जलते हुए भवन का दृश्य पर निबंध

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जलते हुए इमारत का भयानक दृश्य पर हिंदी निबंध - इमारत में आग कैसे लगी - लोगों को कैसे निकाला गया - आग बुझाने वालों का बुरा हाल - Essay on Burning Building Scene in Hindi - Burning Building Scene Essay in Hindi - Nibandh

रूपरेखा : प्रस्तावना - मानव के लिए परम उपयोगी तत्त्व - आग लगने के कारण - जलते हुए भवन का आँखों देखा हाल का वर्णन - मकान की तीसरी मंजिल में आग - आग बुझाने वालों का हाल - उपसंहार।

परिचय | जलते हुए भवन का दृश्य की प्रस्तावना -

आये दिन हम घटना के बारे में समाचार, रेडियो, टीवी पर सुनते रहते है। ये सुन के हमारे अंदर का ह्रदय डर जाता है। घटना हुए परिवार का हाल, उनकी परेशानी आदि के बारे में हमें सोच विचार आने लगते है। जिनके के साथ यह हादसा होता है वो तो परेशानी और झटके में रहते ही है किन्तु उनके साथ जो ये दृश्य देखता है घटना की वो भी अंदर से घबरा जाते है। आँखे उनकी नम हो जाती है और आँखों से आसूं बहने लगते है। वो खुद को कोसते रहते है की वो उन्हें बचा नहीं पाते। ऐसे ही एक जलते हुए भवन का दृश्य मैंने में अपने आँखों से देखा।


मानव के लिए परम उपयोगी तत्त्व -

आग मानव के लिए परम उपयोगी तत्त्व है। इसी की सहायता से हम भोजन पकाते हैं। इसी के द्वारा शरीर को ताप प्रदान किया जाता है | सर्दियों में तो अग्नि (आग) बहुत ही प्रिय लगती है। इसके अतिरिक्त अग्नि कौ सहायता से अनेक अन्य कार्य भी होते हैं। भाप से चलने वाली गाड़ियों और मशीनों का जीवन अग्नि पर ही निर्भर रहता है। कूड़े-करवट को जलाकर अग्नि वातावरण को स्वच्छ रखने में ही बड़ी सहायता करती है। बड़वानल के रूप में समुद्र के अन्दर विद्यमान अग्नि उसे सदा मर्यादा में रखती है और जठरानल के रूप में प्राणियों के उदर में विद्यमान अग्नि भोजन को पचाने में सहायक होती है। इस प्रकार अग्नि हमारे लिए अत्यन्त उपकारी तत्त्व है।

प्रकृति का अटल नियम है कि जहाँ फूल होते हैं, वहाँ काँटे भी होते हैं। यह नियम अग्नि पर भी लागू होता है। अर्थात जो अग्नि हमारा अनेक प्रकार से उपकार करती है, उसी के द्वारा कभी-कभी भारी अहित भी हो जाता है। अग्नि द्वारा यह अहित तब होता है, जब वह मानव के लिए उपयोगी वस्तुओं को अपना ग्रास बना लेती है । प्राय: देखा जाता है कि अग्नि कभी-कभी विशाल भवन को या किसी बाजार की कई दुकानों को भस्म कर देती है। जब अग्नि इस प्रकार अवांछित स्थानों पर भड़कती है, तब बड़ा ही वीभत्स दृश्य उपस्थित होता है।


आग लगने के कारण -

अग्नि लगने के अनेक कारण हो सकते हैं- बिजली के शॉट सरकिट के कारण, खाना बनाने वाली गैस के फटने के कारण, मिट्टी का तेल या पेट्रोलियम पदार्थों द्वारा अग्नि पकड़ने से, जलती सिगरेट से आदि। कई बार दुश्मनीवश भी आग लगाई जाती है । कई बार जन-हित में आग लगवा दी जाती है, आग लगने से धन-जन, भवन की हानि होती है। पशु-पक्षी मारे जाते हैं। जीवन-भर की अर्जित सामग्री स्वाहा हो जाती है। लाखों, करोड़ों की सम्पत्ति जल कर राख हों जाती है। निस्सहाय आदमी शरणार्थी बन सड़क पर खड़ा होता है । अपलक नेत्रों से अपनी बरबादी का प्रत्यक्ष गवाह बनता है।


जलते हुए भवन का दृश्य | जलते हुए भवन को मैंने अपने आँखों से देखा -

मैं एक दिन स्कूल से घर आ रहा था कि रास्ते में घंटी बजने की आवाज आई। उस घंटी की आवाज को सुनकर लोग कह रहे थे- 'हट जाओ, हट जाओ, सड़क खाली कर दो।' एक मिनट बाद सामने से लाल रंग की तीन-चार मोटरें गुजरीं। लोग मोटरों के साथ-साथ उसी दिशा में भाग रहे थे। मैं समझ गया कि अवश्य ही कहीं आग लगी है । मेरी भी इच्छा आग को देखने की हुई। मैं भी जिधर मोटरें गईं थीं, उस ओर चल पड़ा। आधा फलाँग भी नहीं चला होऊंगा कि दाहिनी ओर की गली से भयंकर शोर जई दिया और आग की लपटें नजर आईं। आग देखकर तो मेरी आँखें फटी ही रह गईं। ऐसी आग मैंने पहले कभी न देखी थी।


मकान की तीसरी मंजिल में आग -

आग एक तीन मंजिले मकान में लगी हुईं थी। आग तो माकन के तीसरी मंजिल पर लगी थी, किन्तु मंजिल के लोग जल्दी-जल्दी अपना सामान निकाल रहे थे। दूसरी मंजिल पर कुछ सामान बाकी था, किन्तु उसे निकालना खतरे से खाली न था। तीसरी मंजिल में धुआँधार आग लगी हुई थी। मकान के चारों ओर 100-150 गज तक पुलिस ने घेरा डाला हुआ था।

जिस मकान में आग लगी थी, उसकी लपटें हवा के प्रकोप के साथ वाले मकान पर धावा बोल रहो थीं। साथ वाले मकान में भी हाहाकार मचा था। वे बालटी भर-भर कर आग की ओर फेंक रहे थे तथा अपना सामान घचाने में व्यग्र थे। पड़ोसी उनकी सहायता कर रहे थे।


आग बुझाने वालों का हाल -

उधर आग बुझाने वाले लोगों का बुरा हाल था। उन्होंने आग को तीन तरफ से घेर रखा था, किन्तु आग काबू में नहीं आ रही थी। वे एक स्थान से आग बुझाते, उधर दूसरी खिड़की जल उठती। इस प्रकार वे निरन्तर आग से जूझ रहे थे। इसी बीच एक दर्दनाक घटना घटी दूसरी मंजिल पर रहने वाली एक स्त्री को ध्यान आया कि उसका चार वर्षीय पुत्र अंदर सोता हुआ रह गया है। फिर क्या था ? उसने चिलला-चिल्लाकर आसमान सिर पर उठा लिया। उसको चीत्कार से पिघलकर आग बुझाने वाले इंस्पेक्टर ने उस स्त्री से वह कमरा, जिसमें उसका बालक सो रहा था पूछा और ढाढस बँधाया, परन्तु स्त्री को तसल्ली कब होने वाली थी।

इंस्पेक्टर ने अपने लोगों को समझाया कि वे कमरे के ऊपर की आग को बुझाएँ और यह ध्यान रखें कि इस कमरे तक आग न पहुँचने पाए। आग बुझाने वाले आदमियों ने बड़ी हिम्मत और बहादुरी से उस सारी आग पर काबू पा लिया। काबू पाते ही उन्होंने अपनी सीढ़ी लगाई और ऊपर चढ़ गए। बच्चा चारपाई पर पड़ा हुआ था, किन्तु कमरे में धुओँ भरा होने के कारण कुछ नजर नहीं आ रहा था। फिर भी इंस्पेक्टर ने उसे दूँढ़कर उठाया और कन्धे से लगा कर बाहर निकाल लाया। किस्मत का धनी इंस्पेक्टर बाल-बाल बच गया, जैसे ही वह बच्चे को लेकर नीचे उतरा, वैसे ही उस कमरे की छत नीचे गिर पड़ी बच्चा बेहोश था, उसे तुरन्त अस्पताल भेज दिया गया।


उपसंहार -

जब आग बुझ गई तो, आग बुझाने वाली मोटरें घंटा बजाती हुईं वापस चली गईं। मैं भी इस भयंकर तांडव का विनाशक दृश्य देख भारी मन से घर लौट आया। इतना भयानक दृश्य मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था।


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