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रूपरेखा : प्रस्तावना - रक्षा बंधन का इतिहास - रक्षा बंधन 2021 कब है - रक्षा बंधन क्यों मनाते हैं - रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है - रक्षा बंधन का महत्व - उपसंहार।
परिचय | रक्षाबंधन की प्रस्तावना -रक्षाबंधन अर्थात भाई बहन के रिश्ते का त्योहार हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है । जो भाई-बहन के रिश्तों को और भी मजबूत बनाने के लिए मनाया जाता है । यह त्योहार भारत के लगभग हर हिस्सें में मनाया जाता हैं इसके साथ ही इसे नेपाल और पाकिस्तान में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है हिन्दू धर्म के लोगों के अलावा इसे भारतवर्ष में अन्य धर्मों के लोग भी बड़े उत्साह के साथ मानते हैं । यह एक ऐसा पर्व है जो पारिवारिक बंधनों के एकता और मजबूती को दर्शाता है । कहा जाता है कि इस दिन भाई बहन की आजादी, उसका सम्मान और रक्षा का प्रतिज्ञा लेता है। यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है जो एक दूसरे को बंधे रखता है जो जन्मों-जन्मों तक एक दूसरे का साथ देता है ।
रक्षा बंधन के पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है। इस पर्व के उत्पत्ति को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित है। रक्षा बंधन के शुरुआत से जुड़ी कई सारी पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित है।
सिकंदर से जुड़ी रक्षा बंधन की कथाइतिहास में सिकंदर और पंजाब के प्रतापी राजा पुरुवास या जिन्हें प्रायः पोरस के नाम से जाना जाता है के बीच हुए युद्ध से तो सभी लोग भलीभांती परिचित है। रक्षा बंधन की एक कथा के अनुसार, सिकंदर को युद्ध में किसी प्रकार के प्राणघातक हमले से बचाने के लिए उसकी पत्नी ने राजा पोरस को अपना भाई बनाते हुए उन्हें राखी बांधी थी और उनसे अपने पति सिकंदर के प्राणों के रक्षा का वचन लिया था।
जब राजा बलि को रक्षासूत्र में बांधा गयारक्षा बंधन के उत्पत्ति से जुड़ी यह पौराणिक कथा सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। जिसके अनुसार, जब असुरों के राजा बलि ने सौ अश्वमेध यज्ञ करके स्वर्ग का राज्य छिनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र सहित सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तो भगवान विष्णु वामनरुप धारण करके राजा बलि के द्वार पर पहुंचे। जहां राजा बलि ने उनकी इच्छा पूछी तो वामनरुप में विष्णु ने कहा हे राजन! मुझे तीन पग धरती चाहिए। राजा बलि ने उनकी यह इच्छा मान ली तो वामनरुपी भगवान विष्णु ने विराट रुप धारण करके दो पगों में तीनों लोको को माप लिया। जब भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीसरे पग के लिए स्थान पूछा, तो उन्होंने कहा कि हे प्रभु आप तीसरे पग को मेरे मस्तक पर रख दे। उनकी इस भक्ति और दान भाव से भगवान विष्णु बहुत ही प्रसन्न हुए तथा उन्होंने राजा बलि को पाताल का राजा बना दिया और उनसे वर मांगने को कहा। इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को दिन-रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया। जब भगवान विष्णु काफी समय बितने के बाद भी बैकुंठ नही लौटे तो लक्ष्मी जी परेशान हो उठी और देवर्षि नारद से सहायता के लिए प्रर्थना की, तब देवर्षि नारद ने उन्हें भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कराने का उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि को रक्षासूत्र में बांधकर अपना भाई बना लिया और जब राजा बलि ने उनसे कुछ मांगने को कहा तो वह भगवान विष्णु को राजा बलि के वचन से मुक्त कराकर वापस ले आयी। ऐसा माना जाता है जब देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी तो उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। यही कारण है कि रक्षा बंधन के पर्व को बलेव के नाम से भी जाना जाता है।
इंद्र देव से जुडी रक्षा बंधन की कथारक्षा बंधन से जुड़ी एक कथा भविष्योंत्तर पुराण में वर्णित है। जिसके अनुसार एक बार देवासुर संग्राम में देवों की पराजय होने लगी तब इंद्र ने देवगुरु बृहस्पति से इसका उपाय पूछा। इसपर देवगुरु बृहस्पति ने उन्हें मत्रंशक्ति से संपन्न रक्षासूत्र दिया और कहा कि इसे अपने पत्नी से कलाई पर बंधवा कर युद्ध के लिए जाओ, ऐसा करने से तुम्हारी विजय अवश्य होगी। उनकी बात मानकर इंद्र ने ऐसा ही किया और युद्ध से विजयी होकर लौटे।
महाभारत काल की रक्षा बंधन की कथामहाभारत में रक्षा बंधन के पर्व कई उल्लेख मिलते हैं। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि, प्रभु मैं इन सभी बाधाओं और सकंटों को कैसे प्राप्त कर सकता हूं। तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। इसके साथ ही जब सुदर्शन चक्र से भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था, तब उनकी तर्जनी में चोट आ गयी थी। तब द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली में पट्टी बांध दी थी। उनके इस कार्य से प्रभावित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को रक्षा का वचन दिया था। कहा जाता कि जिस दिन यह घटना घटित हुई थी वह श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था।
रक्षाबंधन हर साल तिथि अनुसार मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का यह अनोखा पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2021 में रक्षा बंधन का पर्व 22 अगस्त, रविवार को मनाया जायेगा।
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का यह अनोखा पर्व मनाया जाता है। इस पवित्र पर्व पर बहनें अपनो भाइयों को राखी बांधते हुए उनके लंबी आयु की कामना करती हैं और अपनी रक्षा का वचन मांगती हैं। हालांकि इसके अलावा शिष्यों द्वारा अपने गुरु तथा ब्राम्हणों द्वारा अपने यजमनों को भी राखी बांधने की प्रथा रही है, लेकिन आज के समय में इसका प्रचलन काफी कम देखने को मिलता है। रक्षा बंधन के पर्व को मनाने को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं। लेकिन वास्तव में रक्षा बंधन का यह पर्व मानवीय भावनाओं की शक्ति को प्रदर्शित करने के साथ ही वचनबद्धता की शक्ति को प्रदर्शित करने का कार्य करता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन का त्योहार होता है जहाँ भाई बहन की रक्षा का वचन करता है और वही बहन भाई की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की प्राथना करती है।
रक्षा बंधन के दिन बहनों द्वारा अपने भाईयों को रक्षा सूत्र बांध कर उनसे अपने रक्षा का वचन लिया जाता है, यह दिन सार्वजनिक अवकाश का दिन होता है। जिससे की भाईयों और बहनों को समय प्राप्त हो जाता है कि यदि वह दूर हों तो एक दूसरे से मिल सके और रक्षा बंधन का यह पर्व मना सके। यदि भाई-बहन इस दिन एक दूसरे से नही मिल पाते, तो बहनों द्वारा अपने भाईयों को कुरियर या डाक द्वारा भी राखी भेजी जाती है। सामान्यतः सेना में कार्य करने वाले लोगो को उनकी बहनों द्वारा डाक या कुरियर द्वारा राखी अवश्य भेजी जाती है। रक्षा बंधन के पर्व को मनाने का एक विशेष तरीका है, जिसके अनुसार हमें इस पर्व को मनाना चाहिये। सर्वप्रथम रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद बहन द्वारा एक थाल में रोरी, अक्षत, कुमकुम तथा दीप जलाया जाता है। तत्पश्चात बहनों द्वारा अपने भाईयों की आरती उतारी जाती है और उनके लंबे उम्र तथा समृद्धि की मंगलकामना करते हुए उन्हें राखी बांधी जाती है। इसके पश्चात भाइयों द्वारा अपने बहनों को उनकी रक्षा का वचन दिया जाता है तथा उन्हें उनकी पसंद के उपहार भेंट किये जाते है।
रक्षा बंधन का पर्व हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि भावनाओं में कितनी शक्ति होती है। रक्षा सूत्र एक बहन द्वारा उसके भाई को बांधी गयी भावनाओं की वह शक्ति होती है। जोकि उसे इस बात का एहसास दिलाता है कि विकट परिस्थितियों में रक्षासूत्र रुपी यह धागा उसकी रक्षा करेगा, ठीक उसी प्रकार भाई द्वारा बहन को इस चीज का वचन दिया जाता है कि वह हर विपत्ति में उसकी रक्षा करने का प्रयास करेगा।
रक्षा बंधन वह पर्व है, जो हमें विश्वास और भावनाओं की शक्ति के महत्व को दिखलाता है। इस पर्व का यह महत्व हमें इससे जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं में भी देखने को मिलता है, चाहे फिर वह इंद्र से जुड़ी कथा हो या कर्णावती और हुमायूँ की दोनो ही रक्षा तथा इससे जुड़ी भावना की शक्ति को दिखलाने का कार्य करता है। यही कारण है कि रक्षा बंधन के इस पर्व को हिंदू संस्कृति में इतना महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है।
अतः हम यह कह सकते है कि राखी का यह त्योहार भाई एवं बहन के अटूट रिश्ते को दर्शाता है। आज के दौर में यह पर्व हमारी संस्कृति की पहचान बन चुका है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए। इस त्योहार को मनाने के साथ ही हम सभी को एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने का संकल्प भी लेना चाहिए। सुख-दुख में सभी के साथ मिल-जुल कर रहना चाहिए।
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