थाईपुसम पर्व पर निबंध

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थाईपुसम निबंध - Thaipusam 2022 - Thaipusam Festival In Hindi - Essay On Thaipusam In Hindi

रुपरेखा : प्रस्तावना - थाईपुसम तारीख - थाईपुसम मनाने के पीछे का इतिहास - कावड़ी अत्तम की कथा - थाईपुसम क्यों मनाया जाता है - थाईपुसम कैसे मनाते हैं - थाईपुसम त्यौहार का महत्व - उपसंहार।

प्रस्तावना -

थाईपुसम त्यौहार दक्षिण भारत में मनाया जाता है। यह दक्षिण भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। विश्व में भी इस त्यौहार का उत्स्व मनाया जाता है जैसे अमेरिका, श्रीलंका, अफ्रीका, थाइलैंड जैसे अन्य देशों में तमिल और केरल समुदाय द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार के दिन भगवान शिव जी के बड़े पुत्र मुर्गन की पूजा की जाती है। यह उत्सव तमिल कैलेंडर के अनुसार थाई माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्यौहार तमिल हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई के रुप में मनाया जाता है।


थाईपुसम कब है -

वर्ष 2022 में थाईपुसम का त्यौहार 18 जनवरी मंगलवार के दिन मनाया जायेगा ।


थाईपुसम मनाने के पीछे का इतिहास -

थाईपुसम मनाने के पीछे कई इतिहास जुड़ी हुई हैं। इसकी एक मुख्य कथा भगवान शिव के पुत्र मुर्गन या जिन्हे कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है। कथा के अनुसार,

एक बार देवों और असुरों में काफी भयकंर युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता कई बार दानवों से पराजित हो चुके थे। असुरों के द्वारा परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास जाते हैं और अपनी व्यथा सुनाते हैं। जिसके बाद भगवान शिव अपनी शक्ति से स्कंद नामक एक महान योद्धा को उत्पन्न करते है और उसे देवताओं का नायक नियुक्त करके असुरों से युद्ध करने भेजते हैं। तत्पश्चात देवता असुरों पर विजय पाने में कामयाब होते हैं। कालांतर में इन्हीं को मुर्गन (कार्तिकेय) के नाम से जाने जाना लगा। यह त्यौहार जीवन में किसी भी तरह के संकटों से मुक्ति पाने की शक्ति प्रदान करते हैं। थाईपुसम के त्यौहार का मुख्य उदेश्य लोगो को इस बात का संदेश देना है कि यदि हम अच्छे कार्य करेंगे और ईश्वर में अपनी भक्ति को बनाये रखेंगे तो हम हर संकटों, परेशानियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।


कावड़ी अत्तम की कथा -

थाईपुसम में कावड़ी अत्तम की कथा का बड़ा महत्व है। कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अगस्त ऋषि को दक्षिण भारत में दो पर्वत स्थापित करने का आदेश दिया। भगवान शिव के आज्ञानुसार उन्होंने शक्तिगीरी पर्वत और शिवगीरी हिल दोनो को एक जंगल में स्थापित कर दिए थे। तत्पश्चात जब इदुमंबन ने पर्वतों को हटाने के प्रयास किया तो, वह उन्हें उनके स्थान से हिला नही पाए । अंत में उन्होंने ईश्वर से सहायता मांगी और पर्वतों को ले जाने लगे। काफी दूर तक जाने के बाद वे थक गए और विश्राम करने के लिए वह दक्षिण भारत के पलानी नामक स्थान पर रूक गए । विश्राम के पश्चात जब वह पर्वतों को फिर से उठाना चाहा तो वह उन्हें फिर नही उठा पाया। बहुत कोशिश करने के बाद भी न उठा पाए तो वहां से गुजरते एक युवक से पर्वतों को उठाने में मदद करने के लिए कहा, लेकिन उस नवयुवक ने इंदुमबन की सहायता करने से इंकार कर दिया। जिसके पश्चात इंदुमबन और उस युवक में युद्ध छिड़ गया, कुछ देर यद्ध करने के बाद इंदुमबन को इस बात का अहसास हुआ कि वह युवक कोई और नही स्वयं भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय हैं। जिन्होंने अपने छोटे भाई गणेश से एक प्रतियोगिता में पराजित होने के बाद कैलाश पर्वत छोड़कर जंगलों में रहने लगे थे। इस भीषण युद्ध में इंदुमबन की मृत्यु हो जाती है, लेकिन इसके पश्चात भगवान शिव द्वारा उन्हें पुनः जीवित कर दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद इंदुबमन ने कहा था कि जो व्यक्ति भी इन पर्वतों पर बने मंदिर में कावड़ी लेकर जायेगा, उसकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। इसी के बाद से कावड़ी लेकर जाने की यह प्रथा प्रचलित हुई और जो व्यक्ति तमिलनाडु के पिलानी स्थित भगवान मुर्गन के मंदिर में कावड़ लेके जाता है, वह मंदिर में जाने से पहले इंदुमबन की समाधि पर जरुर जाता है। इस तरह कावड़ी अत्तम की कथा का बड़ा महत्व है और आज भी लोग कावड़ी लेकर जाने की यह प्रथा को कायम रखे हुए है।


थाईपुसम क्यों मनाया जाता है -

थाईपुसम का यह त्यौहार इतिहास में रचे कथाओं को याद दिलाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर और उसकी सेना का वध किया था। यहीं कारण है कि इस दिन को बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में यह विशेष त्यौहार मनाया जाता है। थाईपुसम का यह त्यौहार हमें बताता है कि हमारे जीवन में भक्ति और श्रद्धा का मतलब क्या होता है। जो हमारे जीवन में हर संकटों, परेशानियों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देती है।


थाईपुसम कैसे मनाते हैं -

थाईपुसम का यह विशेष त्यौहार थाई महीने के पूर्णिमा से शुरु होकर अगले दस दिनों तक चलता है। इस दौरान हजारों भक्त मुर्गन भगवान की पूजा करने के लिए मंदिरों में इकठ्ठा होते हैं। कई लोग ‘छत्रिस’ (एक विशेष कावड़) अपने कंधों पर लेकर मंदिरों की ओर जाते हैं। कुछ भक्त कावंड़ के रुप में मटके या दूध के बर्तन को ले जाते हैं। इस दौरान वह नृत्य करते हुए ‘वेल वेल शक्ति वेल’ का जाप करते हुए आगे बढ़ते हैं। भगवान मुर्गन के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा को प्रकट करने के लिए कुछ भक्तों अपने जीभ में सुई से छेद करके दर्शन करने जाते हैं। इस दौरान भक्तों द्वारा मुख्यतः पीले रंग की पोशाक पहनी जाती है और भगवान मुर्गन को पीले रंग के फूल चढ़ाये जाते हैं। कई लोग भगवान मुर्गन के लिए उपवास रखते हैं।


थाईपुसम त्यौहार का महत्व -

थाईपुसम त्यौहार का बड़ा महत्व है। यह ईश्वर के प्रति मानव की श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। यह दिन लोगों को श्रद्धा और शक्ति के प्रति अहसास दिलाता है। भगवान मुर्गन के प्रति अटूट श्रद्धा हमारे जीवन में नई खुशहाली लाने का कार्य करती है। यह दिन बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में देखा जाता है। इसके साथ ही थाईपुसम का यह त्यौहार विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है, इस दिन भगवान मुर्गन के भक्तों की इस कठोर भक्ति को देखने के लिए कई सारे विदेशी सैलानी भी आते है और इसकी प्रसिद्धि बढ़ने से यह भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का भी कार्य करता है।


उपसंहार -

थाईपुसम त्यौहार दक्षिण भारत में मनाया जाता है। यह त्यौहार तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। थाईपुसम का यह त्यौहार मुख्य रूप से भारत दक्षिण राज्यों और श्रीलंका आदि में मनाया जाता था, लेकिन आज सिंगापुर, अमेरिका, मलेशिया आदि जैसे विभिन्न देशों में रहने वाली तमिल समुदाय द्वारा भी इस त्यौहार को बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त कई तरह के कष्टों और दुखों का सामना करते हुए कावड़ लेके जाते है। वह भगवान की भक्ति में इतने लीन रहते हैं कि उन्हें किसी तरह की दर्द और तकलीफ नही महसूस होती है। पहले के अपेक्षा में अब काफी अधिक संख्या में भक्त कावड़ लेके भगवान को दर्शन पर जाते हैं और भगवान के प्रति अपने श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। थाईपुसम का यह त्यौहार लोगो में दिन-प्रतिदिन और भी लोकप्रिय होता जा रहा है।


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