ग्यारहवीं शरीफ पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - ग्यारहवीं शरीफ 2023 में कब है - ग्यारहवीं शरीफ का इतिहास - ग्यारहवीं शरीफ क्यों मनाया जाता है - ग्यारहवीं शरीफ कैसै मनाया जाता है - ग्यारहवीं शरीफ का महत्व - उपसंहार।

परिचय | ग्यारहवीं शरीफ की प्रस्तावना -

ग्यारहवीं शरीफ सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। जिसे इस्लाम के उपदेशक और एक महान संत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वह पैगंबर मोहम्मद के वंशज थे क्योंकि उनकी माँ इमाम हुसैन की वंसज थी, जोकि पैगंबर मोहम्मद के पोते थे। उन्हें इस्लाम को पुनर्जीवित करने वाले व्यक्ति के रुप में भी जाना जाता है क्योंकि अपने उदार व्यक्तित्व और सूफी विचारधारा द्वारा उन्होंने कई लोगो को प्रभावित किया।


ग्यारहवीं शरीफ 2023 में कब है -

वर्ष 2023 में ग्यारहवीं शरीफ का पर्व 26 अक्टूबर, गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।


ग्यारहवीं शरीफ का इतिहास -

ग्यारहवीं शरीफ का इतिहास ये बताता है कि, यह पर्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी को समर्पित है। जिनका जन्म इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमादान के पहले दिन सन् 470 हिजरी में हुआ था (ग्रोगोरियन कैलेंडर के अनुसार 17 मार्च सन् 1078 ईस्वी में) उनका जन्म उस समय के गीलान राज्य में हुआ था, जोकि वर्तमान में ईरान का हिस्सा है। उनके पिता का नाम शेख अबु सालेह मूसा था और उनकी माता का नाम सैय्यदा बीबी उम्मल कैर फातिमा था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हनबाली विद्यालय से प्राप्त की थी, जोकि सुन्नी इस्लामिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। यही ग्यारहवीं शरीफ का इतिहास है।


ग्यारहवीं शरीफ क्यों मनाया जाता है -

ग्यारहवीं शरीफ का पर्व महान इस्लामिक ज्ञानी और सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। उनका राज्य उस समय के गीलान प्रांत में हुआ था, जोकि वर्तमान में ईरान में है। ऐसा माना जाता है कि हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी पैगंबर मोहम्मद साहब के रिश्तेदार थे। वह एक अच्छे विचारों वाले आदमी थे। अपने व्यक्तित्व तथा शिक्षाओं द्वारा उन्होंने कई लोगो को प्रभावित किया। यही कारण के वजह से ग्यारहवीं शरीफ मनाया जाता है।


ग्यारहवीं शरीफ कैसै मनाया जाता है -

सुन्नी मुस्लिमों द्वारा ग्यारहवीं शरीफ के त्योहार को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन बगदाद स्थित उनकी मजार पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। इस दिन बगदाद में दर्शनार्थियों का एक मेला सा उमड़ पड़ता है और कई सारे श्रद्धालु तो मजार पर एक दिन पहले ही आ जाते है। ताकि वह सुबह की नमाज के दौरान वह वहां प्रर्थना कर सके। इस दिन भारत में कश्मीरी मुस्लिम समाज के लोग भारी संख्या में श्रीनगर स्थित अब्दुल क़ादिर जीलानी मस्जिद में प्रर्थना करने के लिए इकठ्ठा होते है।

इस दिन उलेमाओं और मौलवियों द्वारा लोगों को हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी के विचारों के बारे में बताया जाता है। इस दिन विभिन्न स्थलों पर उनके विषय और उनके द्वारा किये गये कार्यों के विषय में लोगो को बताने के लिए चर्चा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसी तरह काफी धूम-धाम से ग्यारहवीं शरीफ मनाया जाता है।


ग्यारहवीं शरीफ का महत्व -

ग्यारहवीं शरीफ का पर्व एक काफी महत्वपूर्ण अवसर है, यह दिन ना सिर्फ हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी को श्रद्धांजलि के रुप में समर्पित है बल्कि के उनके द्वारा दी गयी शिक्षाओं को भी समर्पित है। हजरत जीलानी ना सिर्फ एक सूफी संत थे बल्कि कि वह एक शिक्षक, धर्म प्रचारक, उतकृष्ट वक्ता होने के साथ ही एक ईमानदार तथा अच्छे व्यक्ति भी थे। ज़ियारवाहिन शरीफ का यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि समस्याएं चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो लेकिन अपने कार्यों के द्वारा हम उनसे आसानी से निजात पा सकते है।


उपसंहार -

ग्यारहवीं शरीफ सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। यह पर्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी को समर्पित है। ग्यारहवीं शरीफ का पर्व महान इस्लामिक ज्ञानी और सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। इस दिन बगदाद स्थित उनकी मजार पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। इस दिन बगदाद में दर्शनार्थियों का एक मेला सा उमड़ पड़ता है और कई सारे श्रद्धालु तो मजार पर एक दिन पहले ही आ जाते है। ग्यारहवीं शरीफ का पर्व एक काफी महत्वपूर्ण अवसर है, यह दिन ना सिर्फ हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी को श्रद्धांजलि के रुप में समर्पित है बल्कि के उनके द्वारा दी गयी शिक्षाओं को भी समर्पित है।


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