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रुपरेखा : नव वर्ष का आरंभ - नव वर्ष 2023 - महावीर विक्रमादित्य की कहानी तथा विक्रम संवत का आरंभ - ऐतिहासिक रूप से विक्रम संवत - नए वर्ष मनाने के अनेक तरीके - आज के युग का नव वर्ष - उपसंहार।
नव वर्ष का आरंभ -भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम-संवत है। विक्रम-संवत के अनुसार नव वर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिषदा को ही सृष्टि का आरंभ हुआ था और इसी दिन से भारतवर्ष में कालगणना आरंभ हुई थी। यही कारण है कि ज्योतिष में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही होती है। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। वसंत में प्राणियों को ही नहीं, वृक्ष, लता आदि को भी आह्वादित करने वाला मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है। इतना ही नहीं वसंत समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके, समूची धरती को पुष्पाभरण से अलंकृत करके मानव-चित्त की कोमल वृत्तियों को जागरित करता है । इस सर्वप्रिय चारुतरं वसंत में संवत्सर का आरंभ सोने में सुहागा को चरितार्थ करता है। हिन्दू मन में नव वर्ष के उमंग, उल्लास, मादकता को दुगना कर देता है। विक्रम-संवत सूर्य-सिद्धान्त पर चलता है। ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य -सिद्धांत का मान ही भ्रमहीन एवं सर्वश्रेष्ठ है । सृष्टि संवत के प्रारंभ से यदि आज तक का गणित कियाजाए तो सूर्य-सिद्धान्त के अनुसार एक दिन का भी अंतर नहीं पड़ता।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार नया साल हर साल 1 जनवरी को मनाया जाता है।
पराक्रमी महावीर विक्रमादित्य का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगरी उज्जयिनी में हुआ था। पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दम्पती को पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक ब्रत और तप करने पड़े। शिव की नियमित उपासना और आराधना से उन्हें पुत्ररतल मिला था। इनका नाम विक्रमादित्य रखा गया । विक्रम के युवावस्था में प्रवेश करते ही पिता ने राज्य का कार्य भार उसे सौंप दिया। राज्यकार्य संभालते ही घिक्रमादित्य को शकों के विरुद्ध अनेक तथा बहुविध युद्धों में उलझ जाना पड़ा। उसने सबसे पहले उज्जयिनी और आस पास के शत में फैले शकों के आतंक को समाप्त किया। सारे देश में से शकों के उन्मूलन से पूर्व विक्रम ने मानव गणतंत्र का फिर संगठन किया और उसे अत्यधिक बलशाली बनाया और वूंहाँ से शकों का समूलोच्छेद किया। जिस शक्ति का विक्रम ने संगठन किया था, उसका प्रयोग उसने देश के शेष भागों में से शक-सत्ता को समाप्त करने में लगाया और उसकी सेनाएं दिग्विजय के लिए निकल पड़ी । ऐसे वर्णन उपलब्ध होते हैं कि शकों का नाम-निशान मिटा देने वाले इस महापराक्रमी वीर के घोड़े तीनों समुद्रों में पानी पीते थे इस दिग्विजयी मालवगण नायक विक्रमादित्य की भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई । शकों के लिए यह इतनी बड़ी पराजय थी कि कश्मीर सहित साय उत्तरापथ विक्रम के अधीन हो गए। इसके बाद से विक्रम संवत का आरंभ हुआ।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह सत्य है कि शकों का उन्मूलन करने और उन पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में विक्रम संवत आरंभ किया गया था जो कि इस समय की गणना के अनुसार ईस्वी सन् ५७ वर्ष पहले शुरू होता है। इस महान विजय के उपलक्ष्य में मुद्राएँ भी जारी की गई थीं, जिनके एक और 'सूर्य' था, दूसरी ओर 'मालवगणस्य जय' लिखा हुआ था। विदेशी आक्रमणकारियों को समाप्त करने के कारण केवल कृतज्ञतावश उसके नाम से सवंत चलाकर ही जनसाधारण ने वीर विक्रम को याद नहीं रखा, बल्कि दिन-रात प्रजापालन में तत्परता, पर दु:ख- परायणता, न्यायप्रियता, त्याग, दान, उदारता आदि गुणों के कारण तथा साहित्य और कला के आश्रयदाता के रूप में भी उन्हें स्मरण किया जाता है। वर्ष प्रतिपदा के महत्त्व के कुछ अन्य कारण भी हैं।
आंध्र में यह पर्व 'उगादि' नाम से मनाया जाता है। उगादि का अर्थ है युग का आरंभ अथवा ब्रह्मा जी की सृष्टि रचना का प्रथम दिन । आंध्रवासियों के लिए यह दीपावली की भाँति हर्षातिरिक का दिन होता है। सिंधु प्रान्त में नवसंवत् को चेटी चंडो (चैत्र का चन्द्र) नाम से पुकारा जाता है | सिन्धी समाज इस दिन को बड़े हर्ष और समारोहपूर्वक मनाता है। काश्मीर में यह पर्व 'नौरोज' के नाम से मनाया जाता है। इस दिन कश्मीरी लोग नए कपड़े पहनकर बन-ठनकर निकलते। घर के बड़े लड़के-लड़कियों को हाथ खर्च के तौर पर कुछ पैसे मिला करते है। इसीतरह हर राज्य के लोगों का अपना तरीका होता हैं नव वर्ष मनाने का। सभी लोग बड़े ही आनंद के साथ नव वर्ष का आरंभ करते है।
आज के युग नव वर्ष बड़े ही उत्साह के साथ मनाते है। युवाओ अपने मित्र के साथ नव वर्ष मनाते है। वही बड़े-बुजुर्ग घर में बैठ अपने परिवारों के संग नव वर्ष की सुरुवात करते है। कई लोग अपने मित्र तथा अपने परिवार के साथ लंबे छुट्टिया लेकर घुमने जाते है। कई लोग नए साल की पहली सुबह मंदिर जा के भगवान से पूर्ण वर्ष खुशाल जीवन की प्राथना करते है।
नव वर्ष मंगलमय हो, सुख समृद्धि का साम्राज्य हो, शांति और शक्ति का संचरण रहे, इसके लिए नव संवत पर हिन्दुओं में पूजा का विधान है। इस दिन पंचांग का श्रवण और दान का विशेष महत्त्व है। व्रत, कलश-स्थापन, जलपात्र का दान, वर्षफल श्रवण, गतवर्ष की घटनाओं का चिंतन तथा आगामी वर्ष के संकल्प, इस पावन दिन के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम माने जाते हैं। आज सभी धर्म में नव वर्ष की आस्था है, श्रद्धा है इसीलिए नव वर्ष अथवा नया साल अथवा न्यू ईयर, उमंग और उत्साह से नववर्ष मानना और मनाना चाहिए। सम्बन्धियों तथा मित्रों को ग्रीटिंग कार्ड भेजना तथा शुभकामना प्रकट करना हमारे स्वभाव का अंग होना चाहिए। इसी से हमारे समाज में पहले से ही विद्यमान परम्परा का निर्वाह करते हुए शुभसंस्कारों का विकास होगा और हमारी भारतीय अस्मिता की रक्षा भी होगी।
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