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रूपरेखा : प्रस्तावना - ईद-मिलाद-उन-नबी 2023 में कब है - ईद-मिलाद-उन-नबी का इतिहास - ईद-मिलाद-उन-नबी क्यों मनाया जाता है - मीलाद उन नबी कैसे मनाया जाता है - ईद-मिलाद-उन-नबी का महत्व - उपसंहार।
परिचय | ईद-मिलाद-उन-नबी की प्रस्तावना -मीलाद उन-नबी या बारावफात इस्लाम धर्म के मानने वालों के कई वर्गों में एक प्रमुख त्यौहार है। इस शब्द का मूल मौलिद (Mawlid) है जिसका अर्थ अरबी में "जन्म" है। अरबी भाषा में 'मौलिद-उन-नबी' का मतलब है हज़रत मुहम्मद का जन्म दिन है। यह त्यौहार 12 रबी अल-अव्वल को मनाया जाता है मीलाद उन नबी संसार का सबसे बड़ा जशन माना जाता है। 1588 में उस्मानिया साम्राज्य में यह त्यौहार का प्रचलन जन मानस में सर्वाधिल प्रचलित हुआ।
वर्ष 2023 में बारावाफात या मीलाद उन नबी का यह पर्व 28 सितंबर, गुरुवार के दिन मनाया जायेगा।
बारावफात या मीलाद उन नबी के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। विभिन्न मुस्लिम समुदायों का इस पर्व को लेकर अपना अलग-अलग तर्क है। सुन्नी समुदाय द्वारा इस दिन को शोक के रुप में मनाया जाता है, वही शिया समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न के रुप में मनाया जाता है। इसी तारीख को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था। इस्लाम के रुप में उनके द्वारा विश्व को एक शानदार तोहफा दिया गया था क्योंकि उनके द्वारा इस्लाम का संदेश देने से पहले अरब समाज में तमाम तरह की बुराईयां व्याप्त थी। लोगो द्वारा अपनी बेटियों को जिंदा जला दिया जाता था। जरा जरा सी बातों पर झगड़ा और तलवारों का इस्तेमाल करना आम बात थी। लेकिन रसूल के नबी मोहम्मद साहब ने इस्लाम के द्वारा लोगो को जीने का नया तरीका सीखाया।
उनके जीवन में उनकी उपलब्धियां अनगिनत हैं क्योंकि अपने शिक्षाओं द्वारा उन्होंने अरबों के कबिलाई समूहों को एक सभ्य समाज में बदल दिया। इस्लाम के पूर्व समाज में इन बुराईयों के कारण लोग छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे का कत्ल कर दिया करते थे। इस्लाम के आने के बाद अरब के बर्बर कबीलों में ना सिर्फ सभ्यता का उदय हुआ बल्कि की भाई-चारे का भी विकास हुआ और यह सब संभव सिर्फ इस्लाम और कुरान के संदेश के कारण हो पाया। वैसे तो इस त्योहार को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह पर्व पैगंबर मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद से ही मनाया जा रहा है। हालांकि सन 1588 में उस्मानिया साम्राज्य के दौरान इस त्योहार को काफी लोकप्रियता मिली और तब से हरवर्ष की इस तरीख को काफी भव्य रुप से मनाया जाना लगा। यहीं कारण हर वर्ष इस्लामिक कैलेंडर की 12 रबी अल अव्वल को यह त्योहार इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
बारावफात या फिर जिसे ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ के नाम से भी जाना जाता है, ईस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। पूरे विश्व भर में मुसलमानों के विभिन्न समुदायों द्वारा इस दिन को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि मानवता को सच्चाई और धर्म का संदेश देने वाले पैंगबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म इसी दिन हुआ था और इसी तारीख को उनका देहांत भी हुआ था। ऐसा माना जाता है कि अपने इंतकाल से पहले मोहम्मद साहब बारह दिनों तक बीमार रहे थे।
बारा का मतलब होता है बारह और वफात का मतलब होता है इंतकाल और क्योंकि बारह दिनों तक बीमार रहने के पश्चात इस दिन उनका इंतकाल हो गया था इसलिए इस दिन को बारावफात के रुप में मनाया जाता है। यहीं कारण है कि इस्लाम में बारावफात को इतने उत्साह के साथ मनाया जाता है।
बारावफात के इस पर्व को मनाने को लेकर शिया तथा सुन्नी समुदाय के अपने अलग-अलग तरीके है। सामान्यतः इस दिन मुस्लिमों के विभिन्न समुदायों द्वारा पैगंबर मोहम्मद के द्वारा बताये गये मार्गों और विचारों को याद किया जाता है तथा कुरान का पाठ किया जाता है। इसके साथ ही बहुत सारे लोग इस दिन मक्का मदीना या फिर दरगाहों जैसे प्रसिद्ध इस्लामिक दर्शन स्थलों पर जाते है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन को नियम से निभाता है। वह अल्लाह के और भी करीब हो जाता है और उसे अल्लाह की विशेष रहमत प्राप्त होती है।
इस दिन रात भर प्रार्थनाएं की जाती है, सभाओं का आयोजन किया जाता है। तमाम प्रकार के जुलूस निकाले जाते है। इस हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में जो गीत गाया जाता है, उसे मौलूद कहा जाता है। इस संगीत को लेकर ऐसा माना जाता है कि इस संगीत को सुनने वाले को स्वर्ग नसीब होता है। इसके साथ ही इस दिन लोगो द्वारा उनके जयंती की खुशी में मिठाईयां भी बांटी जाती है। बारावफात के दिन को सुन्नी समुदाय के मुसलमानों द्वारा मोहम्मद साहब के इंतकाल के कारण शोक के रुप में मनाया जाता है। शिया समुदाय के लोगो द्वारा इस दिन को काफी उत्साह तथा धूमधाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि उन लोगो का मानना है कि इस दिन पैगंबर मुहम्मद द्वारा हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया गया था।
बारावफात के इस दिन को ‘ईद ए मिलाद’ (मीलाद उन नबी) के नाम से भी जाना है जाता है। जिसका अर्थ है पैगंबर के जन्म का दिन। इस दिन रात भर तक सभाएं की जाती है और उनकी शिक्षा को समझा जाता है। इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि यदि इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षा को सुना जाये, मौत के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी मुस्लिम नमाज पड़ने के लिए मस्जिदों में जाते है। यह दिन हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि भले ही पैगंबर मोहम्मद हमारे बीच में ना हो लेकिन उनकी शिक्षाए समाज को आज भी अच्छा बनाने का प्रयास कर रही हैं।
मीलाद उन-नबी या बारावफात इस्लाम धर्म के मानने वालों के कई वर्गों में एक प्रमुख त्यौहार है। बारावफात या मीलाद उन नबी के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। विभिन्न मुस्लिम समुदायों का इस पर्व को लेकर अपना अलग-अलग तर्क है। सुन्नी समुदाय द्वारा इस दिन को शोक के रुप में मनाया जाता है, वही शिया समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न के रुप में मनाया जाता है। इसी तारीख को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था। इस दिन रात भर प्रार्थनाएं की जाती है, सभाओं का आयोजन किया जाता है। तमाम प्रकार के जुलूस निकाले जाते है। इस हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में जो गीत गाया जाता है, उसे मौलूद कहा जाता है।
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