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रुपरेखा : प्रस्तावना - विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2021 - विश्व ऑटिज्म (स्वलीनता) जागरूकता दिवस का इतिहास - स्वलीनता (ऑटिज़्म) रोग किसे कहते है - ऑटिज़्म के लक्षण - ऑटिज़्म का प्रभाव - विश्व ऑटिज्म (स्वलीनता) जागरूकता दिवस का उद्देश्य - उपसंहार।
प्रस्तावना -विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस को अंग्रेजी में 'World Autism Awareness Day' कहते है। दुनियाभर में हर साल 2 अप्रैल को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल के दिन को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस घोषित किया था। इस दिन उन बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं, जो ऑटिज़्म ग्रस्त होते हैं और उन्हें सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है।
यह हर साल 2 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व स्वलीनता जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 में, 2 अप्रैल शुक्रवार के दिन मनाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर, 2007 को प्रतिवर्ष 2 अप्रैल के दिन को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस अथवा विश्व स्वलीनता जागरूकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
स्वलीनता (अथवा ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला रोग है, जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिंदी में इसे ‘आत्मविमोह’ और ‘स्वपरायणता’ भी कहते हैं। इसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है, साथ ही इसकी वजह से उनके न्यूरोसिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालता है और व्यक्ति के समग्र संज्ञानात्मक, भावनात्मक, समाजिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। ऑटिज़्म का विस्तृत दायरा है।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का मुख्य उद्देश्य है, स्वलीनता से ग्रस्त बच्चों तथा बड़ों के जीवन में सुधार हेतु कदम उठाना और उन्हें सार्थक जीवन व्यतीत करने में मदद करना है। भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 100 में से एक बच्चा ऑटिज्म ग्रस्त होता है और हर 60 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है।
ऑटिज़्म या आत्मविमोह या स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो विकास संबंधी एक गंभीर विकार है, जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (अर्थात प्रथम तीन वर्षों में) में ही नज़र आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है, साथ ही इसकी वजह से उनके न्यूरोसिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। सभी लोगों में इस रोग के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाता है।
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