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रुपरेखा : नव वर्ष - बैसाखी 2021 - कृषि पर्व के रूप में - ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण - बैसाख मास - मेष संक्रांति के रूप में - पंजाबियों का आत्मगौरव - उपसंहार।
नव वर्ष -भारत में काल-गणना चान्द्र मासों और सौर मासों के आधार पर होती है । जिस प्रकार चान्द्र गणना के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है, उसी प्रकार बैसाखी, मेष संक्रांति अथवा विषुवत् संक्रांति सौर नववर्ष का प्रथम दिवस है। पंजाब, सीमा प्रान्त हिमाचल, जम्मृ प्रान्तों में, उत्तर प्रदेश के गढ़वाल, कुमायूँ तथा नेपाल में, यह दिन नव वर्ष के रूप में ही मनाया जाता है। बैसाखी पंजाब और पंजाबियों का महान् पर्व है। खेत में खड़ी फसल पर हर्षोल्लास प्रकट करने का दिन है। धार्मिक चेतना और राष्ट्रीय जागरण का स्मृति दिवस है तथा खालसा पंथ का स्थापना दिन भी है।
वर्ष 2021 में बैसाखी का त्यौहार 14 अप्रैल, बुधवार के दिन बड़े उत्साह के साथ मनाई जाएगी।
बैसाखी मुख्य रूप से कृषि पर्व है। पंजाब की शस्यश्यामला भूमि में जब चैती फसल पक कर तैयार हो जाती है और वहाँ का 'बाँका छैल जवान' उस अन्न धन रूपी लक्ष्मी को संगृहीत करने के लिए लालायित हो उठता है, तो वह प्रसन्नता से मस्ती में नाच उठता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी बैसाखी का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है। औरंगजेब के अत्याचारों से भारत भूमि को मुक्त कराने एवं हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिक्खों के दसवें, किन्तु अंतिम गुरु, गोविंद सिंह ने सन् 1699 में 'खालसा पन्थ' की स्थापना इसी शुभ दिन (बैसाखी पर) की थी। 13 अप्रैल,1919 को बैसाखी के पावन पर्व पर भारत में 'रोलेट ऐक्ट' तथा अमृतसर में 'मार्शल लॉ' लागू करने के विरोध में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के समीप जलियाँवाला बाग में एक महती सभा हुई थी। इस बाग के एकमात्र द्वार पर जनरल डायर ने अधिकार करके बिना कोई चेतावनी दिए सभा पर गोली बरसाना आरंभ कर दिया। इस नृशंस हत्याकांड में 1500 व्यक्ति या तो मारे गए या मरणासन्न हो गए। अनेक लोग अपनी जान बचाने के लिए कुए में कूद पड़े। चार -पाँच सौ व्यक्ति ही जीवित बच जाए। शहीदों की स्मृति में 'जलियाँवाला बाग समिति' ने लाल पत्थरों का सूंदर स्मारक बनवाया है।
भारत में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं । बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र युता पूर्णिमा मास में होने के कारण इस मास को बैसांख कहते हैं । इसी कारण बैसाख मास के प्रथम दिन को 'बैसाखी' नाम दिया गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया। बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है। इसे 'मेष संक्रांति' भी कहते हैं। रात-दिन एक समान होने के कारण इस दिन को ' संवतहार' भी कहा जाता है। पद्मय पुराण में बैसाख मास को भगवत्प्रिय होने के कारण 'माधवमास' कहा गया है। इस मास में तीथों पर कुम्भों का आयोजन करने की परम्परा है। बैसाखी के दिन समस्त उत्तर भारत में पवित्र नदियों एवं सरोवरों में स्तान करने का माहात्म्य है। सभी नर-नारी, चाहे खालसा पंथ के अनुयायी हों अथवा वैष्णव धर्म के, प्रात:काल पवित्र सरोवर अथवा नदी में स्नान करना पुण्य समझते हैं । इस दिन गुरुद्वारों और मन्दिरों में विशिष्ट उत्सव मनाया जाता है।
सौर नववर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस त्यौहार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। गढ़वाल, कुमाऊँ, हिमाचल प्रदेश आदि सभी पर्वतीय प्रदेशों में और नेपाल में इस दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं । ये मेले अधिकांशत: उन स्थानों पर लगते हैं, जहाँ दुर्गा देवो के मंदिर हैं या गंगा आदि पवित्र नदियाँ हैं। लोग इस दिन श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं और नए-नए वस्त्र धारण कर उल्लास के साथ मेला देखने जाते हैं। न केवल उत्तर में, अपितु उत्तर पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी मेष संक्रान्ति आने पर 'बिहू' पर्व मनाया जाता है। बैसाख मास में वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है। बैसाखी का त्यौहार प्राकृतिक शोभा और वातावरण की मधुरता के कारण भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस वातावरण में जन जीवन में उल्लास एवं उत्साह का संचार होना स्वाभाविक ही है। आमोद प्रमोद की दृष्टि से पंजाब में ढोल की आवाज और भाँगड़ा की धुन पर अनगिनत पाँव थिरक उठते हैं । नृत्य में ऊँचा उछलना, कूदना-फाँदना एवं एक-दूसरे को कन्धे पर उठाकर नृत्य करना भाँगड़ा की विशिष्ट पद्धतियाँ हैं। तुर्रेदार रंग-बिरंगी पगड़ी, रंगीन कसीदा की हुईं बास्कट नृत्य के विशिष्ट और प्रिय परिधान हैं।
बैसाखी पर पंजाबियों का आत्मगौरव दर्शनीय होता है। देश मेरा पंजाब नी, होर बस्से कुल जहान में उसका पंजाब के प्रति गर्व टपकता है । गबरु मेरे देश दा, बाँका छैल जवान में उसके पुरुषों का पौरुष झलकता है। मेहनत ऐसे जवान दी, सोना दये पत्तार में पंजाब का परिश्रम और पुरुषार्थ प्रकट होता है। नह्ठी देश पंजाब दीं, हीरा बिचों हीर में पंजाब की नारी का अनिन्ध सौंदर्य दमकता है ।
बैसाखी हर साल अंग्रेजी पंचांग के अनुसार प्राय 13 अप्रैल को आती है। इसके आते ही पंजाब की आत्मा झझकोरती है, पर दुर्भाग्य से आज वह आत्मा विभक्त है। मंथरा रूपी राजनीति ने पंजाब के राम और भरत को विभकत कर दिया है। आज वहाँ की शस्यश्यामला भूमि अन्न के साथ फूट के काँटे भी पैदा करती है । आज बैसाखी पर नाचने वाले 'भंगड़े' में शिव के ताण्डव का विध्वंस प्रकट होता है। इसलिए आज बैसाखी आकर पंजाब के तरुणवर्ग को याद दिलाती है उस खालसा पंथ को, जो हिन्दू संरक्षण की प्राचीर थी। वह याद दिलाती है उस भाई-चारे की जहाँ माता दश गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित कर 'सिक्ख' बनाती थी। पंजाब की धरती माँ बैसाखी के पावन पर्व पर दोनों बंधुओं से अभ्यर्थना करती है। सचमुच बैसाखी पंजाबी के लिए ही नहीं पुरे देश के लिए पूर्व त्यौहार हैं।
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