गणगौर पर निबंध

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रुपरेखा : प्रस्तावना - गणगौर 2022 - गणगौर का इतिहास - गणगौर फेस्टिवल क्यों मनाया जाता है - गणगौर पर्व कैसे मनाया जाता है - गणगौर व्रत कथा - गणगौर का महत्व - उपसंहार।

प्रस्तावना -

गणगौर पर्व भारत का राज्य राजस्थान में मनाये जाने वाले त्यौहार है। राजस्थान के अलावा यह पर्व गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों के कुछ भागों में मनाया जाता है। हालांकि अन्य जगहों के अपेक्षा राजस्थान में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। गणगौर का यह पर्व भगवान शिव तथा माता पार्वती को समर्पित है अर्थात इस दिन शिव पार्वती की पूजा करते है। यह पर्व होली के दिन से शुरु होकर अगले 16 दिनों तक चलता है। राजस्थान में ऐसी मान्यता है कि नवविवाहित स्त्रियों को सुहाग और सौभाग्य की कामना पूर्ति करने के लिए गणगौर का व्रत रखना चाहिए । यह पर्व राजस्थान और इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है खासतौर से जयपुर और उदयपुर में इस पर्व की भव्यता देखने के लिए लोग काफी दूर-दूर से आते हैं।


गणगौर कब है -

वर्ष 2022 में गणगौर पर्व का आरंभ 18 मार्च, शुक्रवार को होगा और इसका समापन से 4 अप्रैल, सोमवार को होगा।


गणगौर का इतिहास -

गणगौर पर्व को राजस्थान और मालवा की शान भी कहा जाता है। इस विषय में कोई विशेष साक्ष्य नही मिला कि आखिर गणगौर पर्व की शुरुआत कैसे हुई और कहाँ से हुई। इस पर्व को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं इसी में से एक कथा है शिव-पार्वती के भ्रमण की है। इस पर्व को विवाहित तथा अविवाहित दोनो प्रकार की महिलाओं द्वारा काफी श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में स्थानीय परंपरा की दृश्य देखने को मिलती है, जिससे इस बात का पता चलता है कि समय के साथ इस पर्व में कई सारे परिवर्तन हुए है। अपने विशेष रीति रिवाज के कारण यह पर्व आम लोगो में काफी लोकप्रिय हैं, यह हमें इस बात का अहसास दिलाता है की हमें अपने जीवन में दिखावे और लोभ से दूर रहते हुए सादगी के साथ ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।


गणगौर फेस्टिवल क्यों मनाया जाता है -

गणगौर पर्व या जिसे गौरी तृतिया के नाम से भी जाना जाता है उसे महिलाओं द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस त्योहार के उत्पत्ति को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित है। शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को अपने पति के रुप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दर्शन देते हुए अपने पत्नी के रुप में स्वीकार किया था। इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार माता पार्वती ने महिलाओं के सेवा से प्रसन्न होकर उनपर सुहाग रस बरसाया था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ईसर (शिवजी) और गौरी (पार्वती) की पूजा तथा व्रत करने से सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होती है और कुवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। गणगौर पर्व राजस्थान और इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में काफी प्रसिद्ध है।


गणगौर पर्व कैसे मनाया जाता है -

गणगौर के इस पर्व के दिन महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिलता है, खासतौर से राजस्थान में इस दिन के लिए काफी पहले से तैयारी शुरु कर दी जाती है। यह पर्व होली के दिन से शुरु होता है और इसका समापन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन होता है, यहीं कारण है कि गौरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर महिलायें भगवान शिव (इसर जी) और माता पार्वती (गौरी) की पूजा करती हैं। इस पर्व के दौरान महिलाएं 18 दिनों तक सिर्फ एक वक्त भोजन करती हैं। इस त्योहार में भगवान शिव और माता पार्वती उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में भगवान शिवजी और माता गौरी की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं और पूजन के दिन शाम को जाने माने कलाकरों द्वारा रंग कर पूर्ण रुप दिया जाता है। इस दिन महिला अपने हांथो और पैरों पर मेहंदी रचती है। इस दौरान महिलाओं द्वारा अपने हांथो और पैरो में सूर्य, चंद्रमा, फूलों तथा दूसरे तरह के मेहंदी की चित्रकारियां बनाती है। इसके साथ ही इस पर्व में महिलाओं द्वारा गुढलिया नामक मिट्टी के बर्तन जिसमें कई सारे छेद होते हैं उसमे दिया भी जलाया जाता है। यह उत्सव ऐसे ही अगले दस दिनों तक चलता रहता है और गणगौर पर्व के आखरी दिन लड़कियों द्वारा अपने मिट्टी के बर्तनों को तोड़ दिया जाता है और इसके अंदर मौजूद डिबरियों और दीयों को किसी कुएं या पानी के कुंड में फेंक दिया जाता है तथा लोगो से प्राप्त उपहारों आपस में बांटकर खाते हुए जश्न मनाया जाता है।


गणगौर व्रत कथा -

गणगौर पर्व में सबसे महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता है व्रत कथा और बिना इसके गणगौर पर्व पूरा नही माना जाता। ऐसा मानना है कि यह कथा सुनने और सुनाने से सभी तरह के दुखों से मुक्ती मिलती है व्यक्ति को जीवन में सौभाग्य तथा अटल सुहाग की प्राप्ति होती है। गणगौर व्रत कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर तथा माता पार्वती नारदजी के साथ भ्रमण पर निकले । काफी दूर तक भ्रमण के पश्चात वह चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गाँव में पहुंच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गाँव की उच्च कुलीन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं। भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफी विलंब हो गया। लेकिन शिव-पार्वती के आगमन की खबर सुनकर साधरण परिवार की स्त्रियां उच्च कुल की स्त्रियों से पहले ही वहां पहुंच कर हल्दी और अक्षत के साथ उनकी पूजा करने लगीं उनके इस सेवाभाव से प्रभावित होकर माता पार्वती ने अपना सारा सुहागरस उनके उपर छिड़क दिया। जिससे उन्हें अटल सुहाग प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। कुछ देर बाद उच्च कुल की स्त्रियां भी सोने-चांदी की थाल में अनेक प्रकार के पकवानों को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष पहुंची। उन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा कि तुमने सारा सुहाग रस तो साधरण कुल की स्त्रियों पर छिड़क दिया, अब इन्हें क्या प्राप्त होगा ? भगवान शिव की इस बात को सुनकर माता पार्वती ने कहा कि हे प्राणनाथ, आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैने केवल उपरी पदार्थों से बना सुहाग रस दिया है, इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। लेकिन इन उच्च कुलीन स्त्रियों में जो भी सच्ची श्रद्धा से हमारी सेवा में आयी हैं उनपर मैं अपने रक्त से विशेष सुहागरस की छींटे प्रदान करुंगी और यह जिस स्त्री पर भी पड़ेगी वह धन्य हो जायेगी। इतना कहकर माता पार्वती ने अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त की बुंदे उच्च कुलीन स्त्रियों पर छिड़क दी और यह बूंद उन उच्च कुलीन स्त्रियों पर पड़ी सच्ची सेवा भाव से भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में पहुंची थी और जिन स्त्रियों पर यह बूंदे पड़ी वह अखंड सौभाग्यवती हुईं। लेकिन अपनी ऐश्वर्य तथा धन-संपदा का प्रदर्शन करने पहुंची महिलाओं को माता पार्वती का यह विशेष सुहाग रस प्राप्त नही हुआ और उन्हें खाली हांथ ही लौटना पड़ा।

जब स्त्रियों का पूजन समाप्त हो गया, तो माता पार्वती ने शिवजी से आज्ञा लेकर नदी के तट पर स्नान किया और रेत की शिव मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने लगी। पूजा के पश्चात उन्होंने नदी तट पर स्नान किया और बालू के बने पकवान का भोग लगाया। इन सबके बाद उन्होंने अपने माथे पर तिलक लगाकर स्वंय भी दो कण बालू का भोग लगाया। यह सब कार्य करते हुए माता पार्वती को काफी देर हो गयी और जब वह वापस आयी तो शिवजी ने उनसे विलंब का कारण पूछा। इसके उत्तर में माता पार्वती ने संकोचवश झूठ ही कह दिया कि मुझे मेरे भाई-भावज मिल गये थे। उन्हें से बात करने के कारण देर हो गयी, पर भला महादेव से कोई बात कैसे छिप सकती थी। इस पर शिवजी ने पूछा कि तुमने नदी तट पर पूजन करने के बाद किस चीज का भोग लगाया था और कौन सा प्रसाद खाया था। इस पर माता पार्वती ने फिर से झूठ बोला और कहा कि मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया है और उसे खाने के बाद मैं सीधी यहां आ रही हूँ। इस पर महादेव ने कहा मुझे भी दूध-भात खाना है और वह भी नदी तट पर चल दिये। शिवजी के इस बात से माता पार्वती काफी दुविधा में पड़ गयी और मन ही मन शिवजी को स्मरण करते हुए प्रर्थना की हे प्रभु मैं आपकी अनन्य सेवक हूँ और इस दुविधा में मेरी लाज रखिये। यह प्रार्थना करती हुई पार्वती जी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं।

उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के भीतर पहुँचकर वे देखती हैं कि वहाँ शिवजी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का भाव-भीना स्वागत किया। वे दो दिनों तक वहाँ रहे। तीसरे दिन माता पार्वती ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। तब माता पार्वती रूठकर अकेली ही चल दीं। ऐसी हालत में भगवान शिवजी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ-साथ चल दिए। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे। अचानक भगवान शंकर पार्वती से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।' उत्तर में पार्वती ने कहा - 'ठीक है, मैं ले आती हूँ।' परंतु भगवान ने उन्हें जाने से मना कर दिया और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारद जी को भेज दिया। महल के स्थान पहुंचने पर नारद जी को कोई महल नजर न आया और चारो तरफ जंगल नजर आ रहे थे। नारदजी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? मगर सहसा के बिजली चमकी और नारद जी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टँगी हुई दिखाई दी। नारद जी ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुँचकर वहाँ का हाल बताया। शिवजी ने हँसकर कहा, नारद यह सब पार्वती की ही लीला है। इस पर पार्वती बोलीं, प्रभु भला मैं किस योग्य हूँ। इस बात पर नारदजी ने सिर झुकाकर कहा, माता आप पतिव्रताओं में सबसे श्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे आज बहुत प्रसन्नता हुई है। इसी कारण मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूँ कि “जो स्त्रियाँ इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें भगवान शिव जी और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलेगा।


गणगौर का महत्व -

गणगौर का कई महत्व बताए जाते है जैसे चैत्र शुक्ल तृतिया के दिन मनाये जाने के कारण गणगौर पर्व को गौरी तृतिया भी कहते हैं। यह पर्व मुख्य रुप से राजस्थान तथा इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में मनाया जाता है और यह इसके मूल क्षेत्र के संस्कृति और मान्यताओं को प्रदर्शित करने का कार्य करता है। यह पर्व हमें सच्ची श्रद्धा के महत्व को बताने का कार्य करता है और इस बात का संदेश देता है कि हमें अपने जीवन में धन-संपदा प्रदर्शन से दूर रहना चाहिए। विवाहित महिलाओं द्वारा यह पर्व अपने सुहाग के लंबे उम्र और सौभाग्य को बनाये रखने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही यह पर्व पती-पत्नी के संबंधों में मधुरता लाने का कार्य करता है। अविवाहित स्त्री ये पर्व के अवसर में व्रत रखकर अपने इच्छा अनुसार पति मिलने की कामना करती है।


उपसंहार -

गणगौर पर्व भारत का राज्य राजस्थान में मनाये जाने वाले त्यौहार है। राजस्थान के अलावा यह पर्व गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों के कुछ भागों में मनाया जाता है। लोगो द्वारा इस पर्व की सभी प्राचीन परम्पराओं का पालन कर के मनाया जाता है। कई जगह लोग इस गणगौर पर्व को लेकर परिवर्तन करने की आवश्यकता समझी जैसे कि आज उपयोग किये हुए दिये या डेबरियों को कुएं या जलकुंड में फेकने के जगह जमीन पर रख सकते हैं या इसे तोड़कर मिट्टी में दबा देते हैं जो कि पर्यावरण के लिए अनुकूल रहता है।


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