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रूपरेखा : प्रस्तावना - गांधी जयंती राष्ट्रीय पर्व के रूप में - गांधी जी में अद्भुत नेतृत्व शक्ति - हरिजन सेवा संघ की स्थापना - हिंदू-मुस्लिम एकता - सत्य-अहिंसा का मार्ग - गांधी जी में विचारों व क्रियाओं का विरोध और सांमजस्य - उपसंहार।
परिचय | गांधी जयंती की प्रस्तावना -गांधी जयंती एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देने के लिये हर वर्ष मनाया जाता है। पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी इसे मनाया जाता है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में गांधी जयंती को घोषित किया गया है। मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्टूबर 1869 में जन्म) के जन्म दिवस को याद करने के लिये पूरे देश में गांधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश के रुप में मनाया जाता है। उनके भारतीय स्वतंत्रता के लिये किये गये अहिंसा आंदोलन से आज भी देश के राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ देशी तथा विदेशी युवा नेता भी प्रभावित होते है।
2 अक्टूबर, 1869 को गांधी जी भारत-भू पर प्रगटे थे। इसलिए कृतज्ञ राष्ट्र उनके जन्म-दिवस को, राष्ट्रीय-पर्व के रूप में मनाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। अर्चना के अगणित स्वर मिलकर इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष और महामानव की वंदना करता है। राष्ट्र को उनकी देन, उपकार तथा वरदान के लिए 'गांधी मेलों' द्वारा उनका पुनीत स्मरण करता है।
अपने हाथ से कते सूत की लंगोटी पहनने वाले, चरखे को अहिंसा के प्रतीक के रूप में स्वीकार करके भारत के प्राचीन ग्राम्योद्यम एवं ग्राम्य-जीवन की महत्ता को मशीनों के वर्तमान युग में भी उज्ज्वल करने वाले, सहिष्णुता, त्याग, संयम और सादगी की मूर्ति बापू के जीवन की छाप आज हमारे खान-पान, रहन-सहन, भाव-विचार, भाषा और शैली, परिच्छद और परिधान, काव्य और चित्रकारी, दर्शन और सामाजिक व्यवहार धर्म-कर्म, राष्ट्रीयता और अन्तरराष्ट्रीयता, उनमें से प्रत्येक पर कहीं न कहीं देखी जा सकती है।
गांधी जी में अदभुत नेतृत्व-शक्ति थी। उन्होंने भारत को स्वतन्त्र करवाने के लिए कांग्रेस पार्टी के माध्यम से स्वतंत्र आंदोलन का नेतृत्व किया। सविनय अवज्ञा भंग, असहयोग, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, रॉलेट- एक्ट, नमक कानून, हरिजन एवार्ड आदि का विरोध राष्ट्रीय आन्दोलन के 'माइल-स्टोन' थे। जनता ने उनके नेतृत्व में जेलें भरी, लाठिया-गोलियाँ खाईं, जीवन बलिदान कर दिए। अहिंसात्मक आन्दोलन को अपनाकर आस्था रूप में खिली जवानी के पुष्प समर्पित किए। 1942 का आन्दोलन 'करो या मरो' स्वतंत्र समर का निर्णायक आन्दोलन था, जो गांधी जी के नेतृत्व-सफलता का सर्वोत्कृष्ट प्रमाण है।
गांधी जो ने शराब को शरीर और आत्मा का शत्रु बताकर उसका विरोध किया। हजारों महिलाएँ और पुरुष शराब की दुकानों पर धरना देने लगे । लाखों शराबियों और शराब का आस्वादन करने वालों ने जीवन में मद्य-निषेध का व्रत लिया।
गांधी जो ने 'हरिजन-सेवा-संघ' की स्थापना की । हरिजनों के आत्मबल को ऊँचा उठाने के लिए' अद्ठ्तोद्धार ' कार्यक्रम शुरू किए। स्वयं हरिजन बस्ती में रहने लगे। अछूतों के प्रति की जाने वाली घृणा को प्रेम में बदला। कुएँ का पानी और मंदिर के पट उनके लिए खुले । 'निषेध' प्रवेश में परिवर्तित हुआ । हरिजनबन्धु न केवल हिन्दू धर्म के अविभाज्य अंग बने रहे, अपितु गाँधो जी के व्यवहार, कृत्य और कार्यक्रमों से वे सामाजिक और सांस्कृतिक सम्मान के पात्र भी बने।
गांधी जी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम करना सिखाया | विदेशी-वस्त्रों की होली जलवाई। विदेशी-वस्तुओं का बहिष्कार करने की प्रवृत्ति बनाई । परिणामत: घर-घर में चरखा चला। खद्दर का प्रयोग बढ़ा। खद्दर हमारे शरीर की आन, बान और शान बना। खादी-आश्रम खुले। करधे चले, लाखों लोगों को रोटी-रोजी का साधन मिला। राष्ट्रीयता की एक पहचान बनी।
गांधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का श्रीगणेश किया। मुसलमानों को राष्ट्रीयता के प्रवाह में प्रवाहित होने क्रे लिए प्रेरित किया। हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य के लिए अनेक बार उपवास किए। 'हिन्दू-मुस्लिम भाई भाई' उनका आदर्श वाक्य बना। हिन्दुओं ने हठधर्मिता छोड़ी। मुस्लिम-सुविधा के लिए अपने धार्मिक-सामाजिक, सिद्धान्तों की बलि चढ़ाई। मुस्लिम आत्मा को चोट पहुँचाने वाले कृत्यों से सावधान-सचेत रहे । परिणामत: राष्ट्र भक्त अनेक मुसलमान कांग्रेस के कंठहार बने। जैसे--मौलाना अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुलगफ्फार खाँ, शौकतअली बंधु।
सत्य, अहिंसा और सादगी गांधी जी के जीवन की त्रिवेणी थी, जिनका संगम थी उनकी काया। जीवन-भर एक लंँगोटी में जीवन बिताया। रेल की तीसरी श्रेणी के डिब्बे में यात्रा की। खान-पान, वचन और कर्म में सात्विकता बरती। गांधी जी सत्य मैं परमेश्वर के दर्शन करते थे, वे उसे मुक्ति-मार्ग समझते थे। सत्य को प्राण और आत्मा कांविशिष्ट गुण मानते थे। जीवन में सत्य के प्रयोग करके वे मानव से महामानव बन गए। अहिंसा उनके आचरण का मंत्र था जीवन शैली का मार्ग था।
गांधी जी में विचारों व क्रियाओं का विरोध और सांमजस्य गांधी जी हिन्दी को राष्ट्र की आत्मा मानते थे। उन्होंने दक्षिण मैं हिन्दी प्रचार और प्रसार के लिए राष्ट्र-भाषा प्रचार समिति तथा दक्षिण हिन्दी-प्रचार सभा जैसी संस्थानों की नीव डालीं। उनके प्रोत्साहन से लाखों लोगों ने हिन्दी सीखी, हिन्दी को आजीविका का साधन माना।
विश्व कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर गांधी जीवन में विचारों और क्रियाओं का विरोध एवं सामंजस्य प्रदर्शित करते हुए लिखते हैं, 'वे स्वयं निर्धन और दरिद्र हैं, किन्तु सबको सुखी एवं सम्पन्न बनाने को दिशा में वे सबसे अधिक क्रियाशील हैं । वे घोर रूप से क्रान्तिकारी है, किन्तु क्रान्ति के पक्ष में वे जिन शक्तियों को जाग्रत करते हैं, उन्हें अपने नियन्त्रण में भी रखते हैं। वे एक साथ प्रतिमापूजक और प्रतिमा-भंजक भी हैं । मूर्तियों को यथास्थान रखते हुए वे आराधकों को उच्च स्तर पर ले जाकर प्रतिमाओं के दर्शन करने की शिक्षा देते हैं । वे वर्णाश्रम के विश्वासी हैं, किन्तु जाति-प्रथा को चूर्ण किये जा रहे हैं। भाव-भावना को वे भी मनुष्य की नैतिक प्रगति का बाधक मानते हैं, किन्तु टालस्टॉय की भान्ति वे सौन्दर्य और नारी को संदेह की दृष्टि से नहीं देखते। गांधी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जो सुधार वे दूसरों को सिखाते हैं, उन सुधारों की कीमत पहले वे आप चुका देते हैं।
गांधी जयंती गांधी जी को स्मरण करने का पुण्य दिन है। इस दिन स्थान-स्थान पर गांधी-मेले लगते हैं । इनमें गांधी जो के जीवन को झाँकियाँ दिखाई जाती हैं, उनके जीवन की विशिष्ट घटनाओं के चित्र लगाए जाते हैं। गांधी जी पर प्रवचन और भाषण होते हैं। मुख्य समारोह दिल्ली के राजघाट पर होता है। राष्ट्र के कर्णधार, मुख्यतः राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और नेतागण तथा श्रद्धालु-जन गांधी जी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। प्रार्थना-सभा में राम धुन तथा गांधी जी के प्रिय-भजनों का गान होता है। विभिन्न धर्मों के पुजारी प्रार्थना करते हैं, अपने-अपने धर्म-ग्रन्थों से पाठ करते हैं। श्रद्धा-सुमन चढ़ाने और भजन-गान का कार्यक्रम 'बिड़ला हाउस' में भी होता है, जहाँ गांधी जी शहीद हुए थे।
गांधी जी आज भी राजनीतिज्ञों के लिए विध्ननाशक, मंगलदाता गणेश जी हैं। भोली- भाली जनता को ढगने, सम्पन्नता और सत्ता का भोग भोगने का गुरु-मंत्र हैं।
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