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रुपरेखा : प्रस्तावना - विश्व हीमोफीलिया दिवस कब है - विश्व हीमोफीलिया दिवस का इतिहास - विश्व हीमोफीलिया दिवस क्यों मनाते है - हीमोफीलिया रोग के प्रकार - हीमोफीलिया के लक्षण - हीमोफीलिया रोग का उपचार - हीमोफीलिया रोग के बारे महत्वपूर्ण तथ्य - विश्व हीमोफीलिया दिवस का उद्देश्य - उपसंहार।
प्रस्तावना -विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस को अंग्रेजी में "World Haemophilia Day" कहते हैं। विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस पूरे विश्व में फैली गंभीर बीमारी 'हीमोफ़ीलिया' के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए मनाया जाता है।
हर साल संपूर्ण विश्व में 17 अप्रैल को ‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’ मनाया जाता है। वर्ष 2021 में, 17 अप्रैल शनिवार के दिन दुनिया भर में विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया गया है।
हीमोफीलिया को शाही बीमारी कहे जाने वाले रोग है। इस रोग के बारे में उस वक्त चला था, जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के वंशज एक के बाद एक इस बीमारी की चपेट में आने लगे। शाही परिवार के कई सदस्यों के हीमोफ़ीलिया से पीड़ित होने के कारण ही इसे ‘शाही बीमारी’ कहा जाने लगा था। पुरुषों में इस बीमारी सम्भावना सबसे अधिक होती है। आज के समय में देखा जाए तो विश्वभर में लगभग 50 हज़ार से ज़्यादा लोग इस रोग से पीड़ित हैं। दुनियाभर में हीमोफीलिया के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए 1989 से ‘विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस’ मनाने की शुरुआत की गई। तब से हर साल ‘वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ हीमोफ़ीलिया’ (डब्ल्यूएफएच) के संस्थापक फ्रैंक कैनेबल के जन्मदिन 17 अप्रैल के दिन ‘विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस मनाया जाता है। फ्रैंक कैनेबल की 1987 में संक्रमित ख़ून के कारण एड्स होने से उनकी मौत हो गई थी।
यह दिवस हीमोफीलिया तथा अन्य आनुवंशिक खून बहने वाले विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह रोग दो प्रकार का होता है अर्थात दो प्रकार के पाए जाते है
हीमोफ़ीलिया ‘ए’ सामान्य रूप से पाई जाने वाली बीमारी है। इसमें रक्त में थक्के बनने के लिए आवश्यक ‘फैक्टर 8’ की कमी हो जाती है। हीमोफ़ीलिया ‘बी’ में ख़ून में ‘फैक्टर 9’ की कमी हो जाती है। पांच हज़ार से दस हज़ार पुरुषों में से एक के हीमोफ़ीलिया ‘ए’ ग्रस्त होने का खतरा रहता है, जबकि 20,000 से 34,000 पुरुषों में से एक के हीमोफ़ीलिया ‘बी’ ग्रस्त होने का खतरा रहता है।
'हीमोफ़ीलिया ए’ में फैक्टर-8 की कमी होती है जो ज्यादा घातक होती है। ‘हीमोफीलिया बी’ में फैक्टर-9 की कमी होती है। फैक्टर-8 की कमी या मात्रा के अनुसार बीमारी की तीब्रता का निर्धारण होता है। जैसे फैक्टर-8 अथवा 9 का लेबल 2 प्रतिशत से कम है तो बीमारी अत्यन्त गंभीर मानी जाती है। इसमें अपने आप रक्तश्राव शुरू हो जाता है। जो मसल्स और जोड़ो पर चकत्ते के रूप में दिखाई देता है। प्रायः ऐसे बच्चों की बचपन में ही मौत हो जाती है। यदि मात्रा 2 से 8 प्रतिशत के बीच है तो मरीज गंभीर होता है। ऐसे लोगों में थोड़ी सी चोट में रक्तश्राव की प्रबल संभावना होती है। पैर की मांसपेशियों और अन्य अंगों में रक्तश्राव का खतरा होता है। यदि इसकी मात्रा 10 से 50 प्रतिशत के बीच है तो स्वतः रक्तश्राव नहीं होता है लेकिन सर्जरी के समय जान जाने का खतरा बना होता है।
चूंकि यह बीमारी आनुवंशिक है जो जन्मजात होती है इसलिए इसका इलाज जेनटिक इंजीनियरिंग के विकास के साथ संभव हुआ है। वर्तमान समय में मरीजों का उपचार फैक्टर-8 (काबुलेशन फैक्टर) को ट्रांसफ्यूज करके किया जाता है। जिन जगहों पर काबुलेशन फैक्टर उपलब्ध नहीं है। वहां फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा (एफएफपी) से करते है। जो रक्त का सफेद अवयव है को ट्रांसफ्यूज किया जाता है।
विश्व हीमोफीलिया दिवस को मनाने का उद्देश्य हीमोफ़ीलिया के प्रति लोगों में जागरुकता लाना है।
'हीमोफ़ीलिया' रोग का पता सर्वप्रथम उस वक्त लगा, जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के वंशज एक के बाद एक इस बीमारी की चपेट में आने लगे। शाही परिवार के कई सदस्यों के हीमोफ़ीलिया से पीड़ित होने के कारण ही इसे 'शाही बीमारी' कहा जाने लगा था। हीमोफ़ीलिया के प्रति जागरुकता लाने के लिए सन 1989 से इस दिवस की शुरुआत की गई। तब से हर साल 'वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ हीमोफ़ीलिया' के संस्थापक फ्रैंक कैनेबल के जन्मदिन 17 अप्रैल के दिन 'विश्व हीमोफ़ीलिया दिवस मनाया जाता है।
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