अविस्मरणीय दृश्य पर निबंध

ADVERTISEMENT

भुलाए नहीं भूलता वह दृश्य पर हिंदी निबंध - अद्भुत दृश्य का आँखों देखा हाल - Essay on Unforgettable Scene in Hindi - Scene that Does not Forget Essay in Hindi - Varnatmak Nibandh

रूपरेखा : प्रस्तावना - अद्भुत अदृश्य का आँखों देखा हाल - गणेश जी को दुग्धपान - विभिन्‍न प्रेस द्वारा प्रतिक्रिया - सरकार द्वारा प्रचार माध्यमों में खंडन - उपसंहार।

परिचय | अविस्मरणीय दृश्य की प्रस्तावना | अद्भुत अदृश्य का आँखों देखा हाल -

जीवन में कई बार ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जो अपनी अपूर्वता, विचित्रता और विलक्षणता के कारण हमें मुग्ध और स्तव्ध कर देते हैं। ऐसा अदभुत, अप्रत्याशित, असाधारण या विलक्षण दृश्य सहसा देखने पर उसका कारण, रहस्य या स्वरूप समझ में नहीं आता। ऐसा ही अद्भुत दृश्य आँखों देखा है, इसलिए उसकी सत्यता में अविश्वास प्रकट करना प्रकृति और परमेश्वर पर अश्रद्धा प्रकट करना ही कह सकते हैं।


गणेश जी को दुग्धपान -

आश्विन कृष्ण द्वादशी तदनुसार ब्राह्म मुहूर्त से रात्रि 12 बजे तक विघ्र विनाशक गणपति, उनके पिता शंकर, माता पार्वती तथा शिववाहन नंदी की प्रतिमाओं ने विश्व में सर्वत्र दुग्धपान किया। प्रतिमाएं चाहे प्रस्तर की थीं, पीतल, ताँबे या चाँदी अथवा अन्य धातुओं की, सबने ही दुग्धपान किया। उस दिन प्रात: से ही मंदिरों में जन-समूह उमड़ पड़ा। ठाठें मारने लगा। हर हिन्दू गणेश जी को दुग्धपान करवा कर अपना जीवन कृतार्थ करना चाहता था। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनेक भक्त मंदिरों में पंक्तियाँ लगवाने लगे, पर जनता को धैर्य कहाँ ? जनता ही क्यों ? नेतागण, पत्रकार और तथा बुद्धिजीवी भी इस अलौकिक दृश्य को देखने चल पड़े। व्यवस्था रखने के लिए पुलिस को मंदिरों की घेरा-बंदी करनी पड़ी। 'ओम नमः शिवाय' का जाप शुरू हो गया। भक्तगण मंदिर में बैठकर गणेश जी की आरती गाने लगे।


विभिन्‍न प्रेस द्वारा प्रतिक्रिया -

प्रेस फोटोग्राफर इस दृश्य के चित्र और पूरे कार्यक्रम की रील खींचने लगे स्थानीय नेता जब मंदिर में आते तो भीड़ में हल-चल मच जाती। उनको दर्शन करवाने के लिए पुलिस को कुछ धका-मुक्की करनी पड़ती। तत्कालीन विपक्ष के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन चुनाव-आयुक्‍त श्री टी.एन. शेषन तथा शिक्षाविद् किरीट जोशी ने इस तथ्य को स्वीकार किया। विश्व हिन्दू परिषद्‌ ने तो इसमें भारत के भाग्य-परिवर्तन के लक्षण महसूस किए। साधु-महात्माओं ने भारत के उज्ज्वल भविष्य की झाँकी मानी।

सनसनीखेज खबरों के लिए प्रसिद्ध 'सन' के संवाददाता डेविड वुडहाउस ने साउधाल (इंग्लैंड के) मंदिर का निरीक्षण करने के बाद लिखा, 'मैंने आश्चर्य के साथ देखा कि दो हिन्दू प्रतिमाओं ने मेरे हाथ को चम्मच से दूध पिया। नंदी की प्रतिमा ने केवल 10 सेकंड में पूरी चम्मच दूध गड़प लिया। मैंने प्रतिमा की पूरो तरह जाँच करने पर पाया कि वह जमीन में गड़ी हुई थी और कहीं कोई चालाकी नहीं थी। मैंने देखा और विश्वास किया कि कुछ विचित्र घट रहा है। पर वह क्या है ? दि टाइम्स ने दूध और चमत्कार के बारे में' शीर्षक सम्पादकीय लेख में कहा कि "हमारे मध्य रह रहे भारतीयों के व्यवहार से सिद्ध होता है कि प्रगतिशील खुले मस्तिष्क और धार्मिक आस्थाएं साथ-साथ रह सकते हैं।"


सरकार द्वारा प्रचार माध्यमों में खंडन -

भारत को तत्कालीन नास्तिक (संयुक्त) सरकार ने दूरदर्शन तथा अन्य प्रचार माध्यमों से इसका जोरदार खंडन किया। इतना ही नहीं दूरदर्शन के 'आज तक' के कार्यक्रम में तो इसका मजाक उड़ाते हुए एक मोची को जूता गाँठने के लोहे के औजार को दूध पिलाते दिखाया गया।

कुछ बुद्धिजीवियों ने दुग्ध-पान को नकारा तो नहीं, किन्तु इसे विज्ञान का सिद्धांत माना। उनके अनुसार पृष्ठ तनाव वेग (सरफेसटेंशन), गुरुत्वाकर्पण (केपीलेटी एक्शन) एवं मूर्तियों के छिद्रयुक्त होने (फोरस) होने में छिपा हुआ है । यह एक सामान्य घटना थी, कोई चमत्कार नहीं। इसे चमत्कार मानना महज अन्ध- विश्वास है। यदि यह विज्ञान का सिद्धांत है तो उसमें शाश्वत सत्य के दर्शन होने चाहिएं। दूसरी ओर, इटली के एक छोटे से गाँव में माता मरियम को आँखों से खून के आँसू बहने का समाचार आने पर लाखों कैथालिक श्रद्धालु वहाँ पहुँचे। स्वयं पोष ने भी वेटीकन से अपना दूत इस सत्य का परीक्षण करने भेजा। किसी ने इस घटना का उपहास नहीं उड़ाया।


उपसंहार -

वस्तुत: इस दृश्यमान भौतिक जगत के पीछे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी सक्रिय हैं, जिनके कार्यों को सामान्य तर्क बुद्धि से समझना और वैज्ञानिकता का आवरण पहनाना संभव नहीं । यह तो प्रभु पर, उसको अलौकिकता पर तथा जगतू-नियंता की दिव्य शक्ति पर विश्वास और श्रद्धा रहने पर ही इसका महत्त्व समझा जा सकता है ।


ADVERTISEMENT