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रूपरेखा : प्रस्तावना - मुहर्रम 2023 में कब है - मुहर्रम क्या है - मुहर्रम का इतिहास - मुहर्रम क्यों मनाया जाता है - मुहर्रम कैसे मनाया जाता है - मुहर्रम त्योहार के महत्व - उपसंहार।
परिचय | मुहर्रम 2023 | मुहर्रम त्योहार की प्रस्तावना -जिस तरह हिन्दुओं में दशहरा, रामनवमी, नवरात्र, दिवाली आदि पर्व का माह पवित्र माने जाते हैं। इस्लाम में भी चार पवित्र महीनों में मुहर्रम एक हैं। मुसलमानों के लिए ईद हर्ष का त्योहार है, तो मुहर्रम विषाद का। इस्लामधर्म के अनुयायी अपने शहीदों की याद तरोताजा रखने के लिए इस त्योहार को बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं। इस्लामी इतिहास की सबसे दुःखद घटना की याद में वर्ष के पहले महीने की पहली तारीख से दसवीं तारीख तक मुहर्रम मनाया जाता है। इस घटना का संबंध इस्लामधर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन के बलिदान से है।
हर साल अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार अगस्त और सितम्बर माह में मुहर्रम का दिन पड़ता हैं। वर्ष 2023 में 19 जुलाई के दिन से मुहर्रम का महिना शुरू होगा । दसवीं तारीख को ताजिया हैं तथा इन दस दिनों को आशूरा कहा जाता हैं। यह इस्लामिक कलैंडर का प्रथम महिना हैं। इस्लाम के सबसे चार पवित्र महीनों में मुहर्रम भी एक हैं। इसकी पहली तारीख से नयें इस्लामिक वर्ष (हिजरी सन) की शुरुआत मानी जाती हैं, इस दिन कई स्थानों पर सार्वजनिक अवकाश भी होता हैं।
जिस तरह हिन्दुओं का विक्रम संवत हैं उसी तरह इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी संवत कहा जाता हैं। इसका पहला माह मुहर्रम होता हैं। इस्लाम को मानने वाले इसे वर्ष का सबसे पवित्र माह मानते हैं। मुहर्रम के दसवें दिन ताजिये के जुलुस निकाले जाते हैं, यह शोक पर्व हैं। मुहर्रम का खासकर शिया समुदाय के मुसलमानों में बड़ा महत्व हैं। इस दिन उनके पैगम्बर हुसैन अली की हत्या करी गई थी। इसलिए वे इस दिन को शोक पर्व के रूप में मनाते हैं।
वही इस्लाम को मानने वाले सुन्नी सम्प्रदाय के लोग भी इस दिन को मिस्र के फिरौन में मूसा पर हुई ऐतिहासिक विजय के उपलक्ष्य में इस दिन को मनाते हैं। मुहर्रम के इन दस दिनों में रोजे रखकर हुसैन अली का स्मरण किया जाता हैं। ये मुहम्मद साहब के वारिश थे जिनका कत्ल मुसलमानों द्वारा ही इस पवित्र दिन पर कुरान की आयते पढ़ पढ़कर किया गया था।
मुहर्रम का इतिहास ये बताता है कि, हजरत हुसैन पैगंबर मुहम्मद के नाती तथा चौथे खलीफा (धर्मनेता) हजरत अली के बेटे थे। हजरत अली के बाद वे मक्का में खलीफा माने जाते थे, किन्तु अरब के सुदूर कोने में यजीद अपने को खलीफा घोषित कर चुका था। एक बार कूफ़ावालों ने हजरत हुसैन को संवाद भेजा कि यदि आप हमारे यहाँ आएँ, तो हम आपको खलीफा मान लेंगे। जब लंबी यात्रा करके हजरत हुसैन कूफा पहुँचे, तो वहाँ यजीद के अनुचरों ने उन्हें घेर लिया। जिन्होंने उन्हें कूफा बुलाया था, उन्होंने भी बड़ी गद्दारी की। हजरत हुसैन केवल तीस-चालीस लोगों के साथ थे, जिनमें मासूम बच्चे एवं स्त्रियाँ भी थीं। कूफा में यजीद के गवर्नर अम्र-बिन-साद ने हजरत इमाम हुसैन के छोटे काफिले को आगे बढ़ने से रोक दिया। लाचार होकर उसी रेगिस्तानी इलाके में हजरत इमाम हुसैन को खेमा गाड़ना पड़ा।
यजीद के समर्थकों ने हजरत इमाम हुसैन के लोगों को अनेक प्रकार से तकलीफ पहुँचाई। उन लोगों ने नहर का पानी बंद कर दिया। बच्चे और स्त्रियाँ भूख और प्यास के मारे छटपटाने लगे। यह घटना मुहर्रम की तीसरी तारीख को हुई।सरहुल पर निबंध पाँचवीं तारीख को दुश्मनों ने अपना जुल्म और तेज कर दिया। दसवीं तारीख़ को छोटे-छोटे बच्चे, औरतें और हजरत इमाम हुसैन के दो भाँजे शहीद हुए। ये उनकी बहन जैनब के बच्चे थे। इस तरह यजीद के सेनाध्यक्ष शिम्र ने सबके साथ बेरहमी की। हजरत हुसैन भी शहीद हुए। शहीद होने के बाद दुश्मनों ने हजरत हुसैन के सर को नेजा पर रखा।
यह घटना इस्लाम की तवारीख में सबसे बड़ी खूनी शहादत है। इसी के चालीसवें दिन 'चेहल्लुम' (चेहल्लुम का अर्थ है चालीसवाँ) मनाते हैं। यह पर्व मानो श्राद्ध या श्रद्धापर्व है। इसी शहादत की यादगारी में इस्लाम माननेवाले मुहर्रम की पहली तारीख से दसवीं तारीख तक दस दिनों का मातम मानते हैं।
मुहर्रम के दसवें दिन ताजिये के जुलुस निकाले जाते हैं, यह शोक पर्व हैं। मुहर्रम का खासकर शिया समुदाय के मुसलमानों में बड़ा महत्व हैं। इस दिन उनके पैगम्बर हुसैन अली की हत्या करी गई थी। इसलिए वे इस दिन को शोक पर्व के रूप में मनाते हैं।
मुहर्रम के दिन सिपर (ढाल), दुलदुल (घोड़ा) परचम (पताका) और ताजिए निकाले जाते हैं। ये सब इस भयानक युद्ध के स्मारक हैं। मुहर्रम की दसवीं तारीख को बहुत-से मुसलमान रोजा रखते हैं तथा अत्यंत पीड़ा से 'या हुसैन, या हुसैन' बोलते हैं। मुहर्रम की सातवीं से दसवीं तारीख तक दिन-रात निशान लेकर जुलूस निकाले जाते हैं, डंके बजाए जाते हैं तथा चौराहों एवं मोड़ों पर रुककर युद्धकौशल दिखाए जाते हैं।
प्रत्येक धर्म में पर्व और त्यौहार का अपना ही महत्व होता है और यही लोगों के दिलों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। मुहर्रम का पाक महीना भी इस्लाम को मानने वालो को प्रेम, भाईचारे के साथ रहने, नेकी का पालन करने तथा आपसी बैर व लड़ाई झगड़े से मुक्त रहने की बात कहता हैं। शिया तथा सुन्नी दोनों समुदाय के लोग इस दिन को मिलकर मनाते हैं। शियाओं की मान्यता हैं कि हुसैन अली इस्लाम के सबसे चमत्कारी लोगों में से एक थे, इनका सम्बन्ध भी मुहम्मद साहब के खानदान से था। इस कारण शियाओ द्वारा अली को पैगम्बर माना जाता हैं।
याजिद द्वारा इस्लामिक कानून को मानने से इनकार कर दिए जाने के बाद उन्होंने याजिद के खिलाफ विद्रोह शुरू किया जो कर्बला की लड़ाई में परिणित हुआ था। इसमें हुसैन मारे गये तथा परिवार के अन्य लोगों को दमिश्क में कैद कर लिया गया। वही सुन्नी मत को मानने वाले मुसलमानों के लिए भी मुहर्रम का महीना पाक माह हैं। इनकी मान्यता के अनुसार इस दिन मूसा ने फिरौन पर जीत हासिल की थी। मूसा इस्लाम का एक धार्मिक नेता हुआ करता था, जो समूचे अरब में इस्लाम के प्रचारक के रूप में जाना जाता था। उसने मुहर्रम माह के दसवें दिन ही मिस्र के फिरौन को हराकर इस्लामी शासन स्थापित किया था।
यह पर्व उस आदर्श की याद दिलाता है, जिसमें मनुष्य के लिए उसके जीवन से बढ़कर उसके आदर्श की महत्ता है। मनुष्य पर चाहे विपत्तियों का पहाड़ ही क्यों न टूट पड़े, किंतु धर्म और सत्य के मार्ग से उसे विचलित नहीं होना चाहिए। अन्याय के सक्रिय विरोध का प्रतीक है- मुहर्रम ! यही कारण है कि मुहर्रम इस्लाम के इतिहास में अविस्मरणीय पर्व बन गया है।
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