गणेश चतुर्थी पर निबंध

ADVERTISEMENT

गणेश चतुर्थी 2023 पर निबंध - गणेशोत्सव पर निबंध हिंदी में - गणेश चतुर्थी कब है - गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा - गणेश चतुर्थी की कहानी/कथा - Ganesh Chaturthi Hindi Essay - Essay Writing on Ganesh Chaturthi in Hindi - Ganeshotsav Essay in Hindi - About Ganesh Chaturthi Festival in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - गणेश चतुर्थी 2023 में कब है - सार्वजनिक पूजा का उत्सव - गणेश के जन्म से संबंधित कथाएँ - सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ - गणपति के अनेक नाम - महाराष्ट्र में गणेशोत्सव - उपसंहार।

परिचय | गणेशोत्सव | गणेश चतुर्थी की प्रस्तावना -

गणेश चतुर्थी या जिसे गणेशोत्सव भी कहते है हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। इसके साथ ही महाराष्ट्र राज्य का बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। यह हिन्दू धर्म का एक बहुत प्रिय पर्व है। ये उत्सव पूरे भारत में बेहद भक्ति भाव और खुशी से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार आने के कई दिन पहले से ही बाजारों में इसकी रौनक दिखने लगती है। यह पर्व हिन्दू धर्म का अत्यधिक मुख्य तथा बहुत प्रसिद्ध पर्व है। इसे हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में बड़े ही उत्साह और प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता है। यह भगवान गणेश के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है।


गणेश चतुर्थी 2023 में कब है | गणेशोत्सव कब मनाया जायेगा | गणेश पूजा कब है -

हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में गणेश चतुर्थी अथवा गणेशोत्सव मनाया जाता है। वर्ष 2023 में, 19 सितंबर मंगलवार के दिन मनाया जायेगा। यह 11 दिन का गणेश चतुर्थी का त्योहार 29 सितंबर शुक्रवार के दिन समाप्त होगा।


सार्वजनिक पूजा का उत्सव | गणेशोत्सव एक सार्वजनिक पूजा -

विघ्न विनाशक, मंगलकर्ता, ऋद्धि -सिद्धि के दाता विद्या और बुद्धि के आगार गणपति की पूजा आराधना का सार्वजनिक उत्सव ही गणेश उत्सव है। भाद्रपपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के जन्मदिन पर यह उत्सव मनाया जाता है।

वैदिक काल से लेकर आज तक, सिंध और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तथा भारत में जन्में प्रत्येक विचार और विश्वास में गणपति समाए हैं। जैन संप्रदाय में ज्ञान का संकलन करने वाले गणेश या गणाध्यक्ष की मान्यता है तो बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा का विश्वास कभी यहां तक रहा है गणपति स्तुति के बिना मंत्र सिद्धि नहीं हो सकती। नेपाली तथा तिब्बती वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश जी को स्थापित रखते रहे हैं। सुदूर जापान तक प्रभावशाली राष्ट्रों में गणपति पूजा का कोई ना कोई रूप मिल जाएगा।


गणेश के जन्म से संबंधित कथाएँ | गणेश जी की कहानी | गणेश चतुर्थी की कथा/कहानी -

पुराणों में रूपकों की भरमार के कारण गणपति के जन्म का आश्चर्यजनक रूपकों में अतिरंजित वर्णन है। अधिकांश कथाएं ब्रह्मवैवर्त पुराण में है। गणपति कहीं शिव पार्वती के पुत्र माने गए हैं तो कहीं पार्वती के ही। पार्वती से शिव का विवाह होने के बहुत दिनों तक भी पार्वती को कोई शिशु न दे पाई तो महादेव ने पार्वती से पुण्यक-व्रत करने का वर दिया। परिणाम स्वरुप गणपति का जन्म हुआ।

नवजात शिशु को देखने ऋषि, मुनि, देवगण आए। आनेवालों में शनि देव भी थे। शनि देव जिस बालक को देखते हैं उनका सिर भस्म हो जाता है वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसलिए शनी ने बालक को देखने से इंकार कर दिया। पार्वती के आग्रह पर जैसे ही शनी ने बालक पर दृष्टि डाली उसका सिर भस्म हो गया।

सिर भस्म होने या कटने के संबंध में दूसरी कथा इस प्रकार है-एक बार पार्वती स्नान करने गईं। द्वार पर गणेश को बैठा गई आदेश दिया कि जब तक मैं स्नान करके न लौटूं किसी को प्रवेश न करने देना। इसी बीच शिव आ गए। गणेश ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें भी रोका। शिव क्रुद्ध हुए और बालक का सिट काट दिया।

तीसरी कथा इस प्रकार है- जगदम्बिका लीलायी हैं। कैलाश पर अपने अन्तःपुर में वे विराजमान थी। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीरे से गिरे उबटन को उन आदिशक्तियों को एकत्र किया और एक मूर्ति बना डाली। उन चेतानामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा मांगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर ना आने पाए। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर अंतःपुर में आने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं है। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी बालक को द्वार से हटाने की। इंद्र, वरुण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए। वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इसका इतना औद्धत्य उचित नहीं फलतः भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।

पार्वती रो पड़ीं। व्रत की तपस्या से प्राप्त प्राप्त शिशु का असमय चले जाना दुःखदायी था। उस समय विष्णु के परामर्श से शिशु हाथी का सिर काट कर जोड़ दिया गया। मृत शिशु जी उठा पर उनका शीश हाथी का हो गया। गणपति गजानन हो गए।


सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ | गणेश जी सभी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते है | गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम क्यों होती है -

सनातन धर्मानुयामी स्मार्तों के पंच देवताओं में- गणेश, विष्णु, शंकर, सूर्य और भगवती में गणेश प्रमुख हैं। इसलिए सभी शुभ कार्यों के प्रारम्भ में सर्वप्रथम गणेश की पूजा की जाती है। दूसरी धारणा यह है शास्त्रों में गणेश को ओंकार आत्मक माना गया है इसी से उनकी पूजा सब देवताओं से पहले होती है। तीसरी धारणा यह है देवताओं ने एक बार पृथ्वी की परिक्रमा करनी चाहिए। सभी देवता पृथ्वी के चारों ओर गए किंतु गणेश ने सर्वव्यापी राम नाम लिखकर उसकी परिक्रमा कर डाली जिससे देवताओं में सर्वप्रथम की इनकी पूजा होती है। लौकिक दृष्टि से एक बात सर्वसिद्ध है कि प्रत्येक मनुष्य अपने शुभ कार्य को निर्विघ्न समाप्त करना चाहता है। गणपति मंगल मूर्ति हैं, विघ्नों के विनाशक हैं। इसलिए इनकी पूजा सर्वप्रथम होती है।


गणपति के अनेक नाम | गणेश जी के अन्य नाम | किन नामों से गणेश भगवान को पुकारा जाता -

गणेश जी महान लेखक भी हैं। व्यास जी का महाभारत इन्होंने ही लिखा था। वे शिव के गणों के पति होने के कारण गणपति तथा विनायक कहलाए। गज के समान मुख होने के कारण गजानन तथा पेट बड़ा होने के कारण होने के कारण लम्बोदर कहलाए। एक दाँत होने के कारण एकदन्त कहलाए। विघ्नों के नाश कर्ता होने के नाते विघ्नेश कहलाए। हेरम्ब इनका पर्यायवाची नाम है।


महाराष्ट्र में गणेशोत्सव | गणेश चतुर्थी का उत्सव महाराष्ट्र में भव्य -

महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की प्रथा सातवाहन, राष्ट्रकूट,चालुक्य आदि राजाओं ने चलाई थी। पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव पर राष्ट्रीय रूप दिया। इसके बाद तो महाराष्ट्र में गणपति का पूजन एक पर्व बन नया। घर घर और मोहल्ले मोहल्ले में गणेश जी की मूर्ति की प्रतिमा रखकर गणेश उत्सव 10 दिन तक मनाया जाने लगा। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को गणेश जी की शोभायात्रा निकाली जाती है। गणपति की प्रतिमाओं को समुद्री या महानद में विसर्जित कर दिया जाता है। उत्सव के प्रत्येक चरण में गणपति बप्पा मोरिया, पुठचा वर्षी लोकरया अर्थात् गणपति बाबा फिर-फिर आइए अगले बरस जल्दी आइए के नारे से गूंज उठता है।


उपसंहार -

वर्तमान समाज में इनके जन्मदिन का उत्सव भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक मनाया जाता है। इसके कारण कुछ लोग यह भी मानते हैं कि महाराष्ट्र के पेशवा प्रायः मोर्चे पर रहते थे। भादों के दिनों में चौमासा के कारण वे राजधानी में ही रहते थे। अतः तभी उन्हें विधिपूर्वक पूजन का अवसर मिलता था। भारत के सभी नगरों और महानगरों में महाराष्ट्र के लोग रहते हैं। उनकी प्रेरणा से और सर्वमांगल-विघ्ननाशक होने के नाते हिंदू जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को बड़े धूमधाम से गणेश जी की शोभायात्रा निकालकर आनंद उत्सव मनाते हैं।


ADVERTISEMENT