देशाटन पर निबंध

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देशाटन पर निबंध - देशाटन का अर्थ - देशाटन से लाभ - देशाटन का महत्व - देशाटन की उपयोगिता - Tourism Essay in Hindi - Essay on Deshatan in Hindi - Deshatan Essay In Hindi - Essay on Tourism in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - मनुष्य में जिज्ञासा की प्रबल भावना - धर्म और संस्कृति का प्रचार और प्रसार - मनुष्य का धर्म - अनुभव का विकास - ज्ञान प्राप्ति के साथ मनोरंजन - उपसंहार।

परिचय | देशाटन की प्रस्तावना -

भिन-भिन देशों में भ्रमणार्थ की जाने वाली यात्रा या पर्यटन देशाटन है । विभिन्‍न देशों के महत्त्वपूर्ण स्थल देखने तथा मन बहलाव के लिए वहाँ के विस्तृत भू-भाग में किया जाने वाला भ्रमण देशाटन है।


मनुष्य में जिज्ञासा की प्रबल भावना -

मनुष्य में जिज्ञासा की भावना बड़ी प्रबल है । वह अपने पास-पड़ोस, नगर, राष्ट्र, विश्व के बारे में जानना चाहता है। यही जिज्ञासा उसे पर्यटन या देशाटन करने को विवश करती है। विभिल जीवन-पद्धतियों के अध्ययन से नाना प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखने से, विभिन राष्ट्रों के विकास साधनों एवं वैज्ञानिक उन्नति के परिचय से मानव को आनंद, उत्साह तथा ज्ञान प्राप्त होता है।

पुस्तकें आनंद, उत्साह और ज्ञानवर्धन का साधन हैं, किन्तु पुस्तक के अध्ययन से किसी देश का परिचय प्राप्त करने और उसके साक्षात-दर्शन में अंतर है। महान घुमक्कड़ डॉ. राहुल सांकृत्यायन का कथन है, 'जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदारु के गहन वनों और श्वेत हिम-मुकुटित शिखरों के सौन्दर्य, उसके रूप, उनकी गंध का अनुभव नहीं कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाओं से आपको उस सौंदर्य से भेंट नहीं हो सकती, जो कि एक घुमक्कड़ (देशाटक अर्थात घूमनेवाला) को प्राप्त होता है।

संसार एक रहस्य है । इसका जीवन रहस्यमय है। देशाटन-दुस्साहसियों ने उस रहस्य को चीरने का प्रयास किया है। जिससे विश्व-बंधुत्व का मार्ग प्रशस्त हुआ है। कोलम्बस को घुमक्कड़ी ने अमरीका का पता लगाया। वास्कोडिगामा का भारत से परिचय हुआ। द्वेनसांग, फाहियान आदि चीनी यात्री भारत में बौद्ध-धर्म ग्रंथों की खोज में आए पुर्तगाली, डच, फ्राॉसीसी और अंग्रेजों ने भारत में व्यापार का आरंभ किया। भारतीय घुमक्कड़ों ने लंका, बर्मा, मलाया, यवद्वीप, स्थाम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियो और सैलीबीज ही नहीं, फिलिपाइन तक का पता लगाया।


धर्म और संस्कृति का प्रचार और प्रसार -

धर्म और संस्कृति के प्रचार और प्रसार का श्रेय देशाटन को ही है। प्राचीन धर्म-भिक्षु तो कर तल भिक्षा, तरु तल बास का आदर्श सामने रखते थे । कबीर, बुद्ध, महावीर जीवन भर घुमक्कड़ रहे। आद्य शंकराचार्य ने तो भारत के चारों कोनों का भ्रमण किया और दे गए चार मठ । वास्कोडिगामा के भारत पहुँचने से बहुत पहले शंकराचार्य के शिष्य मास्को तथा यूरोप में पहुँच चुके थे। गुरु नानक ने ईरान और अरब तक धावा बोला। स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामतीर्थ तथा उनके शिष्यों ने विश्व में वेदान्त का झंडा गाड़ा एवं महर्षि दयानन्द और उनके शिष्यों ने विश्व में वेदों की ध्वजा फहराई।


मनुष्य का धर्म -

मनुष्य स्थावर वृक्ष नहीं, जंगम प्राणी है। चलना उसका धर्म है। 'चरैवेति-चरैवेति' उसका नारा है। 'सैर कर दुनिया की गाफिल जिन्दयानी फिर कहाँ? 'इस्माइल मेरठी के ये शब्द देशाटन के प्रेरणा-स्रोत हैं। विभिन्‍न देशवासियों की प्रकृति-प्रवृत्ति के परिणाम, विशिष्ट विषय के अध्ययन, ऐतिहासिक, भौगोलिक, साहित्यिक तथा वैज्ञानिक गवेषणा, प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकन, धर्म तथा संस्कृति के प्रचार, राष्ट्रीय मेलों और सम्मेलनों में एकत्र होना, तीर्थाटन, व्यापार-वृद्धि, राजकार्य, पंचमांगी, कूटनीतिक तथा गुप्तचर कार्य, सर्वेक्षण, आयोग तथा शिष्टमंडल, जीवकोपार्जन, आखेट, मनोरंजन, स्वास्थ्य सुधार, पर-राज्य में आश्रय आज के देशाटन के प्रयोजन हैं।

घर से बाहर कदम रखते ही कष्टों का श्रीगणेश होता है, फिर देशाटन तो महाकष्टप्रद है। थका देने वाली यात्रा, प्रतूकूल आहार-व्यवहार; विश्राम की विकृत व्यवस्था; भाषा न समझने की विवशता; परम्परा और सभ्यता के मानदण्ड की अनभिज्ञता, ठग और गिरहकटों का भय, विपरीत प्रकृति-प्रवृत्ति वाले अथवा दुष्ट लोगों का साथ तथा अत्यधिक आर्थिक बोझ देशाटन में बाधक हैं। डॉ. राहुल सांकृत्यायन की दलील है; घुमक्कड़ी मेंकष्ट भी होते हैं, लेकिन उसे उसी तरह समझिए, जैसे भोजन में मिर्च ।


अनुभव का विकास -

देशाटन से अनुभव का विकास होता है। विभिन्‍न राष्ट्रों, स्थानों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है व्यापारिक स्पर्द्धा और उन्नत होने के भाव बलवान होते हैं। सहिष्णुता की शक्ति बढ़ती है । विभिन्न प्रकृति के मनुष्यों से संपर्क पड़ने के कारण मानव मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि होती है । नये लोगों के मेल-मिलाप से मित्रता की सीमा फैलती है । प्रकृति से साहचर्य बढ़ता है । बातचीत करने का ढंग पता लगता है। व्यवहार कुशलता में वृद्धि होती है । कष्ट-सहिष्णुता का स्वभाव बनता है। मन का रंजन होता है। आंनद का स्रोत फूटता है। जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है। विदेशों में भ्रमण करने से अनेक प्रकार के चरित दिखाई पड़ते हैं। सज्जनों और दुर्जनों के स्वभाव मालूम होते हैं और मनुष्य अपने आपको पहचान जाता है। इसलिए पृथ्वी पर भ्रमण करना चाहिए।


ज्ञान प्राप्ति के साथ मनोरंजन -

देशाटन द्वारा ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ हमें सरस और रुचिपूर्ण मनोरंजन भी प्राप्त होता है। विभिन्‍न स्थानों, वनों, पहाड़ों, नदी-तालाबों और सागर की उत्ताल तरंगों का अवलोकन कर पर्यटक का मन झूम उठता है। पर्यटन हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हितकर है। जलवायु-परिवर्तन से चित्त में सरसता और उत्साह का संचार होता है, जिससे हम प्रसन्‍न मन:स्थिति में रहते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य की अनिवार्य शर्त है। देशाटन के दौरान हमें अनेक असुविधाओं और कष्टों का भो सामना करना पड़ता है। इन्हें सहन करके तथा इनका समाधान ढूँढ लेने पर हमें अद्भुत खुशी का अनुभव होता है।


उपसंहार -

देशाटन विश्व-बंधुत्व की भावना की भी वृद्धि करता है । सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतुनिरामया: की मंगलमयी भावना, विश्व में शांति, सुख, सौन्दर्य और श्री वृद्धि का जनक है। कष्टों, विपत्तियों, प्राकृतिक विपदाओं, दुर्भावनाओं, युद्धों और विनाश-प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने का प्रयास है। विश्व को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला ज्योति पुंज है।


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