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रूपरेखा : प्रस्तावना - रमजान का महीना 2023 में कब है - रमजान क्या है - रमजान का इतिहास - रमजान क्यों मनाया जाता है - रमजान कैसे मनाया जाता है - रमजान का महत्व - उपसंहार।
परिचय | रमजान का महीना | रमजान की प्रस्तावना -भारत में अनेक धर्म के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते है। यहाँ जितना मान-सम्मान हिन्दू धर्म के लोगों के दिया जाता है उतना ही मान सम्मान इस्लाम धर्म के लोगों को भी दिया जाता है। जिस तरह मुस्लिम लोग हिन्दू भाइयों बहनों के साथ होली और दिवाली प्रेम भाव से मिल-जुल कर मनाते हैं उसी तरह हिन्दू लोग भी मुस्लिम भाई बहनों के साथ रमजान का महीना और ईद के दिन उनके खुशियों में शरीक होते हैं।
मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए ईद सबसे बड़ा पर्व होता है लेकिन उससे पहले उन्हें एक माह तक उपवास रखना होता है, ये उपवास हिन्दू धर्म के लोगों के उपवास रखने से पूरा अलग होता है। मुसलमानों के बारह महीनों में एक महीने को रमजान कहा जाता है जिसमे रमजान उपवास किया जाता है।
वर्ष 2023 में रमजान का महीना 23 मार्च, गुरुवार से शुरू होकर 21 अप्रैल, शुक्रवार को समाप्त होगा।
इस्लाम धर्मे के लिए रमजान या रमदान को पवित्र महिना माना जाता है। इस पवित्र महीने में इस्लाम में आस्था रखने वाले लोग नियमित रूप से रोज़े यानि उपवास रखते हैं। इस दौरान दिनभर कुछ भी खाना या पीना मना होता है। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवा महिना होता है और इस धर्म में चाँद को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। इबादत करना, रोज़ा रखना, भोजन करवाना और आपसी मेल मिलाप बनाये रखना इस त्यौहार की प्रमुख विशेषता है।
मौलवी का कहना है की रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कुबूल करता है और इस पवित्र महीने में जीवन में किये गए सारे गुनाहों से मुक्ति मिलती है। रमजान में मुस्लिम लोगों को बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है। रोज़ा रहने के दौरान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खा-पी सकते है।
अरबी में रोज़ा को ‘सौम’ कहा जाता है जिसका अर्थ है परहेज करना ना केवल खाने पिने से बल्कि बुरे काम, बुरी सोच और बुरे शब्दों से भी। इसलिए रोज़े सिर्फ शारीरिक परहेज नहीं है बल्कि एक इंसान के शरीर और रूह का रोज़े के भाव की तरफ एक जिम्मेदारी है। रोज़ा सबके लिए एक फ़र्ज़ है जिसे रखने से आत्मा की शुद्धि, अल्लाह की तरफ पूरा ध्यान और कुर्बानी का अभ्यास होता है जिससे आदमी किसी भीतरह के लालच से खुद को दूर रखने में कामयाब हो पाता है।
मौलवी के मुताबिक मुस्लिम धर्म के वो लोग जिनकी रमजान के दौरान तबियत ख़राब है, उम्र अधिक है, महिला गर्भावस्था में है या फिर कोई अन्य परेशानी है जिसकी वजह से रोज़े रखने में असमर्थ हैं, तो उन्हें रोज़े रखने के लिए बाध्य नहीं किया गया है। कोई स्वस्थ व्यक्ति रमजान के महीने में बीमारी, सफ़र या किसी अन्य कारण से रोज़े नहीं रख पाता तो रमजान के बाद भी रोजे रखकर गिनती पूरी की जा सकती है। जो लोग रोज़े नहीं रख सकते वो इसके बदले गरीब और भूखे लोगों को भोजन करवाते हैं और दान दक्षिणा देते हैं।
रमजान का महीना का इतिहास ये बताता है कि, इसका सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। इस्लामिक धर्म के मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है की 610 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद साहब के जरिये पवित्र किताब "कुरान शरीफ" जमीन पर उतरी थी तभी से दुनियाभर के मुसलमान समुदाय द्वारा पहली बार कुरान उतरने की याद में पुरे महीने रोज़े रखते हैं। लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है। इस्लाम धर्म में रोजा को अल्लाह का शुक्रिया अदा करने का त्यौहार माना गया है।
रमजान का महिना हर मुसलमान लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिसमे एक महीने यानी 30 दिनों तक रोज़ा रखे जाते हैं। इस्लाम के मुताबिक पुरे रमजान को तिन हिस्सों में बाँटा गया है जो पहला, दूसरा और तीसरा जो "अशर" कहलाता है। अशर अरबी का 10 नंबर होता है। इस तरह हर अशर 10-10 (दस-दस) दिनों का होता है।
पहला अशर रहमत का होता है यानि रमजान महीने के पहले दस दिन रहमत के होते हैं जिसमे रोज़ा और नमाज़ करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। इस दौरान जो लोग रोजा रखते है उन्हें दान करके गरीबों की मदद करनी चाहिए।
रमजान के 11वें रोज़े से 20वें रोज़े तक दूसरा अशर चलता है जिसमे लोग अल्लाह की इबादत कर उनसे अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई इंसान रमजान के दौरान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है तो अल्लाह उसकी माफ़ी कुबुल कर लेते हैं और उन्हें जन्नत नसीब देते है।
रमजान का तीसरा और आखरी अशर 21वें रोज़े से लेकर 29वें या 30 वें रोज़े तक चलता है। इसका कारण है रमज़ान का महिना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है। ये अशर सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस अशर का उद्देश्य जहन्नम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है। इस दौरान हर मुसलमान को जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करते है।
रमजान के महीने में उपवास रखा जाता है। रमजान मनाने के पीछे ये मान्यता है कि, रोज़ा रखने वालों और नमाज़ पढ़ने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। इस महीने रोजा रखकर लोग अल्लाह की इबादत कर उनसे अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई इंसान रमजान के दौरान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है तो अल्लाह उसकी माफ़ी कुबुल कर लेते हैं और उन्हें जन्नत नसीब देते है। इसीलिए हर साल मुस्लिम समुदाय द्वारा रमजान के महीने में बड़े ही उत्साह और अल्लाह से दुआ नसीब करने के लिए रमजान मनाते है।
रमजान मनाने के पीछे ये मान्यता है कि, रोज़ा रखने वालों और नमाज़ पढ़ने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। इस महीने रोजा रखकर लोग अल्लाह की इबादत कर उनसे अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई इंसान रमजान के दौरान अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है तो अल्लाह उसकी माफ़ी कुबुल कर लेते हैं और उन्हें जन्नत नसीब देते है। इसीलिए हर साल मुस्लिम समुदाय द्वारा रमजान के महीने में बड़े ही उत्साह और अल्लाह से दुआ नसीब करने के लिए रमजान मनाते है।
रमजान का महिना हर मुसलमान लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। रमजान के महीने में उपवास रखा जाता है। इस रमजान महीने के दौरान जो लोग रोजा रखते है उन्हें दान करके गरीबों की मदद करते है। लोग इस दिन अल्लाह की इबादत कर उनसे अपनी गुनाहों की माफ़ी मांगते है। इस दौरान सूरज निकलने से लेकर सूर्यास्त तक कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। रमजान रहमतों और बरकतों का महीना है।
रोजे रखने वाले मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी नहीं खाते और न ही कुछ पीते हैं। सूरज निकलने से पहले सहरी की जाती है, मतलब सुबह फजर की अजान से पहले खा सकते हैं। रोजेदार सहरी के बाद सूर्यास्त तक यानी पूरा दिन कुछ न खाते और न ही पीते। इस दौरान अल्लाह की इबादत करते हैं या फिर अपने काम को करते हैं. सूरज अस्त होने के बाद इफ्तार करते हैं।
रमजान का महीना सभी मुसलमानों भाइयों और बहनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण महीना होता है। इससे इंसानों को बहुत कुछ सिखने को भी मिलता है। लोग अपनी रोज़मर्रा के कामों को करते हुए अल्लाह की इबादत करना भूल जाते हैं या समय नहीं निकाल पाते हैं। रमजान का महिना अल्लाह के बंदो को ये याद दिलाता है की ये ज़िन्दगी उस खुदा की नेमत है, कुछ समय उसकी इबादत के लिए भी निकाल लें ताकि खुदा का रहम हम सभी इंसानों पर बना रहे।
इस्लाम के तहत रमजान के वक़्त सभी मसलमानों को अपनी ज़िन्दगी के मकसद को फिर से समझने की कोशिश करते है। अगर किसी ने हमारे साथ गलत किया है तो भी उन्हें माफ़ कर देना चाहिए। बुरी आदतों से बचनी चाहिए और गरीब और दुखी लोगों को पैसा, कपडा, भोजन इत्यादि दान दक्षिणा करना चाहिए जिसे जकात कहा जाता है। इस्लामिक समुदाय का मान्यता है कि, रमजान के इस महीने में जो नेकी करेगा और रोज़ा के दौरान अपने दिल को साफ़ पाक रखता है अल्लाह उसे खुशियाँ और उन्हें बरकत देते हैं।
रमजान में करीब एक महीने तक हर दिन सूरज उगने से पहले उठकर भोजन किया जाता है जिसे सहरी कहते हैं, फिर दिन भर रोज़ा रखा जाता है और शाम के समय रोजेदार रोजा खोलने या तोड़ने के लिए जो खाना खाता है उसे इफ्तारी कहते हैं। इफ्तार के वक़्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है वो कुबूल होती है। एक इस्लामिक साहित्य के मुताबीक अल्लाह के एक दूत को अपना रोज़ा खजूर से तोड़ने की बात लिखी गई है, इसी के आधार पर सभी रोजेदार खजूर खाकर रोजा तोड़ते हैं। इसके अलावा खजूर पेट की दिक्कत और कमजोरी जैसे अन्य बिमारियों को ठीक करता है। रमजान में भूखे प्यासे रह कर इंसान को किसी भी प्रकार के लालच से दूर रहने और सही रास्ते पर चलने की हिम्मत मिलती है।
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