महावीर जयंती पर निबंध

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महावीर जयंती 2021 - Essay On Mahavir Jayanti - Essay On Mahavir Jayanti In Hindi - Mahavir Jayanti Information In Hindi - Mahavir Jayanti Essay In Hindi

रुपरेखा : प्रस्तावना - महावीर जयंती 2021 - महावीर जयंती का इतिहास - महावीर स्वामी का जन्म - महावीर स्वामी का जीवन परिचय - महावीर जयंती समारोह - उपसंहार।

प्रस्तावना -

महावीर जयंती के पर्व को लोगों द्वारा बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस विशेष दिन के लिए पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती है। महावीर जयंती के दिन कई क्षत्रों में कार्यक्रम आयोजन की जाती है। उड़ीसा के राउरकेला में महावीर जयंती के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते है। जिसमें लोगों द्वारा जीओ और जीने दो का नारा लगाकर समाज को जीव हत्या बंद करने तथा मांसाहार त्यागने की अपील की गई थी। इसके साथ लोगों द्वारा शोभायात्रा के जरिये शहर भर में महावीर स्वामी की आकर्षक झांकी भी निकाली गई थी। इस शोभायात्रा के जरिये लोगों को नशा मुक्ति, नैतिकता के संबंध विषयों पर ज्ञान दिया गया। उत्तर प्रदेश के बिजनौर में भी इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। यहां श्रद्धालुओं द्वारा सुबह जैन मंदिर से प्रभातफेरी निकाली और श्रीदिगंबर जैन सरजायती मंदिर में ध्वजारोहण उपरांत झंडा गायन किया जाता है।


महावीर जयंती कब है -

महावीर जयंती वर्ष 2021 में 25 अप्रैल, रविवार के दिन लोगों द्वारा मनाया जायेगा।


महावीर जयंती का इतिहास -

महावीर जयंती हर साल विशेष रुप से जैन धर्म और अन्य धर्मों के लोगों द्वारा महान संत, महावीर (जिन्हें वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है) के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। महावीर स्वामी जैनों के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्होंने जैन धर्म की खोज करने के साथ ही जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों को स्थापित किया था। इनका जन्म 540 ईसा पूर्व शुक्ल पक्ष के चैत्र माह के 13वें दिन, बिहार के वैशाली जिले के कुंडलग्राम में हुआ था। इसी कारण महावीर जयंती हर साल बहुत अधिक उत्साह और आनंद के साथ मनाई जाती है। यह जैनियों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण और पारंपरिक उत्सव है। इसे पूरे भारत में राजपत्रित अवकाश के रुप में घोषित किया गया है, इस दिन सभी सरकारी कार्यालय और शैक्षणिक संस्थाओं का अवकाश रहता है।


महावीर स्वामी का जन्म -

महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकर थे, जो 540 ईसा. पूर्व, भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्में थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के दौरान सभी लोग खुश और समृद्धि से परिपूर्ण थे, इसीलिए इन्हे वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है। ये राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर पैदा हुए थे। यह माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये या तो ये सम्राट बनेगें या फिर तीर्थांकार। उनके जन्म के बाद इन्द्रदेव द्वारा इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थांकार के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया गया था। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में धार्मिक जागरुकता की खोज के लिए घर त्याग दिया था और 12 वर्ष व 6 महीने के गहरे ध्यान के माध्यम से इन्हें कैवल्य अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई थी। इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरु कर दिया और लोगों को सत्य, असत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते हुए 30 वर्षों तक लगातार यात्रा की। 72 वर्ष की आयु में इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया और जैन धर्म के महान तीर्थांकारों में से एक बन गए, जिसके कारण आज इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है।


महावीर स्वामी का जीवन परिचय -

महावीर स्वामी के जन्म स्थान के विषय में बहुत से मतभेद है, कुछ लोग कहते हैं कि, इनका जन्म कुंडलीग्राम, वैशाली, लछौर, जामुई, कुंदलपुर, नालंदा या बसोकुंड में हुआ था। यद्यपि, उनके जन्म स्थान के बारे में अभी भी अनिश्चिताएं हैं। इनके माता-पिता पारसव के महान अनुयायी थे। इनका नाम महावीर रखा गया, जिसका अर्थ है महान योद्धा; क्योंकि इन्होंने बचपन में एक भयानक साँप को नियंत्रित कर लिया था। इन्हें सनमंती, वीरा और नातापुत्ता (अर्थात् नाता के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है। इनकी शादी के संदर्भ में भी बहुत अधिक मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है कि, ये अविवाहित थे, वहीं कुछ लोग मानते हैं कि, इनका विवाह यशोदा से हुआ था और इनकी एक पुत्री थी, जिनका नाम प्रियदर्शना था। 30 वर्ष की आयु में घर छोड़ने के बाद ये गहरे ध्यान में लीन हो गए और इन्होंने बहुत अधिक कठिनाईयों और परेशानियों का सामना किया था । बहुत वर्षों के ध्यान के बाद इन्हें शक्ति, ज्ञान और आशीर्वाद की अनुभूति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद, इन्होंने लोगों वास्तविक जीवन के दर्शन, उसके गुण और जीवन के आनंद से शिक्षित करने के लिए यात्रा की। इनके दर्शन के पांच यथार्थ सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, असत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह थे। इनके शरीर को 72 वर्ष की आयु में मोक्ष प्राप्त हुआ और इनकी पवित्र आत्मा शरीर को छोड़कर और निर्वाण अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करके सदैव के लिए स्वतंत्र हो गई। इनकी मृत्यु के बाद इनके शरीर का क्रियाक्रम पावापुरी में किया गया, जो अब बड़े जैन मंदिर, जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जहां आज लाखों लोग दर्शन करने जाते है।


महावीर जयंती समारोह -

महावीर जयंती महावीर जन्म कल्याणक के नाम से मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह हर साल वार्षिक रुप से मार्च या अप्रैल के महीने में दिन आती है। यह पूरे देश के सभी जैन मंदिरों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। महावीर से जुड़े हुए सभी मंदिरों और स्थलों को इस विशेष अवसर पर फूलों, झंडों आदि से सजाया जाता है। इस दिन, समारोह और पूजा से पहले महावीर स्वामी की मूर्ति को पारंपरिक स्नान कराया जाता है और इसके बाद भव्य जूलुस या शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन गरीब लोगों को कपड़े, भोजन, रुपये और अन्य आवश्यक वस्तुओं को बाँटने की परंपरा है। इस तरह के आयोजन जैन समुदायों के द्वारा आयोजित किए जाते हैं। बड़े समारोह उत्सवों का गिरनार और पालीताना सहित गुजरात, श्री महावीर जी, राजस्थान, पारसनाथ मंदिर, कोलकाता, पावापुरी, बिहार आदि में भव्य आयोजन किया जाता है। यह लोगों के द्वारा स्थानीय रुप से महावीर स्वामी जी की मूर्ति का अभिषेक करके मनाया जाता है। इस दिन, जैन धर्म के लोग शोभायात्रा के कार्यक्रम में शामिल होते हैं तथा लोग ध्यान और पूजा करने के लिए जैन मंदिरों में दर्शन करने जाते है।


उपसंहार -

महावीर जयंती के पर्व को लोगों द्वारा बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस विशेष दिन के लिए पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती है। महावीर जयंती के दिन कई क्षत्रों में कार्यक्रम आयोजन की जाती है। महावीर जयंती हर साल विशेष रुप से जैन धर्म और अन्य धर्मों के लोगों द्वारा महान संत, महावीर (जिन्हें वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है) के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। महावीर स्वामी जैनों के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्होंने जैन धर्म की खोज करने के साथ ही जैन धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों को स्थापित किया था। महावीर स्वामी के जन्म स्थान के विषय में बहुत से मतभेद है, कुछ लोग कहते हैं कि, इनका जन्म कुंडलीग्राम, वैशाली, लछौर, जामुई, कुंदलपुर, नालंदा या बसोकुंड में हुआ था। यद्यपि, उनके जन्म स्थान के बारे में अभी भी अनिश्चिताएं हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह हर साल वार्षिक रुप से मार्च या अप्रैल के महीने में दिन आती है। यह पूरे देश के सभी जैन मंदिरों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। महावीर से जुड़े हुए सभी मंदिरों और स्थलों को इस विशेष अवसर पर फूलों, झंडों आदि से सजाया जाता है।


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