सड़क दुर्घटना का दृश्य पर निबंध

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एक बस दुर्घटना का दृश्य पर हिंदी निबंध - दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या है - सड़क दुर्घटना का आँखों देखा हाल - ड्राइवर ने की लापरवाही - Essay on Road Accident Scene in Hindi - Bus Accident Scene Essay in Hindi - Varnatmak Nibandh

रूपरेखा : प्रस्तावना - दुर्घटनाओं के मुख्य कारण - सड़क दुर्घटना का वर्णन - ड्राइवर की लापरवाही - ताँगे और बस की टक्कर - उपसंहार।

परिचय | सड़क दुर्घटना का दृश्य की प्रस्तावना -

जनसंख्या की अतिवृद्धि और यातायात के साधनों का अत्यधिक प्रसार सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं । दस वर्ष पूर्व जितनी सड़क दुर्घटनाएँ होती थीं, आज उससे कई गुणा अधिक होती हैं। दुर्घटनाएँ न हों या बहुत ही कम हों, सरकार ने इसके लिए अनेक उपाय किए हैं, किन्तु जसे सरक्षात्मक उपाय बरतती जाती है, वैसे-वैसे दुर्घटनाएँ भी बढ़ती जाती हैं। समाचार-पत्रों में प्रतिदिन दुर्घटना का खबर आते रहते हैं।


दुर्घटनाओं के मुख्य कारण | क्यों होता है दुर्घटना -

सड़क पर चलता हुआ बच्चा कार की चपेट में आया और भगवान ने उस अविकसित कली को अपने दरबार में पेश करने को आज्ञा दे दी। ताँगे में बैठे यात्री बातचीत में मस्त चले जा रहे हैं, अकस्मात दिल्‍ली-परिवहन तथा प्राइवेट ब्लू लाइन की बस टकराई और बातचीत बदल गई 'हाय! हाय !! में।

ये दुर्घटनाएँ न मनुष्य की उपयोगिता और महत्ता को देखती हैं और न समय और कुसमय को। कोई व्यक्ति किसी आवश्यक कार्य से जा रहा है, कितने उत्साह के साथ किसी स्वागत-समारोह या विवाहोत्सव की तैयारियाँ हो रही हैं, इन बातों से दुर्घटना का कोई वास्ता नहीं। जरा झटका लगने की देर है और मानव की जीवन-लीला समाप्त ! दुर्घटना को तो किसी की बलि चाहिए चाहे वह कोई भी हो। किसी का लिहाज नहीं, मोहब्बत नहीं। हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान और तत्कालीन अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. रघुवीर की मृत्यु कार-दुर्घटना में ही हुईं थीं।


सड़क दुर्घटना का वर्णन | सड़क दुर्घटना की जानकारी -

आइए, आपको एक हृदय-विदारक सड़क-दुर्घटना का वर्णन सुनाएँ। दिल्‍ली में एक स्थान है तीस हजारी। उसके आगे सीधे चलें तो मोरीगेट का पुल आता है। इस मार्ग के बीच में बाएँ हाथ को एक सड़क मुड़ती है, जो 'टेलीफोन एक्सचेंज' और 'न्यू कोर्ट्स के मध्य से होती हुई निकल्सन पार्क की ओर चली जाती है। तीस हजारी से न्यू कोर्ट्स को मुड़ने वाली सड़क पर बीच में यातायात नियंत्रक 'सिपाही' के खड़े होने का गोल चबूतरा है। इसके आगे मोरीगेट पुल तक 'एक मार्गीय' यातायात व्यवस्था है।

रात्रि के आठ बजे थे। मैं जामा मस्जिद से दिल्‍ली-परिवहन की रूट नम्बर ग्यारह की बस में बैठा राणा प्रताप बाग की ओर जा रहा था। मेरे लिए बस के हिचकोले माता की गोदी का हिलोरों में बदल जाते हैं और मैं प्राय: बस में सो जाता हूँ। उस दिन भी मुझे निद्रा देवी ने धर दबाया था। चलती हुई बस में यात्रियों के चढ़ने-उतरने या झटके के साथ बस रुकने से निद्रा में विघ्न पड़ता था और मैं एक बार आँख खोलकर देख लेता था कि बस कहाँ तक पहुँच गई है । फतेहपुरी बस-स्टॉप से चलकर बस मोरीगेट पर रुकी । यहाँ भीड़ अधिक थी। सभी यात्री चढ़ जाना चाहते थे। इधर, बस ठसाठस भरी हुई थी। अतः कंडक्टर सबको लेना नहीं चाहता था। उसने दो-चार सवारियाँ लीं और दो बार सीटी बजाकर बस को चलाने का आदेश दे दिया। ड्राइवर ने गाड़ी पहले गेयर में डाली और तेजी से चला दी। ड्राइवर अब तेजी के मूड में आ गया था।


ड्राइवर की लापरवाही -

बस के स्थान पर लगभग चालीस आदमी खड़े थे। अंत: धक्कापेल होनी स्वाभाविक थी। परिणामत: मेरी नींद भी रफूचक्कर हो गई। इधर 'न्यू कोर्ट्स' बस स्टॉप पर एक नवदम्पती ने बस को रोकने का इशारा किया, किन्तु ड्राइवर ने बस को नहीं रोका । बस यहाँ से मुडती हुई टेलीफोन एक्सचेंज से सिपाही के चबूतरे के पीछे बनी ईंटों के इमारत और एक फुट ऊँचे चबूतरे के छोर पर एक सेकंड रुकी । तेज बस के अकस्मात रुकने पर थोड़ा झटका लगा। पालक झपकते ही बस पुनः तेज हो गई और चल पड़ी सड़क को दो भागों में बाटने वाली पटरी के दाहिनी ओर मोड़ काटने के लिए। गलत दिशा में बढ़ती हुई बस को देखकर मेरा दिल दहल-सा गया। आत्मा की आवाज हृदय से सुनी जा सकती है। इधर मेरा दिल अज्ञात दुर्घटना की आशंका से धड़का ही था कि एकदम बस के टकराने और लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज कानों में पड़ी। बस लड़खड़ाती हुई-सी एकदम रुक गई। बस के एकदम रुकने से यात्री एक-दूसरे के ऊपर गिर पड़े।


ताँगे और बस की टक्कर -

यात्री किसी तरह शनै:-शनैः (आराम से) बस से बाहर निकले। मैं भी बाहर आया। देखा, बस और ताँगे की टक्कर हुई थी। ताँगे का घोड़ा मर गया था और उसके नीचे पड़ा था उसका चालक। वह भी अपने प्रिय घोड़े के मोह में प्राण त्याग चुका था। ताँगे में बैठी सवारियों में दो व्यक्ति उछल कर दूर जा पड़े थे, किन्तु अगली सीट पर बैठे दो व्यक्ति टूटे ताँगे के नीचे पड़े कराह रहे थे।

इधर, बस में भीड़ अधिक होने के कारण जो लोग पायदान पर लटक रहे थे, उनमें से दो बस के झटके से नीचे गिर पड़े और एक के ऊपर से बस निकल गईं। उसका शरीर खून से लथपथ पड़ा था। यह सब-कुछ पलक झपकते हो गया। ताँगा कैसे और किस ढंग से टकराया, बस वाले ने बाई ओर से न जाकर दाई ओर से बस को क्यों निकाला ? बस के स्थान पर चालीस स्पीड' क्‍यों लीं? पायदान पर यात्रियों को क्‍यों खड़ा रहने दिया गया ? आदि तथ्यों को अब झूठी-सच्ची गवाहियों से तोड-मरोड़कर बदला जाएगा। ये सब बातें मेरे दिमाग में घूम गई। पाँच मिनट में पुलिस पहुँच गई। उसने बस, बस ड्राइवर और कण्डक्टर को अपने 'कब्जे' में ले लिया। जनता को घटना स्थल से 20-20 गज की दूरी तक पीछे हटा दिया | फिर ताँगे में बैठे चारों व्यक्तियों और कुछ बस यात्रियों को रोक लिया।


उपसंहार -

मार्ग-विभेदक निर्जीव पटरी चालक को मूर्खता पर हँस रही थी। प्राय: सड़कों पर लिखी आदर्श पंक्ति' दो क्षण की बचत के लिए जीवन को खतरे में न डालिए' बस-चालक का उपहास कर रही थी। मरने वालों की संख्या तीन थी। मामूली चोटों वाले अब भी कराह रहे थे। मैं दु:खी हृदय से तीस हजारी की ओर चल पड़ा। आँखों में अश्रु-बिंदु अनजाने ही आ गए थे।


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