ADVERTISEMENT
रुपरेखा : प्रस्तावना - पोंगल कब है - पोंगल मनाने के पीछे का इतिहास - पोंगल क्यों मनाया जाता है - पोंगल कैसे मनाते हैं - पोंगल का महत्व - उपसंहार।
प्रस्तावना -पोंगल हिंदु धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक पर्व है, इस पर्व को तमिल हिंदुओं द्वारा काफी उत्साह उमंग के साथ मनाया जाता है। यह पर्व फसल कटाई के उत्सव में मनाया जाता है। इस त्योहार को सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता है और इसके अंतर्गत समृद्ध प्राप्ति के लिए धूप, वर्षा और मवेशियों की आराधना की जाती है। इस पर्व को विदेशों में रहने वाले तमिलों प्रवासी तमिलों द्वारा काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
वर्ष 2022 में पोंगल का त्योहार 14 जनवरी शुक्रवार से लेकर 17 जनवरी सोमवार दिन तक मनाया जायेगा ।
पोंगल मनाने के पीछे का इतिहास है कि, एक बार मैदूर में कोवलन नाम का रहने वाला व्यक्ति अपनी पत्नी कण्णगी के कहने पर उसके पायलों को बेचने सुनार के पास गया। सुनार ने शंका के आधार पर राजा को बताया कि कोवलन जो पायल बेचने आया है वह रानी के चोरी हुए पायल से काफी मिलता-जुलता है। इस बात पर राजा ने बिना किसी जांच के ही कोवलन को फांसी की सजा दे दी। अपनी पति की मृत्यु से क्रोधित होकर कग्गणी ने भगवान शिव का घोर तप किया और उनसे दोषी राजा और उसके राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगा। जब राज्य की जनता को घटना के बारे में पता चला तो सभी डर गए और फिर राज्य की सभी महिलाओं मिलकर किलिल्यार नदी के किनारे माँ काली की आराधना की और उनके प्रसन्न होने पर उनसे अपने राज्य तथा राजा की रक्षा हेतु कग्गणी के अंदर दया भाव जगाने की प्रर्थना की। महिलाओं के आराधना से प्रसन्न होकर माँ काली ने कण्णगी में दया भाव जागृति किया और उस राज्य के राजा तथा प्रजा की रक्षा की। तभी से पोंगल के आखिरी दिन को कन्या पोंगल या कन्नम पोंगल के रुप में मनाकार काली मंदिर में काफी धूम-धाम के साथ पूजा की जाती है और पोंगल मनाया जाता है।
पोंगल त्यौहार थाई महीने के पहले दिन मनाया जाता है, यह महीना तमिल महीने का प्रथम दिन होता है। तमिल परिवारों के लिए थाई का यह महीना जीवन में एक नया परिवर्तन पैदा करता है। यह पर्व सर्दियों के फसलों के लिए, ईश्वर को दिये जाने वाले धन्यवाद के रुप में मनाया जाता है। पोंगल का यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व में प्रकृति को विशेष धन्यवाद दिया जाता है। इसके साथ ही पोंगल के पर्व पर सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाया जाता है जिसे पोंगल व्यंजन के नाम से जाना जाता है और इसके साथ ही पोंगल का एक दूसरा अर्थ ‘अच्छी तरह से उबालना’ भी है, यहीं कारण हैं कि इस व्यंजन को सूर्य के प्रकाश में आने पर अच्छे तरह से उबालकर बनाया जाता है। इस विशेष प्रसाद को भी ‘पोंगल’ के नाम से ही जाना जाता है।
पोंगल का यह विशेष त्यौहार चार दिनों तक चलता है। जिसमें प्रकृति तथा विभिन्न देवी-देवताओं को अच्छी फसल तथा समपन्नता के लिए उनकी आराधना कर के उन्हें धन्यवाद दिया जाता है। पोंगल के यह चारो दिन अलग-अलग रूप में मनाया जाता है।
पोंगल के प्रथम दिन को भोगी पोंगल के रुप में मनाया जाता है। इस दिन वर्षा और अच्छी फसल के लिए लोग पोंगल के पहले दिन इंद्रदेव की पूजा करते हैं। पोंगल का दूसरे दिन सूर्य पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन नए बर्तनों में नए चावल, गुड़ व मुंग की दाल डालकर उसे केले के पत्ते पर रखकर गन्ना तथा अदरक आदि के साथ पूजा करते है और इसकी सहायता से एक विशेष व्यंजन बनाकर सूर्यदेव को उसका भोग लगाते हैं, इस विशेष प्रसाद को भी ‘पोंगल’ के नाम से ही जाना जाता है। सूर्य देव को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य के ही प्रकाश में बनाया जाता है। पोंगल के तीसरे दिन मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन बैल की पूजा की जाती है। एक कथा के अनुसार शिव जी के प्रमुख गण नंदी से कुछ गलती हो गयी, इसके दंड में शिवजी ने उन्हें बैल बनकर पृथ्वी पर मनुष्यों की खेती करने में सहायता करने को कहा। इसलिए इस दिन मवेशियों की पूजा की जाती है और मनुष्यों के सहायता के लिए उनका धन्यवाद किया जाता है। पोंगल के चौथे और आखरी दिन कन्या पोंगल या कन्नम पोंगल के नाम से जाना जाता है। जिसे महिलाओं द्वारा काफी धूम-धाम से मानाया जाता है। इस दिन लोग मंदिरों में जाकर भगवान से सारे दुःख दूर करने की प्राथना करते है।
पोंगल का त्योहार मनाने के कई महत्वपूर्ण कारण है। पोंगल का यह पर्व इसलिए मनाया जाता है क्योंकि यह वह समय होता है जब शीत ऋतु के फसल की कटाई की जाती है और इसी के खुशी में किसान अपने अच्छी फसल के प्राप्ति के लिए पोंगल के इस त्योहार द्वारा ईश्वर को प्राथना कर के उन्हें धन्यवाद करते है। इसके साथ ही चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में सूर्य की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है क्योंकि सूर्य को अन्न तथा जीवनदाता माना जाता है। पोंगल के दूसरे दिन पोंगल नाम के एक विशेष व्यंजन को सूर्य के रोशनी में बनाते हुए सूर्यदेव को इसका भोग लगाया जाता है। पोंगल के तीसरे दिन बैल की पूजा की जाती है। पोंगल के चौथे और आखरी दिन महिलाओं द्वारा काफी धूम-धाम से मानाया जाता है।
पोंगल हिंदु धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक पर्व है, इस पर्व को तमिल हिंदुओं द्वारा काफी उत्साह उमंग के साथ मनाया जाता है। पोंगल का यह विशेष त्यौहार चार दिनों तक चलता है। पोंगल के यह चारो दिन अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। पोंगल के प्रथम दिन को भोगी पोंगल के रुप में मनाया जाता है। पोंगल का दूसरे दिन सूर्य पोंगल के नाम से जाना जाता है। पोंगल के तीसरे दिन मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। पोंगल के चौथे और आखरी दिन कन्या पोंगल या कन्नम पोंगल के नाम से जाना जाता है।
ADVERTISEMENT