मकर संक्रांति पर निबंध

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रुपरेखा: प्रस्तावना - मकर संक्रांति कब है - मकर संक्रांति मनाने के पीछे का इतिहास - मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है - मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं - मकर संक्रांति का महत्व - आज की मकर संक्रांति - उपसंहार।

प्रस्तावना -

मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व माना जाता है। पौष माह में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब ये पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है, जिसे भारत तथा नेपाल देश में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति को बिहार में तिल संक्रांत के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति को उत्तराखंड तथा गुजरात के कुछ क्षेत्रों में उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के पर्व पर किये गये दान कार्यों द्वारा अन्य दिनों के अपेक्षा सौ गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता। इसके साथ ही मकर संक्रांति का यह पर्व भारत भर में पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है।


मकर संक्रांति कब है -

वर्ष 2022 में मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी, शुक्रवार के दिन मनाया गया ।


मकर संक्रांति मनाने के पीछे का इतिहास -

मकर संक्रांति का पर्व खगोलीय गणना(Astronomical calculation) के अनुसार मनाया जाता है। छठवीं सदी के महान शासक हर्षवर्धन के शासनकाल में यह पर्व 24 दिसंबर को मनाया गया था। इसी तरह मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में यह पर्व 10 जनवरी के दिन मनाया गया था, क्योंकि प्रतिवर्ष सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट के देरी से होता है, इसलिए यह तिथि आगे बढ़ती रहती है और यहीं कारण है कि हर 80 वर्ष में इस त्योहार की तिथि एक दिन आगे बढ़ जाती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग किया था। इसके साथ ही इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने जाते हैं और शनिदेव मकर राशि के स्वामी भी हैं तो इसीलिए यह दिन मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही इस दिन गंगा स्नान के विशेष महत्व को लेकर भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा राजा भागीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए सागर में जा मिली थी। यहीं कारण हैं कि इस दिन गंगा स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है, खासतौर से पश्चिम बंगाल के गंगासागर में जहां इस दिन स्नान के लिए लाखों के तादाद में श्रद्धालु आते हैं और गंगा स्नान कर अपने सारे दुःख मिटाने की प्राथना करते है।


मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है -

मकर संक्रांति के पर्व को लेकर लोगों की कई मान्यताएं प्रचलित हैं जैसे कि, हिंदू धर्म के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहा जाता है और इन राशियों की संख्या कुल मिलाकर बारह हैं लेकिन इनमें मेष, मकर, कर्क, तुला जैसी चार राशियां सबसे प्रमुख हैं और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का यह विशेष पर्व मनाया जाता है। इस दिन हिंदू धर्म में काफी पुण्यदायी माना गया है और मान्यता है कि इस दिन किया जाने वाला दान अन्य दिनों के अपेक्षा कई गुना अधिक फलदायी होता है। मकर संक्रांति के दिन ही भारत में खरीफ (शीत ऋतु) के फसलों की कटाई की जाती है और क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए यह फसलें किसानों के आय है तथा उनके जीवन का एक प्रमुख दिन होता है।


मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं -

मकर संक्रांति उत्सव और आनंद का पर्व है। इस दिन भारत में खरीफ की नई फसल के स्वागत की तैयारी की जाती है। मकर संक्रांति त्योहार के दौरान लोगों में काफी प्रसन्नता और उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन देश के किसान भगवान से अपनी अच्छी फसलों के लिए आशीर्वाद मांगते है। इसलिए इसे फसलों और किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हर क्षत्रों में लोग अपने अपने तरीके से इस संक्रांति को मनाते है। कई लोग इस दिन लोग सुबह सर्वप्रथम स्नान करते हैं और उसके बाद दान कार्य करने घर से निकलते है। महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं एक दूसरे को तिल गुढ़ बांटते हुए “तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला” बोलती हैं। जिसका अर्थ होता है तिल गुढ़ लो और मीठा बोलो। भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मकर संक्रांति के पर्व में खिचड़ी खाकर मनाते है। बिहार में इस दिन बड़े अपने बच्चों को टिल गुड़ खिलाकर बुढ़ापे में सेवा करने की बात कहते है। पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर स्थान पर काफी विशाल मेला भी लगता है, जिसमें लाखों के संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होते हैं।


मकर संक्रांति का महत्व -

मकर संक्रांति का हमारे देश में बड़ा महत्व माना जाता है। मकर संक्रांति ही वह दिन है, जब गंगा जी राजा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी। इसलिए यह दिन गंगा स्नान के लिए काफी पवित्र माना गया है। इसके साथ ही इस दिन को उत्तरायण का विशेष दिन भी माना जाता है क्योंकि शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि उत्तरायण वह समय है, जब देवताओं के दिन का समय होता है। इसलिए इसे काफी पवित्र तथा सकरात्मक माना जाता है। यहीं कारण है कि यह दिन दान, स्नान, तप, तर्पण आदि जैसे कार्यों के लिए काफी पुण्य माना गया है और इस दिन दिया गया दान अन्य दिनों के अपेक्षा में सौ गुना अधिक फलित होता है। कहते है की जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान करता है, वह अपनी मृत्यु पश्चात जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।


आज की मकर संक्रांति -

आज हर पर्व के तरह मकर संक्रांति भी आधुनिकरण तरीके से मनाया जाने लगा है। पहले समय में इस दिन लोग खुले मैदानों या खाली जगहों पर पतंग उड़ाया करते थे। जिससे किसी तरह के दुर्घटना होने की संभावना नही रहती थी, लेकिन आज के समय में इसका विपरीत हो गया है। आज लोग खतरनाक मांझा का उपयोग कर के पशु-पक्षियों के लिए खतरा उत्पन करने लगे है। पहले लोग घर में कई तरह के पकवान, मिठाई थे और सभी परिवार एक साथ होकर इसका आनंद लेते थे परंतु आज हर कोई बाहर से खाना मंगवा कर तथा अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर के मकर संक्रांति का ये पावन पर्व को मनाने लगे है।


उपसंहार -

मकर संक्रांति एक पावन पर्व है जहां सभी लोग एकजुट होकर इस पर्व का आनंद लेते है। बच्चे मैदानों में तथा अपने छतों पर जाके पतंगबाजी का खेल खेलते है। घर की महिलाएं रंग-बिरंगे पकवान बनाते है और बड़े अपने आस-पड़ोस में दान धर्म का कार्य करते है। सचमुच मकर संक्रांति एक पावन पर्व है जिसे सब धूम-धाम से मनाते है।


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