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रुपरेखा : सभ्यता और संस्कृति - त्योहारों का देश - अनुष्ठान त्यौहार - विभिन्न त्यौहार - कई दिन तक चलने वाले महोत्सव - उपसंहार।
सभ्यता और संस्कृति -भारतीय पर्व और त्यौहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति के दर्पण हैं, जीवन का हिस्सा हैं, राष्ट्रीय उल्लास, उमंग और उत्साह के प्राण हैं, विभिननता की इन्द्रधनुषी आभा में एकरूपता और अखंडता के प्रतीक हैं तथा जीवन के अमृत-उत्सव हैं। भारतीय पर्व और त्यौहार गहन सांस्कृतिक चिंतन, पौराणिक आख्यान, लोकरंजनात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, राजनीतिक पुनर्जागरण, आर्थिक संवर्धन एवं उत्साहपूर्ण सामाजिक जीवन के अभिराम अभिव्यंजक हैं । भारतीय-संस्कृति उललास-सलिला है। हमारे सारे पर्व मंगल माधुर्य से ओत-प्रेत हैं। इसलिए यहाँ प्रत्येक दिन पर्व है, पूजा-अर्चना का प्रसंग है।
इसीलिए भारत को त्योहारों का देश भी कहा जाता है। अगर आप पंचांग खोलकर देखेंगे, तो आपको हर दिन कोई न कोई त्यौहार तथा मेला ही नजर आएगा । इनमें प्रमुख पर्व चार हैं । होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली, यह चार प्रमुख त्यौहार है | होली ही "नवान्नेष्टि यज्ञ" कहलाता है। होली में रंग-बिरंगे गुलाल लगाकर एक दूसरे के प्रति मित्रता का संगम बनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई-बहिन के पावन-प्रेम की रक्षा का त्यौहार है। समय के प्रवाह में पावन 'रक्षा-पोटली' का स्थान राखी ने ले लिया है। दशहरा असत्य और आसुरीवृत्ति पर सत्य और देवत्व की विजय का साक्षी है। शक्ति की आराधना का पर्व है । दीपावली अथवा दिवाली भगवती लक्ष्मी की आराधना और स्वागत का पर्व है । समाज की भौतिक समृद्धि लक्ष्मी पर ही आश्रित है।
ऋतु परिवर्तन के संदेशवाहक दिवस भी पर्वरूप में प्रसिद्ध हुए ।इनमें 'मकर संक्रांति', 'वैसाखी' तथा 'गंगा-दशहरा', ये तीन प्रमुख पर्व हैं। पर्व के दिन पावन तीर्थों और नदियों में स्नान करने के महत्व पर बल दिया गया है। कृषि प्रधान भारत भूमि के ऋतु पर्व कृषि के प्रसंग से आलोकित हैं। तमिलनाडु का 'पोंगल' माध (मकर) की संक्रांति पर लहलहाती फसल के घर आने पर प्रभु को भोग लगाने और गाय बैलों की पूजा करने का पर्व है। केरल की शस्यश्यामला पुष्पाच्छादित भूमि पर श्रावण मास में आनन्दोषभोग का त्यौहार है ' 'ओणम'। आश्विन शुक्ला सप्तमी से दशमी (विजय-दशमी) तक बंगाल के ही नहीं अपितु पूर्ण भारत के नर-नारी महिसासुर मर्दिनी 'दुर्गा-पूजा' में मस्त हो गए । वैशाख मास में उड़ीसा में जगन्नाथ जी की 'रथयात्रा' भारत का सर्वप्रथम और विश्व-प्रसिद्ध समारोह बना। कार्तिक पूर्णिमा को 'मिटी धुंध जग चानण होया' उक्त के मूर्तिरूप गुरु नानक का जन्म-दिवस सिक्खों का महान् पर्व है तो इसी दिन हरियाणा और उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध पर्व है 'नहान'। जिसमें गंगा और यमुना पर जन-समाज उमड़ा पड़ता है। पाँचवें गुरु अर्जुनदेव तथा नवें गुरु तेगबहादुर के बलिदान दिवस सिक्खों के पवित्र त्यौहार बने।
जैन मत के पवित्र पर्वों में 'महावीर जयंती' तथा 'पर्युषण पर्व' विशेष उल्लेखनीय हैं। 'महावीर जयंती' जैन मतावलम्बियों में अंतिम तीथँंकर महावीर स्वामी के जन्म- दिवस के उपलक्ष्य में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मनाया जाता है। समवेत रूप से देखें तो प्रतिपदा का संबंध नववर्ष (नवसंवत्) से है । दूज 'भैया दुज' से जुड़ी है। तीज को 'हर तालिका' और 'हरियाली तीज' है। चौथ का दिन 'करवा चौथ' (करक चतुर्थी) और 'गणेश चतुर्थी' को समर्पित है। पंचमी को 'नागपंचमी' और 'असंतपंचमी' मनाई जाती है। षष्ठी का संबंध कृष्ण और बलराम की जन्मतिथि 'हलषपण्ठी' से है । सप्तमी 'रथ सप्तमी' और 'संतान-सप्तमी' को अर्पित है । नवमी भगवान् राम की पावन जन्म-तिथि है। दशमी 'विजय दशमी' तथा 'गंगा दशहरा' का स्मरण करवाती है । एकादशी निर्जला एकादशी, देवशयिनी एकादशी तथा देवोत्थानी ( प्रबोधिनी ) एकादशी के कारण प्रसिद्ध है। द्वादशी को 'वामन-द्वादशी' पड़ती है। केरल में 'ओणम्' भी श्रावण द्वादशी को मनाया जाता है। त्रयोदशी का संबंध धन-त्रयोदशी तथा धनवंतरी जयंती से है। नरक चतुर्दशी, बैकुण्ठ चतुर्दशी तथा अनंत चतुर्दशी, यह सभी चतुर्दशी को आलोकित करते हैं। पंद्रहवीं तिथि समर्पित है पूर्णिमा और अमावस को। पूर्णिमा गौर्वान्वित करती हैं होली, व्यास पूर्णिमा, रक्षाबंधन, शर्द पूर्णिमा और बुद्ध-पूर्णिमा से तो अमावस्या को अलंकृत करते हैं, दीपावली और सर्वपितृ अमावस्या।
सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस त्यौहार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। गढ़वाल, कुमाऊँ, हिमाचल प्रदेश आदि सभी पर्वतीय प्रदेशों में और नेपाल में इस दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं । ये मेले अधिकांशत: उन स्थानों पर लगते हैं, जहाँ दुर्गा देवो के मंदिर हैं या गंगा आदि पवित्र नदियाँ हैं। लोग इस दिन श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं और नए-नए वस्त्र धारण कर उल्लास के साथ मेला देखने जाते हैं। न केवल उत्तर में, अपितु उत्तर पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी मेष संक्रान्ति आने पर 'बिहू' पर्व मनाया जाता है। बैसाख मास में वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है। बैसाखी का त्यौहार प्राकृतिक शोभा और वातावरण की मधुरता के कारण भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस वातावरण में जन जीवन में उल्लास एवं उत्साह का संचार होना स्वाभाविक ही है। आमोद प्रमोद की दृष्टि से पंजाब में ढोल की आवाज और भाँगड़ा की धुन पर अनगिनत पाँव थिरक उठते हैं । नृत्य में ऊँचा उछलना, कूदना-फाँदना एवं एक-दूसरे को कन्धे पर उठाकर नृत्य करना भाँगड़ा की विशिष्ट पद्धतियाँ हैं। तुर्रेदार रंग-बिरंगी पगड़ी, रंगीन कसीदा की हुईं बास्कट नृत्य के विशिष्ट और प्रिय परिधान हैं।
भारत के अनेक पर्व और त्यौहार का एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, अनेक दिनों तक निरन्तर चलकर हिन्दू जन-जीवन को अमृतमय बना देते हैं। वासन्तिक नवरात्र यदि नौ दिन तक धर्म की ध्वजा फहराते हैं तो शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से दसवीं तक उत्तर भारत में रामलीला से तथा पूर्व भारत में 'पूजा' द्वारा जीवन को उल्लास और उमंग प्रदान करते हैं।
भारत भगवान् के अनेक रूपों, देवी-देवताओं तथा महापुरुषों का लीला-स्थल है तथा विविधता और रंगीनी से परिपूर्ण है। जयंतियां, पुण्यतिथियाँ, स्मृतियाँ सब हमारे यहाँ पर्व हो गईं। दशावतार, चौबीस तीर्थंकर, तेतीस करोड़ देवता, चौंसठ जोगनियाँ, छप्पन भैरव, छप्पन करोड़ महापुरुष सबकी जयन्ती और पुण्यतिथियाँ स्थान स्थान पर पर्व के रूप में मनाए जाते हैं। इसीलिए भारत को पूर्वो और त्योहारों का देश कहा जाता है।
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