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रुपरेखा - प्रस्तावना - होलिका दहन 2022 - होलिका दहन की कहानी - होलिका दहन क्यों मनाया जाता है - होलिका दहन कैसे मनाया जाता है - होलिका दहन का महत्व - उपसंहार।
प्रस्तावना -होलिका दहन होली के एक दिन पूर्व रात्रि में मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। होलिका दहन के इस त्योहार को भारत के साथ नेपाल के भी कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस पर्व का उदेश्य बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व फाल्गुन माह की पूर्णिमा की तिथि को मनाया जाता हैं परंतु वर्ष 2021 में मार्च के महीने में मनाया जायेगा। इस दिन रात में लोग लकड़ियो तथा उपलो की होलिका बनाकर उसे जलाते हैं और ईश्वर से अपनी इच्छापूर्ति पूरी होने की प्राथना करते हैं। यह दिन हमें इस बात का विश्वास दिलाता है कि यदि हम सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करेंगे तो वह हमारी प्रार्थनाओं को अवश्य सुनेंगे और भक्त प्रहलाद की तरह अपने सभी भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखेंगे।
वर्ष 2022 में होलिका दहन का पावन पर्व 17 मार्च, गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।
होलिका दहन के इस त्योहार से जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार प्रहलाद और होलिका की कथा है जिसके अनुसार, सतयुग काल में हिरणकश्यप नामक एक बहुत ही क्रूर शासक हुआ करता था और अपने शक्ति के घमंड में चूर होकर वह स्वंय को ईश्वर समझने लगा था और चाहता था, कि उसके राज्य का हर एक व्यक्ति ईश्वर माने और ईश्वर स्वरुप उसकी पूजा करे। राज्य के सारे लोग उसकी पूजा करने लगे लेकिन इस बात को स्वंय उसके पुत्र प्रहलाद ने इंकार कर दिया। जिससे क्रुद्ध होकर हिरणकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मारने का आदेश दिया। कई प्रयासों असफल होने के बाद अंत में अपने बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मारने की योजना बनाई क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नही जल सकती। तत्पश्चात वह प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी परंतु ईश्वर श्री हरी ने प्रहलाद की रक्षा की और होलिका को उसके कर्मों का दंड देते हुए अग्नि में जलाकर भस्म कर दिया। इसके पश्चात भगवान हरी विष्णु ने स्वंय नरसिंह अवतार में अवतरित होकर हिरणकश्यप का वद्ध कर दिया। उस दिन बुराई पर अच्छाई की इस जीत को देखते हुए होलिका दहन मनाने की प्रथा शुरु हुई।
दूसरे कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन घोर तपस्या में लीन भगवान शिव ने उनके तरफ ध्यान ही नही दिया। तब भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिए स्वंय प्रेम के देवता कामदेव सामने आये और उन्होंने भगवान शिव पर पुष्प बाण चला दिया। अपनी तपस्या भंग होने से शिवजी काफी क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। अगले दिन कामदेव की पत्नी रति की विनती पर भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवित कर दिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव के भस्म होने कारण से होलिका दहन के त्योहार की उत्पत्ति हुई और अगले दिन उनके जीवित होने के खुशी में होली का पर्व मनाने का यह शुभ त्यौहार आरंभ हुआ।
होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई के जीत के खुशी में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन होलिका नामक राक्षसी की मृत्यु हुई थी। प्राचीन कथा के अनुसार, सतयुग काल में हिरणकश्यप नामक एक अभिमानी राजा हुआ करता था और अपनी शक्तियों के मय में चूर होकर वह स्वंय को भगवान समझने लगा था। उसका आदेश था की हर कोई भगवान की जगह उसकी पूजा करे। राज्य के सभी लोग उसका आदेश का पालन करने पर विवष हो गए क्यूंकि जो कोई उसके आदेश के खिलाफ जाता उसे वह मृत्यु दंड देता। राज्य के सभी लोग आदेश मान लिए परंतु स्वंय उसके पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करना से इंकार कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर हिरणकश्यप ने प्रहलाद को मृत्यु दंड देने का फैसला किया, हिरणकश्यप का हर वार असफल जाता था क्यूंकि भगवान हरी विष्णु ने हर बार भक्त प्रहलाद की रक्षा की और इस तरह से अपने सारी योजनाएं विफल होते देख, हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मारने की योजना बनाई। जिसमें होलिका प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठी क्योंकि होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त हुआ था जिससे उसे ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नही जलती थी। हिरणकश्यप को यकीन था की होलिका अग्नि में सुरक्षित बच जायेगी और प्रहलाद जलकर भस्म हो जायेगा । लेकिन जैसी ही होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि समाधि में बैठी वह चादर वायु के वेग से उड़कर प्रहलाद पर जा पड़ी और होलिका शरीर पर चादर ना होने के वजह से वह वहीं जलकर भस्म हो गई। तत्पश्चात भगवान हरी विष्णु नरसिंह के अवतार में प्रकट हुए और हिरणकश्यप का सीना चीर कर उसे मार डाला। तभी से इस दिन बुराई पर अच्छाई के जीत के रुप में होलिका दहन का पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।
होलिका दहन की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरु कर दी जाती है। इसमें गांव, कस्बों तथा मुहल्लों के लोगो द्वारा होलिका के लिए लकड़ी इकठ्ठा करना शुरु कर दिया जाता है। इस इकठ्ठा किये गये लकड़ी द्वारा होलिका बनायी जाती है, होलिका को बनाने में गोबर के उपलों का भी प्रयोग किया जाता है। तत्पश्चात होलिका दहन की रात शुभ मूहर्त देखकर इसे जलाया जाता है, होलिका की इस अग्नि को देखने के लिए पूरे क्षेत्र के लोग इकठ्ठा होते हैं और अपनी व्यर्थ तथा अपवित्र चीजें इसमें फेंक देते हैं। व्यर्थ चीजें जलाने का कारन है की अग्नि हर बुरी चीज का नाश कर देती हैं और हमें प्रकाश प्रदान करने के साथ हमारी रक्षा भी करती है। उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में होलिका दहन के दिन उबटन से मालिश करने के पश्चात निकलने वाले कचरे को होलिका की अग्नि में फेंकने का रिवाज मानते है। लोग कहते है ऐसा करने से शरीर की अपवित्रता और दुर्भाव अग्नि में नष्ट हो जाते हैं। कई लोग बुरे साये से बचने के लिए होलिका की अग्नि की राख को अपने माथे पर लगाते है जिससे उन्हें कोई बुरी शक्ति हानि न पंहुचा पाए और वे हमेशा मंगलमय रहे।
होलिका दहन का यह पर्व हमारे जीवन में एक विशेष महत्व रखता है, यह हमें सत्य और अच्छाई की शक्ति का अहसास दिलाता है। इस पर्व से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को कभी भी अपनी शक्ति तथा वैभव घमंड नही करना चाहिए, नाही कुमार्ग पर चलते अत्याचार करना चाहिए और नाही ख़ुदको भगवान का दर्जा देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने वालों का पतन निश्चित होता है। होलिका दहन पर्व के पौराणिक किस्से हमें हमारे जीवन में अग्नि और प्रकाश के महत्व को समझाता है और हमें इस बात का ज्ञान कराते हैं कि ईश्वर सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों की रक्षा अवश्य करते हैं।
होलिका दहन होली के एक दिन पूर्व रात्रि में मनाया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई के विजय के प्रतीक में मनाते है। होलिका बनाने में मुख्य साधन है, सुखी लकड़ी, गोबर के उपले तथा खर-पतवार का उपयोग किया जाता था और सामान्य रूप से इसे रिहायशी इलाके से कुछ दूरी पर खाली स्थान, मैदान या फिर बागीचों में बनाया जाता है। कई लोग आज रिहायशी इलाकों में या फिर खेतों के पास काफी बड़ी-बड़ी होलिकाएं बनाते हैं। जिससे काफी उंची लपटे उठती हैं जिससे आग लगने का भी भय रहता है। होलिका दहन से उत्पन्न होने वाली विषैली गैसें मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के साथ ही पर्यावरण के लिए भी काफी खतरनाक होती हैं। इसलिए हमें होलिका दहन के पर्व को साधरण और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मनाने का प्रयत्न करना चाहिए। जिससे होलिका दहन का यह पर्व सत्य के विजय का संदेश लोगो के मध्य और भी अच्छे से प्रदर्शित कर पाए और सभी मिलकर होलिका दहन सुरक्षित रूप से मनाया जाए।
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