ईद-उल-जुहा पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - ईद-उल-जुहा 2023 में कब है - ईद-उल-जुहा का इतिहास - ईद-उल-जुहा क्यों मनाया जाता है - ईद-उल-जुहा कैसे मनाया जाता है - ईद-उल-जुहा का महत्व - उपसंहार।

परिचय | ईद-उल-जुहा की प्रस्तावना -

इस्लाम के मुख्य त्योहारों में ईद उल जहा को भी शामिल किया जाता है। ईद उल जुहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। बकर ईद अरबी शब्द “बकर” से लिया गया है। बकर का मतलब होता है बड़ा या विशाल। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ईद उल अजहा को बेहद पाक पर्व माना जाता है। सभी मुसलमान इस त्यौहार का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। बकरीद पर्व की नींव ही कुर्बानी शब्द पर रखी गई थी। इसका नैतिक अर्थ यह होता है कि इंसान अपने अंदर की पशु वृत्ति यानी अपने अंदर की बुराइयों की कुर्बानी दे।


ईद-उल-जुहा 2023 में कब है | ईद-उल-जुहा कब मनाया जाता है -

वर्ष 2023 में ईद-उल-जुहा 28 जून, बुधवार को शुरु होकर 29 जून, गुरुवार को समाप्त होगा।


ईद-उल-जुहा की शुरुआत | ईद-उल-जुहा का इतिहास -

ईद-उल-जुहा का इतिहास ये बताता है कि, भारत में इस पर्व का इतिहास काफी पुराना है। ऐतिहासिक लेखों से पता चलता है कि मुगल बादशाह जांहगीर अपनी प्रजा के साथ मिलकर ईद-उल-जुहा का यह महत्वपूर्ण त्योहार काफी धूम-धाम के साथ मनाया करते थे। इस दिन उनके द्वारा गैर मुस्लिमों के सम्मान में शाम के समय दरबार में विशेष शाकाहारी भोज का आयोजन किया जाता था। जिसका शुद्ध शाकाहारी भोजन हिंदू बावर्चियों द्वारा ही बनाया जाता था। इस दिन के खुशी में बादशाह दान भी करते थे, जिसमें वह अपनी प्रजा को कई प्रकार के तोहफे प्रदान किया करते थे। अपने इन्हीं सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक कारणों से आज भी भारत में इस पर्व को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


ईद-उल-जुहा क्यों मनाया जाता है | ईद-उल-जुहा का पर्व क्यों मनाते है -

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पैगंबर हजरत इब्राहिम ने सपने में देखा कि, अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश जारी किया। काफी सोच विचार करने के बाद उन्होंने अपनी सबसे प्यारी चीज पर गौर किया। उनके लिए उनकी सबसे प्यारी चीज उनका बेटा इस्माइल था। इब्राहिम जिसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे।

इब्राहिम के आगे कुआं पीछे खाई जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई थी। एक तरफ उनका सबसे प्यारा बेटा है दूसरी तरफ अल्लाह का आदेश। काफी सोच विचार करने के बाद इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अपने सपने के बारे में बताया। तो इस्माइल ने अल्लाह की बंदगी में अपना सब कुछ न्योछावर करने की बात कबूली और कुर्बानी देने के लिए राजी हो गया। गले मिलने यानी आखिरी मुलाकात के बाद इस्माइल ने अपनी गर्दन झुकाई तथा इब्राहिम को कुर्बानी लेने का आदेश दिया। आदेश मिलते ही इब्राहिम ने उनके बेटे इस्माइल के गर्दन पर छुरी फेर दी। कहते हैं कि अल्लाह को उनकी बंदगी इतनी पसंद आई कि उन्होंने छुरी लगने से पहले स्माइल को हटाकर एक मेमने को रख दिया। इस तरह अल्लाह ने इस्माइल को नई जिंदगी दी। यहीं कारण है कि इस दिन दुनियाभर के मुसलमान अल्लहा के प्रति अपनी आस्था को प्रदर्शित करने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते है।


ईद-उल-जुहा कैसे मनाया जाता है | ईद-उल-जुहा का पर्व कैसे मनाते है -

ईद उल अजहा आने के कई दिनों पहले ही मुस्लिम लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने लगते हैं। इस दिन मस्जिदों को आकर्षक रूप से सजा दिया जाता है। ईद उल फितर की तरह ही इस त्यौहार के दिन भी मुस्लिम लोग मस्जिदों में जाकर सामूहिक नमाज अदा करते हैं। नमाज अदा करने के बाद बकरों की कुर्बानी दी जाती है। उसके बाद उसके मांस को पक्का कर उसका एक तिहाई भाग परिवार वालों के लिए बाकी दोस्तों और मोहल्ले वालों के लिए रखा जाता है।

इस दिन मुसलमान महिलाएं हाथों में मेहंदी तथा नए कपड़े धारण करती हैं। बच्चों को विशेष खरीदारी करने के लिए ईदी जाती हैं। इस दिन विशेष पकवानों को बनाया जाता है जिसमें बिरयानी तथा सेवइयां मुख्य होती है। इन पकवानों को अपने पड़ोसियों तथा जानने वालों के यहां पहुंचाया जाता है। शाम के समय विशेष कार्यक्रम का आयोजन होता है जिसमें गीत, संगीत, भाषण तथा मेल मिलाप मुख्य होता है। बड़े-बड़े मुसलमान नेता इस दिन इफ्तार पार्टी का आयोजन करते हैं जिसमें ऊंचे ओहदे धारी नेता भी शामिल होते हैं। इस तरह ईद-उल-जुहा या बकरीद पर्व मनाया जाता है।


ईद-उल-जुहा का महत्व | ईद-उल-जुहा का पर्व का महत्व -

ईद-उल-जुहा यह मुसलमानों के लिए विशेष इसलिए भी है कि इस दिन हर मुसलमान आपसी दुश्मनी को भूलकर एक साथ एकत्रित होता है। त्याग के रूप में दान को हर धर्म में तवज्जो दिया जाता है। इस इस्लामिक पर्व के दिन भी काबिल लोग गरीबों को दान करते हैं। यह पर्व हमें प्रेम, भाईचारे तथा त्याग के महत्व को समझाता है। इस दिन ईश्वर की राह में अपनी सबसे प्रिय वस्तु के दान का रिवाज है। यह दिन इंसान के मन में ईश्वर के प्रति विश्वास भावना को बढ़ाता है। इस दिन लोग मिलजुल कर इस पर्व का आनंद लेते है। गरीब लोगों की मदद करते है तथा अपनी बुरी आदतों को त्यागने का प्रण लेते है। जानवर की कुर्बानी तो बस एक प्रतीक है, असली कुर्बानी का अर्थ तो अपनी सुख-सुविधाओं को छोड़कर लोगो की सेवा और सहायता करने से है।


उपसंहार -

ईद-उल-जुहा इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पूरे विश्व भर के मुस्लिमों द्वारा काफी जोश तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी का मकसद होता है कि इसका फायदा अधिक से अधिक गरीबों तक पहुंचे सके। यहीं कारण है कि इस दिन कुर्बानी के तीन हिस्से किया जाते है। जिसमें से एक हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है वहीं बाकी का दो हिस्सा गरीबों और जरुरतमंदों में बांट दिया जाता है। भारत में भी इस पर्व को काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है और देशभर में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है।


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