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रुपरेखा : प्रस्तावना - विश्व कठपुतली दिवस २०२१ - विश्व कठपुतली दिवस का इतिहास - कठपुतली - कठपुतली की रचना - कठपुतली कला - कठपुतली कला का महत्व - राजस्थान का लोकप्रिय कला - विश्व कठपुतली दिवस क्यों मनाया जाता है - विश्व कठपुतली दिवस कैसे मनाया जाता है - विश्व कठपुतली दिवस का उद्श्य - उपसंहार।
प्रस्तावना / कठपुतली दिवस -कठपुतली एक मनोरंजन का साधन होता हैं | प्राचीन काल में कठपुतली का खेल देखकर लोग मनोरंजन किया करते थे | कठपुतली एक कला हैं जिसके द्वारा लोगों को कहानी या संदेश पप्रस्तुत करते है। यह मनमोहक कला आज भारत देश के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय होने लगी हैं | आज कठपुतली फिल्मों और टेलीविजन पर भी प्रसिद्ध हो रही हैं | कठपुतली का खेल दिखाने वाले को ‘कठपुतली कलाकार’ और ‘पपेटियर’ कहाँ जाता हैं | कठपुतली को अधिक बढ़ावा देने के लिए हर साल 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस मनाने की पहल शुरू की गयी।
प्रतिवर्ष २१ मार्च को कठपुतली का खेल के याद में तथा उसे बढ़ावा देने के लिए पुरे विश्व भर में विश्व कठपुतली दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 में, 21 मार्च रविवार के दिन, विश्व कठपुतली दिवस पुरे दुनिया भर में मनाया जायेगा।
कठपुतली का इतिहास ईसा पूर्व चौथी सदी से शुरू होती है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी की अष्टाध्यायी में नटसूत्र में पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है। आख्या के अनुसार कठपुतली के जन्म को लेकर पौराणिक आख्यान का ज़िक्र करते हैं। कई लोगों का कहना है कि शिवजी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर पार्वती का मन बहलाकर इस कला की शुरुआत की थी। प्रसिद्ध कहानी ‘सिंहासन बत्तीसी’ में भी विक्रमादित्य के सिंहासन की बत्तीस पुतलियों का उल्लेख किया गया है। सतवध्दर्धन काल में भारत से पूर्वी एशिया के देशों जैसे इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, जावा, श्रीलंका आदि में इसका विस्तार हुआ था। आज यह कला चीन, रूस, रूमानिया, इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, अमेरिका व जापान जैसे आदि अनेक देशों में पहुंच चुकी है। इन देशों में इस विधा का सम-सामयिक प्रयोग कर इसे बहुआयामी रूप प्रदान किया गया है।
विश्व कठपुतली दिवस मनाने का इतिहास कुछ इस प्रकार है कि, इसकी शुरूआत 21 मार्च 2003 को फ्रांस में की गई थी। वर्ष 2000 में माग्डेबुर्ग में 18वीं यूनआईएमए सम्मेलन के दौरान यह प्रस्ताव विचार के हेतु इस दिवस को मनाने का सबसे पहले विचार ईरान के कठपुतली प्रस्तुतकर्ता जावेद जोलपाघरी के मन में आया था। तत्पश्चात दो वर्ष बाद 2002 के जून माह में अटलांटा में काउंसिल द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया था जिसके बाद, 21 मार्च 2003, में पहली बार यह दिवस मनाया गया था। आज यह दिवस भारत सहित विश्व के कई देशों में कठपुतली दिवस मनाया जाता है।
'कठपुतली' शब्द पुत्तलिका जो की एक संस्कृत शब्द है उससे बना हुआ हैं | 'कठपुतली' पुत्तिका और लैटिन शब्द प्यूपा से भी मिलकर बना हुआ हैं | कठपुतली का अर्थ होता हैं 'छोटी गुडिया' । कठपुतली कला की शुरुवात भारत देश में हुआ था |
कठपुतली की कई प्रकार की रचना होती है। यह छोटे-छोटे लकड़ी के टुकड़ों, पेपर और रंग-बिरंगी कपड़ों से तैयार की जाती हैं | यह कठपुतलीयां गुड़ियों की तरह लगती हैं जो धागों से बंधी होती हैं | कठपुतली एक निर्जीव गुड़िया होती हैं | लेकिन जब इनके द्वारा प्रदर्शन किया जाता हैं, तब ऐसा लगता हैं की, कोई सजीव अपनी कला का प्रदर्शन दे रहा हैं | कठपुतली के माध्यम से कई गतिविधियाँ की जाती है जैसे गाँव-गाँव में जाकर दहेज़ प्रथा को रोकना, नशा बंद करना , बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ, आदि जैसे अनेक कार्यक्रमों के द्वारा सभी लोगों तक सकरात्मक संदेश पहुँचाने का कार्य करती हैं |
‘कठपुतली’ का खेल एक प्राचीन नाटकीय खेल है। यह खेल गुड़ियों अथवा पुतलियों (पुत्तलिकाओं) द्वारा खेला जाता है। कठपुतली का खेल दिखाने वाले को कठपुतली कलाकार या पपेटियर कहते हैं। गुड़ियों के नर मादा रूपों द्वारा जीवन के अनेक प्रसंगों की, विभिन्न विधियों से, इसमें अभिव्यक्ति की जाती है और जीवन को नाटकीय विधि से मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। कठपुतलियाँ अनेक प्रकार की होती है। लकड़ी, पेरिस-प्लास्टर या काग़ज़ की लुग्दी की कठपुतलियाँ बनाई जाती है। सभी कठपुतलियाँ उसके शरीर के भाग इस प्रकार जोड़े जाते हैं कि उनसे बँधी डोर खींचने पर वे अलग-अलग हिल सकें और नाटक प्रस्तुत कर सके। कठपुतली कला केवल मनोरंजन का एक साधन ही नहीं बल्कि अब यह कला करियर का रूप लेती जा रही है। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी कठपुतली का खेल लोकप्रिय होती जा रही है।
एक समय था जब कठपुतली कलाकार गाँव-गाँव में घूमते थे और विभिन्न कहानियों के नाटक दिखाकर अपना गुजरा करते थे | इस कला का दृश्य पुरे भारत देश में देखा जाता था | अंग्रेज सरकार के कारण यह कला विदेशों में भी लोकप्रिय होने लगी | आज यह कला जापान, चीन, रूस, इंग्लैंड, अमेरिका, जावा, श्रीलंका, आदि देशों में दिखाई जाती है। कठपुतली कलाकारों का गुजारा इन्ही कला को दिखाने पर ही होती है तथा इन कला के माध्यम से सकारात्मक संदेश सभी लोगों तक पहुँचाने का कार्य किया जाता है यही कठपुतली कला का महत्व दर्शाता है।
कठपुतली का खेल राजस्थान का सबसे प्रमुख और लोकप्रिय खेल माना जाता हैं | इसके माध्यम से गाँव में जाकर योजनाओं का प्रचार किया जाता हैं | सभी लोगों को दहेज़ प्रथा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नशा छोड़ो, आदि के बारे में बताया जाता हैं और लोगों को जागरूक किया जाता हैं | राजस्थान के भाट जाति के लोग द्वारा कठपुतलीयों को बनाकर इसके द्वारा नाटक प्रस्तुत करते हैं | कठपुतली के कलाकार इसे रंगों से सजाते हैं और वस्त्र पहनते हैं तथा इस खेल को दिखाते समय गीत भी गया जाता हैं |
प्राचीन काल से चली आ रही यह अद्भुत कला जिसे द्वारा लोगो को कहानी दिखाई जाती है उसे कठपुतली कहते है। कठपुतली जैसे रोचक कला को आने वाले युग में बढ़ावा देने के लिए इसे कठपुतली दिवस के रूप में पुरे दुनियाभर में मनाया जाता है। गुड्डा-गुड्डी का खेल, राजा-रानी का खेल, आदि कठपुतली द्वारा लोकप्रिय खेल दिखाया जाता है।
विश्व कठपुतली दिवस के दिन कई क्षत्रों में अनेक प्रकार के कार्यकर्म का आयोजन किया जाता है। इस दिन भारत के राजस्थान राज्य में कई जगह रंग-बिरंगी मेला देखने को मिलता है। यह दिन कठपुतली के कलाकारों का दिन होता है। गुड्डा-गुड्डी का खेल, राजा-रानी का खेल, आदि खेल कठपुतली के कलाकारों द्वारा दिखाए जाते है जिसे देखने के लिए बच्चों एवं बड़ो की भीड़ उमड़ने लगती है।
कठपुतली के माध्यम से गाँव में जाकर अनेक योजनाओं का प्रचार करना तथा सभी लोगों को दहेज़ प्रथा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नशा मुक्ति देश, आदि के बारे में बताकर लोगों को जागरूक करना विश्व कठपुतली दिवस का मुख्य उद्श्य है।
कठपुतली एक नाटक मनोरंजन साधन है | कठपुतलियाँ का खेल को दिखाकर लोगों तक सकरात्मक संदेश पहुँचाने का कार्य किया जाता हैं | इस कला के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता हैं | इसलिए इस मनोरंजन कला को प्रस्तुत कर पुरे देश में जागरूकता फ़ैलाने के लिए हर साल २१ मार्च को विश्व कठपुतली दिवस के रूप में मनाया जाता हैं |
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