होली के दिन का दृश्य पर निबंध

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होली त्यौहार के दिन का गजब नजारा पर हिंदी निबंध - होली का रंगों का त्योहार - होली का त्योहार दो दिन का - सभी लोग होली में मगन - रंगों का गुब्बारे फोड़ने का जंग - सभी लोग नाचने-गाने में मगन - मित्रों के संग होली का मजा - गरमा-गरम पसंदिता खाना - Essay on Scene of Holi Day in Hindi - View of Day in Holi Festival Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - होली का त्यौहार दो दिन का - व्यापारिक संस्थान, मंडियाँ और आऔद्योगिक प्रतिष्ठान - नारियों की ब्रज और हरियाणवी शैली की होली - उपसंहार।


परिचय | होली त्यौहार के दिनों का दृश्य की प्रस्तावना -

भारतीय पर्व परम्परा में होली आनन्दोल्लास का सर्वश्रेष्ठ रसोत्सव है। मुक्त, स्वच्छन्द परिहास का त्यौहार है । नाचने- गाने, हँसी-ठिठोली और मौज-मस्ती की त्रिवेणी है। सुप्त मन की गुफाएं में पड़े ईर्ष्या-द्वेष जैसे निकृष्ट विचारों को निकाल फेंकने का सूंदर अवसर माना जाता है। होली वसंत ऋतु का यौवनकाल है। ग्रीष्म के आगमन की सूचक है। वनश्री के साथ-साथ खेतों की श्री एवं हमारे तन-मन की श्री भी फाल्गुन के ढलते-ढलते सम्पूर्ण आभा में खिल उठती है। इसीलिए होली पर्व को आनंद, उल्लास का पर्व कहा जाता है।


होली का त्यौहार दो दिन का -

होली का त्यौहार दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन पूर्णिमा को होली-दहन और दूसरे दिन प्रतिपदा को धुलेण्डी। होली-दहन के दिन की बाजार में मस्ती का प्रभाव विविध रूपों में देखा जाता है। रंग-गुलाल, पिचकारी, पिचकारीनुमा तमंचे तथा रंग फेंकने के खिलौनों एवं मिठाई की दुकानों पर भीड़ होती है। खरीददारों को औरों से पहले माल चाहिए, इसलिए उनकी अधीरता और दुकानदार का ग्राहकों की चैं-चैं से परेशानी का दृश्य देखने योग्य होता है। नगरों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश नहीं होता, अत: होली का दिन धूम मचाने का दिन होता है।

दूसरी ओर, उत्तर भारत में अपराहण गली-मोहल्ले तथा बाजारों के चौराहों पर होलिका रूप में लकड़ी का ढेर इकट्ठा किया जाता है । सायंकाल नारियाँ उसका पूजन करती हैं। नारियों के साथ बच्चे भी होते हैं । बच्चों में होली खेलने का उत्साह तो होता है, किन्तु होलिका-पूजन में वे स्वच्छ और व्यक्तित्व- प्रदर्शन करने वाले वस्त्र पहनकर आते हैं, अत: न कोई रंग फेंकता है, न वे फिंकवाते हैं । यों इक्का-दुक्का घटनाओं से होली का उल्लास प्रकट नहीं होता, माहौल नहीं बनता। बड़ी सादगी और श्रद्धापूर्वक होली-पूजन सम्पन्न होता है।


व्यापारिक संस्थान, मंडियाँ और आऔद्योगिक प्रतिष्ठान -

धुलेण्डी के दिन व्यापारिक संस्थान, मंडियाँ, औद्योगिक प्रतिष्ठान बन्द हैं । राजकोय, अर्धराजकीय तथा निजी कार्यालय बंद हैं । महानगरों के सरकारी परिवहन (बसें) की गति मध्याह्न 2 बजे तक अवरुद्ध है। सड़कें सुनसान हैं । बाजार चहल-पहल शून्य हैं । लगता है धुलेण्डी का पावन-दिन सब लोगों ने केवल उमंग, उल्लास और मौजमस्ती के लिए सुरक्षित रखा है।

नौ बजते-बजते होली का हुड़दंग गलियों, मुहल्लों में मनदगति से शुरू हुआ। बच्चों ने इस हुडदंग का श्रीगणेश किया। बच्चों के इस हुड़दंग ने युवक-युवतियों, अधेड़-वृद्धों का हृदय तरंगित किया, उल्लसित किया । दस बजते-बजते युवा-युवतियों की टोली निकल पड़ीं। वे निकालने लगे घरों में घुसे साथियों को। मदमाती मुस्कान से उनके स्वागत का आह्वान करने लगे। रंग-बिरंगा गुलाल लगाकर, एक दूसरे के गले मिलकर होली को शुभकामनाएँ देने लगे और मस्ती के आलम में साथी बनने का आग्रह करने लगे। उसी समय साथी और पड़ोस के घरों में लोग रंग की बाल्टी उंडेलकर, पिचकारी के स्नेह जल से प्रेम के छींटे फेंककर, गुब्बारे की मस्ती भरी मार से टोली का ध्यान आकर्षित करते हुए तुनक मिजाज और बिगड़े दिलों का स्वागत करने लगे।


नारियों को ब्रज और हरियाणवी शैली की होली -

नारियों की ब्रज और हरियाणवी शैली की होली ने तो बाजार के दृश्य को और रंगीन बना दिया है। नारियाँ धोती के कोलड़े बनाकर होली का प्यार दर्शाने वाले पुरुषों पर मार करती हैं। कोलड़े की मार खाकर भी पुरुष हँसते हैं, पुन: मजा लेने को तत्पर रहते हैं। इस छेड़ा-छेड़ी में अश्लीलता का प्रदर्शन नाम मात्र है, स्पर्श वर्जित है। अत: होली को मस्ती की उमंग का स्वच्छ रूप है। दूसरी ओर, ब्रज-शैली में नारियाँ पुरुषों पर डण्डे, लाठियों से प्रहार करती हैं । साहसी युवक होली की हिम्मत में यह वार झेलते हैं । तमाशबीन पुरुष अश्लील मुद्रा और हरकतों में एक ओर नारियों से मसखरी करते हैं, तो दूसरी ओर साहसी युवकों को "चढ़ जा बेटा सूली पर" के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

बाजार में जहाँ टोली, समूह, झुंडों की मस्ती है, वहाँ सड़कों पर वाहन दौड़ रहे हैं। मोटर-साइकिल, स्कूटर, कार अपने सगे-सम्बन्धियों, बन्धु-बान्धवों, मित्रों से होली खेलने दौड़ रहे हैं। होली के हुड़दंग में वाहनों का भी हुलिया बिगाड़ दिया है, गुब्बारों की मार ने।

भंग की मस्ती में, शराब की मदहोशी में बीच-बाजार के नाच-गान, छोंटाकसी अश्लील हरकतें, ताने-फबतियाँ, सिनेमा के प्रिय 'डायलॉग' (संवाद) या गानों की भद्दी पंक्तियाँ मदनोत्सव की दृश्यावली से भिन्‍न नजारा पेश करती हैं । इन नजारों में यौवन की उमंग है, वसंत की मादकता है और है प्रकृति से एक-रस होने की लालसा।


उपसंहार -

दो बजते-बजते रंग का खेल समाप्त होता है और सायंकाल को लगते हैं होली- मेले, होलिका-बाजार। यहाँ जनता सोल्लास इकट्ठी होती है और होली-मिलन ममाती है। मेलों में चाट-पकौड़ी, मिठाई-नमकीन, खेल-खिलौने तथा दैनिक जरूरत की चीजों की दुकान लगी होती हैं। बच्चों के लिए विविध प्रकार के झूले लगे होते हैं। कहीं मदारी तमाशा दिखा रहा होता है, तो कहीं नट-नटनी अपने खेलों का प्रदर्शन करते नजर आते हैं। कहीं धार्मिक प्रवचन चल रहा होता है।


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