गुड़ी पड़वा पर निबंध

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गुड़ी पड़वा निबंध - गुड़ी पड़वा क्या है - Gudi Padwa 2021 - Gudi Padwa In Hindi Information - Gudi Padwa Essay In Hindi – Essay on Gudi Padwa

रुपरेखा : प्रस्तावना - गुड़ी पड़वा 2021 - गुड़ी पड़वा क्यों मनाते हैं - गुड़ी पड़वा कैसे मनाते हैं - गुड़ी पड़वा का महत्व - उपसंहार।

प्रस्तावना -

गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है, यही कारण है कि हिन्दू धर्म के लोग इसे अलग-अलग तरह से पर्व के रूप में मनाते हैं। भारत के महाराष्ट्र राज्य में नए साल का दिन माना जाता है। यह एक हिंदू त्योहार है यह चैत्र के हिंदू महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन कर इसे घर के द्वार पर लगाया जाता है और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाया जाता है। ऐसा मान जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशियां लाता है। गुड़ी पड़वा के दिन पूरनपोली नामक मीठा व्यंजन बनाने की परंपरा है। वहीं मराठी परिवारों में इस दिन खास तौर से श्रीखंड बनाया जाता है, और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ परोसा जाता है। आंध्रप्रदेश में इस दिन प्रत्येक घर में पच्चड़ी प्रसाद बनाकर वितरित किया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन कई जगह नीम की पत्तियां खाने का भी विधान माना जाता है। हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से होता है।


गुड़ी पड़वा कब है -

वर्ष 2021, में गुड़ी पड़वा का पर्व 13 अप्रैल, मंगलवार के दिन भारत के महाराष्ट्र राज्य में नए साल के रूप में मनाया जाएगा।


गुड़ी पड़वा क्यों मनाते हैं -

गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे मान्यता हैं कि ब्रह्मदेव ने गुड़ीपड़वा के दिन ही सृष्टि के रचना की शुरुआत की थी और इस दिन घर के द्वार पर गुड़ी अथवा आम के पत्तों के बंदनवार लटकाने से घर में सुख सम्रद्धि का वास होता हैं। संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोपण के साथ इस दिन की शुरुआत होती हैं और शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। यह एक कृषि पर्व भी हैं इस समय तक वंसत ऋतु का आगमन हो चुका होता हैं तथा पूरी प्रकृति में नयें पत्तों तथा फूलों की बहार आने लगती है। इस दिन भगवान राम ने अयोध्या में राज्याभिषेक किया था तथा स्वामी दयानत सरस्वती ने भी आर्य समाज की स्थापना इसी दिन से की थी। भारत के महाराष्ट्र राज्य में नए साल के रूप में यह दिन मनाया जाता है।


गुड़ी पड़वा कैसे मनाते हैं -

गुड़ी पड़वा महोत्सव का उत्सव समृद्धि और कल्याण से संबंधित है। गुड़ी पड़वा के दिन पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं। दिन प्रार्थना के साथ शुरू होता है फिर, संबंधों और मित्रों के बीच मिठाई और उपहार का आदान-प्रदान होता है। लोग अपने घरों को धोने के लिए समय लेते हैं और पुरानी और बेकार वस्तुओं को त्याग दिया जाता है। कुछ लोग अपने घरों को नए रंगों के साथ रंगते हैं और आम के पत्तों के साथ द्वार को सजाने के लिए। कुछ लोग भगवान के आशीर्वाद लेने के मंदिरों में दर्शन करने जाते है। गुढी झंडा के ऊपर उठो यह झंडा ब्रह्मविद्या (ब्रह्मा का ध्वज) के रूप में जाना जाता है। महिलाएं घरों में रंगीली और स्वादिष्ट व्यंजन बनाती हैं। इस दिन “पूरनपोली” बनाने का एक रिवाज है। इस दिन लोग अपने परिवारों तथा दोस्तों को दावत देते है।


गुड़ी पड़वा का महत्व -

गुड़ी पड़वा का विशेष रूप से हिंदुओं के बीच इस दिन का अपना विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस दिन, भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड बनाया इसलिए, भक्त एक पवित्र तेल स्नान लेते हैं, जो शुभ माना जाता है यह दिन भी भगवान राम के राज्याभिषेक समारोह को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन घर के द्वार पर गुड़ी अथवा आम के पत्तों के बंदनवार लटकाने से घर में सुख सम्रद्धि का वास होता हैं।


उपसंहार -

गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है, यही कारण है कि हिन्दू धर्म के लोग इसे अलग-अलग तरह से पर्व के रूप में मनाते हैं। भारत के महाराष्ट्र राज्य में नए साल का दिन माना जाता है। गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे मान्यता हैं कि ब्रह्मदेव ने गुड़ीपड़वा के दिन ही सृष्टि के रचना की शुरुआत की थी और इस दिन घर के द्वार पर गुड़ी अथवा आम के पत्तों के बंदनवार लटकाने से घर में सुख सम्रद्धि का वास होता हैं। गुड़ी पड़वा महोत्सव का उत्सव समृद्धि और कल्याण से संबंधित है। गुड़ी पड़वा के दिन पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं। दिन प्रार्थना के साथ शुरू होता है फिर, संबंधों और मित्रों के बीच मिठाई और उपहार का आदान-प्रदान होता है। यह माना जाता है कि इस दिन, भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड बनाया इसलिए इस दिन का अपना विशेष महत्व है।


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