मानने वाले लोगो द्वारा इसे नव वर्ष के रुप में भी मनाया जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि इस पर्व की शुरुआत सम्राट शालिवाहन या जिन्हें गौतमीपुत्र शतकर्णी के नाम से भी जाना जाता है, उनके शासनकाल में हुआ था। यह दिन किसानों के लिए एक खास अवसर होता था क्योंकि इस समय उन्हें नयी फसल की प्राप्ति होती थी। यही कारण है कि उगादी के इस पर्व को कृषकों द्वारा आज भी सम्मान दिया जाता है। उगादी वह पर्व है जो हमें दर्शाता है कि हमें अतीत को पीछे छोड़कर आने वाले भविष्य पर ध्यान देना चाहिए और किसी तरह के असफलता पर उदास नही होना चाहिए बल्कि सकारात्मकता के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए। इस पर्व के दौरान वसंत अपने पूरे चरम पर होता है, जिससे मौसम काफी सुहावना रहता है। कई कथाओं के अनुसार इसी दिन ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना शुरु की थी और इसी दिन भगवान विष्णु ने मतस्य अवतार धारण किया था।
उगादी का पवित्र पर्व दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, इसे नववर्ष के आगमन के खुशी में मनाया जाता है। उगादी के पर्व को लेकर लोगों की कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं, लोगों के अनुसार शिवजी ने ब्रम्हा जी को श्राप दिया था कि कही भीं उनकी पूजा नही कि जायेगी, लेकिन आंध्रप्रदेश में उगादी अवसर पर ब्रम्हाजी की ही पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन ब्रम्हा जी ब्रह्माण्ड की रचना शुरु की थी। यही कारण है कि इस दिन कन्नड़ तथा तेलगु के लोगों द्वारा नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। कई कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु मतस्य अवतार में अवतरित हुए थे। ऐसा माना जाता है कि उगादि के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक भी हुआ था। इसके साथ ही इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।
चैत्र माह के पहले दिन में चैत्र नवरात्रि का आरंभ होता है, तो दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक जैसे राज्यों में चैत्र माह के पहले दिन उगादी त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को इन क्षेत्रों के नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। यह त्योहार आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तेलंगाना का प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस दिन को लेकर लोगो में काफी उत्साह रहता है और इस दिन वह सुबह उठकर अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं तत्पश्चात अपने घरों के प्रवेश द्वार को आम के पत्तों से सजाते हैं। उगादी के उत्सव पर लोग भगवान की मूर्तियों पर चमेली के फूल तथा मालाएं चढ़ाते हैं और विशेषकर ब्रम्हा जी की पूजा अवश्य करते हैं। इस दिन एक विशेष पेय बनाने की भी प्रथा है, जिसे पच्चड़ी नाम से जाना जाता है। पच्चड़ी नामक यह पेय नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ जैसे चीजों को मिलाकर मटके में बनायी जाती है। लोगों द्वारा इस पेय को पीने के साथ ही इसे आस-पड़ोस में भी बांटा जाता है। उगादी के दिन कर्नाटक में पच्चड़ी के अलावा बेवु-बेल्ला को भी लोगों द्वारा खायी जाती है। यह गुड़ और नीम के मिश्रण से बना होता है, जो हमें हमारे जीवन में दर्शाता है कि जीवन में हमें मीठेपन तथा कड़वाहट भरे दोनो तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ता है। इस दिन घरों में पुरणपोली तथा लड्डू जैसे कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं।
उगादी पर्व का दक्षिण भारत में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। इस त्योहार के समय वसंत ऋतु अपने पूरे चरम पर होती है। जिसके कारण मौसम काफी सुहावना रहता है, इसके साथ ही इस समय लोगो में नयी फसल को लेकर भी खुशी छायी रहती है। उगादी का यह पर्व हमें प्रकृति के और भी समीप ले जाने का कार्य करता है क्योंकि यदि इस त्योहार के दौरान पीये जाने वाले पच्चड़ी नामक पेय पर गौर करें तो यह शरीर के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक होता है और हमारे शरीर को मौसम में हुए परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करता है और हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है। इस दिन कोई नया काम शुरु करने पर सफलता अवश्य मिलती है। इसलिए उगादी के दिन दक्षिण भारतीय राज्यों में लोग दुकानों का उद्घाटन, भवन निर्माण का आरंभ आदि जैसे नये कार्यों की शुरुआत करते हैं।
उगादी पर्व के दिन को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता था। लोग इस विशेष पर्व पर अपने आस-पड़ोस के लोगो को खाने पर आमंत्रित किया करते है। उगादी के दिन पूजा-अर्चना करने की एक विशेष विधि होता है और इसका पालन करने से इस पर्व ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उगादी के दिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत होकर, हमें अपने शरीर पर बेसन तथा तेल का उबटन लगाकर नहाना चाहिए। उगादी के दिन हमें पच्चड़ी पेय का सेवन अवश्य करना चाहिए। यह पच्चड़ी पेय नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल तथा गुड़ को मिलाकर मटके में बनायी जाती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस अवसर पर बोवत्तु या फिर पोलेलु या पुरन पोली नामक व्यंजन बनाया जाता है। इसी व्यंजन को तेलंगाना में बोरेलु नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का पराठा होता है, जिसे चने के दाल, गेहुं के आंटे, गुढ़ और हल्दी आदि को पानी की सहायता से गूंथकर देशी में तलकर बनाया जाता है। इस व्यंजन को पच्चड़ी के साथ खाया जाता है। गंध, अक्षत, फूल और जल लेकर भगवान ब्रम्हा के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा करते है। घर में रंगोली या स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से घर में सकरात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस दिन सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर ब्रम्हा जी स्वर्ण मूर्ति स्थापित करेंगे तो आपको ब्रम्हा जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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