चुनाव स्थल का दृश्य पर निबंध

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चुनाव क्षेत्र का हाल पर हिंदी निबंध - निर्वाचन क्षेत्र का आंखों देखा हाल पर निबंध - मतदान प्रारंभ का दृश्य - पोलिंग बूथ का दृश्य - समर्थकों के बीच झगड़ा - वर्णनात्मक निबंध - Essay on Scene of Election Place in Hindi - Constituency Scene Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - जनता की परिपक्वता की परीक्षा - मतदान प्रारंभ का दृश्य - पोलिंग बूथ का दृश्य - पोलिंग स्टेशन पर नारेबाजी - बूथ के भीतर का दृश्य - समर्थकों के बीच झगड़ा - उपसंहार।

परिचय | चुनाव क्षेत्र का दृश्य की प्रस्तावना -

विश्व में चुनाव का महत्व अधिक माना जाता है। इसी तरह भारत देश में भी चुनाव का अपना अलग ही पहचान बन गयी है। देश में हर दूसरे दिन चुनाव देखने को मीलता है कभी विधानसभा की चुनाव, तो कभी मंत्री पद की चुनाव, तो कभी प्रधानमंत्री की चुनाव, तो कभी मुख्यमंत्री की चुनाव, तो कभी पंचायत की चुनाव आदि जैसे चुनाव देश में आये दिन होते रहते हैं। इसी बीच में एक चुनाव स्थल पंहुचा जहाँ का दृश्य किसी त्यौहार के मेले दृश्य से कम नहीं था।


जनता की परिपक्वता की परीक्षा -

'चुनाव' जनता द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने का माध्यम है; जनता को राजनीतिक परिपक्वता की परीक्षा का अवसर है । चुनाव पानीपत या कुरुक्षेत्र का युद्ध नहीं, अपितु प्रयाग या हरिद्वार का कुंभ-सा है। भारत में तेरहवाँ महानिर्वाचन सितम्बर-अक्तूबर 1999 में हुआ। दिल्‍ली की सात लोक-सभाई सीटों का चुनाव 6 सितम्बर 1999 को था। सी.सी. कॉलोनी के लिए दो पोलिंग बूथ बने थे। दोनों पोलिंग बूथ राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, सी.सी. कॉलोनी में ही थे।


मतदान प्रारंभ का दृश्य | चुनावी क्षेत्र में मतदान शुरू होने के बाद का नजारा -

18 वर्ष से कम का युवक वोट डालने का अधिकारी नहीं होता । इस कारण हम बालक वोट के अधिकारी नहीं थे, किन्तु किसी बारात में जाने का निमंत्रण न मिले तो उसकी शोभा तो देखी जा सकती है, उसके श्रुति-मधुर गीतों का आनंद तो लिया जा सकता है। अत: हम भी कौतूहल, उत्सुकता और जिज्ञासावश पोलिंग बूथ के आसपास मँडराने लगे।

मतदान प्रात: 7 बजे आरम्भ हुआ । 8-10 मतदाताओं की पंक्ति लगी थी। एक-एक करके मतदाता अंदर जाता था। अन्दर जाने और बाहर आने की प्रक्रिया में 5 मिनट लग जाते थे। लगता था पोलिंग और प्रिजाइडिंग अधिकारी धीमा थे, अत: अन्दर की कार्यवाही चींटी की चाल से चल रही थी। परिणामत: 9 बजे तक लगभग 50 मतदाता प्रतीक्षा रत हो गए। लोग कानाफूसी कर रहे थे। एक-दो साहसी युवक अधिकारियों से बात करने करने आगे बढ़े, तो रिजर्व पुलिस के सिपाही ने उन्हें रोक दिया। उम्मीदवारों के चुनाव-एजेण्टों से शिकायत की गई। उन्होंने चुनाव अधिकारी से बातचीत की, किन्तु वे अपनी कार्य-पद्धति को बदलने के लिए तैयार न हुए।


पोलिंग बूथ का दृश्य | चुनाव स्थल में मतदान का दृश्य -

पोलिंग-बूथ के बाहर दूर-दूर तक न शामियाने लगे थे, न झंडियाँ। मैंने कौतृहलवश एक चुनाव-एजेण्ट से इसका कारण जानना चाहा। उसने बताया कि प्राय: झगड़े का कारण तम्बुओं में एकत्रित समर्थक होते हैं, जो नारे लगाते-लगाते हाथापाई कर बैठते थे। अत: शामियाने लगाने पर रोक लगा दी गई है। फिर भी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लोग चुनाव केन्द्र से काफी दूर कुर्सी-मेज डाले बैठे थे । वहीं वे लोग वोटरों को हाथ जोड़कर या हाथ मिलाकर अपने उम्मीदवार को वोट देने के लिए संकेत करते थे या कहते थे।


पोलिंग स्टेशन पर नारेबाजी -

बारह बजते-बजते पोलिंग बूथ पर नारेबाजी शुरू हो गई। मैं भागा हुआ गया। देखा 8-10 लोग प्रिजाइडिंग ऑफीसर को घेरे खड़े हैं और उसकी कार्य-प्रणाली पर असन्तोष प्रकट कर रहे हैं। उधर लाइन देखी तो दंग रह गया। 80-10 नर-नारी, युवा-वृद्ध पंक्ति में खड़े थे। इधर जिद्दी और अड़ियल अधिकारी मानता न था, उधर घेरां बढ़ता जा रहा था। लाइन टूट गई। पुलिस ने हस्तक्षेप किया, किन्तु उसका हस्तक्षेप भी व्यर्थ गया। अकस्मात भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार उधर आ निकला । लोगों ने चुनाव अधिकारी का घेरा तोड़कर उस उम्मीदवार को घेर लिया। ये सज्जन पुराने खिलाड़ी थे, समझदार थे। चुनाव अधिकारी को पोलिंग बूथ में ले गए। कार्य-पद्धतिं को देखा और समझा। होता यह था कि चुनाव-कक्ष में पहला अधिकारी सुस्त और चुंधा था। वह वोट-नम्बर ढूँढ़ने में काफी समय लगा देता था। इसके कारण एक-एक वोटर के भुगतान में 5 मिनट लग जाते थे। उसे वहाँ से हटाया गया, इस काम के लिए दो आदमी रखे गए। दो कार्यकर्ता सहयोग के लिए रखे गए। पुन: लाइन लगी और वोट पड़ने शुरू हुए।


बूथ के भीतर का दृश्य -

तीन बजे मुझे भी अन्दर जाने का सौभाग्य मिला । एक वृद्धा को, जो चलने में असमर्थ थी, मैं अपनी पीठ पर बैठाकर ले गया । बिना पंक्ति मुझे प्रवेश मिल गया । अन्दर की कार्य- संचालन-पद्धति देखो । एक अधिकारी वोटर लिस्ट में से वोटर का नाम देख रहा था। नाम सही होने पर दूसरा अधिकारी बाएँ हाथ की तर्जनी के अग्र भाग पर नाखून के समीप विशेष प्रकार को अमिट स्याही का निशान लगा रहा था। तीसरा अधिकारी काउन्टर फाइल पर हस्ताक्षर करवा कर वोटर नम्बर की पर्ची दे रहा था।

वृद्धा को पर्ची मिलने तक मैं साथ रहा, बाद में उसे कुर्सी पर बैठा दिया गया । अशिक्षित होने के कारण वह स्वयं मशीन का बटन दबाने में असमर्थ थी। अतः केन्द्र-अधिकारी ने उससे उम्मीदवार का नाम पूछा और उसकी इच्छानुसार मशीन का बटन दबा दिया। मत मशीनपर दर्ज हो चुका था। दिल्‍ली में इस बार मशीनों से मतदान हुआ था। उनमें प्रत्याशियों के नाम व चुनाव चिह्न थे। इससे मतदाताओं को काफी सुविधा हुई। मैंने वृद्धा की सहायता सेवा-भाव से की हो, ऐसा नहीं। सच्चाई तो यह थी कि मत डालने की प्रक्रिया देखने का मेरा वह एक बहाना था।


समर्थकों के बीच झगड़ा -

अपनी विजय पर प्रसन्न होकर मैं अपने दो-चार दोस्तों के साथ पोलिंग बूथ के चक्कर लगाता रहा। परिचितों को नमस्ते, बड़ों का चरण-स्पर्श करता रहा । लगभग साढ़े तीन बजे भाजपा और कांग्रेस के समर्थकों में थोड़ा झगड़ा हो गया। झगड़े का कारण था, एक पार्टी द्वारा एक कार से पाँच वोटरों का पोलिंग बूथ के द्वार पर उतरना। दूसरे पार्टी ने कार पर घेरा डाल दिया। झगड़ा बढ़ा । इसी बीच कार की फोटो ले ली गई। नारे-बाजी शुरू हो गई। नारे-बाजी हाथा-पाई में बदली। पुलिस ने हस्तक्षेप किया, किन्तु दूसरे पार्टी के समर्थक कार छोड़ने को तैयार नहीं थे। कहते है न प्राण जाएं पर, कार न जाईं। था भी यह गैर-कानूनी काम | वोटरों को सवारी की सुविधा देना कानूनी अपराध है। थोड़ी देर बाद पुलिस कमिश्नर पहुँचे। भीड़ हटा दी गई। कुछ देर बातचीत के बाद मामला शान्त हो गया। पाँच बचने वाले थे। पोलिंग बूथ पर 70-80 वोटरों की लाइन लगी थी। प्रिजाइडिंग ऑफीसर ने बुद्धिमत्ता से काम लिया। पंक्त में खड़े लोगों को वोट डालने की आज्ञा दे दी।


उपसंहार -

वोट डालने की प्रक्रिया समाप्त हुई। पोलिंग-एजेण्ट मत-पत्र-पेटी को सील करने में लगे थे, उधर दोनों ही पार्टी के समर्थक नारे लगा रहे थे। जोश में होश नहीं था। वे भूल रहे थे कि उनके उम्मीदवार का भाग्य तो मशीन में बंद हो चुका है। फिर नारेबाजी किसलिए ? कुछ इस तरह दृश्य था निर्वाचन क्षेत्र अर्थात चुनाव स्थल का।


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