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रुपरेखा : प्रस्तावना - जलियाँवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था - जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिवस कब है - जलियाँवाला बाग क्या है - जलियाँवाला बाग हत्याकांड क्या है - जलियाँवाला बाग हत्याकांड का इतिहास - जलियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ था - हंटर कमीशन की स्थापना - जलियाँवाला बाग का स्मारक - उपसंहार।
प्रस्तावना -जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिवस को अंग्रेजी में 'Jallianwala Bagh Massacre' कहते है। जलियाँवाला बाग हत्याकांड या अमृतसर नरसंहार, जहाँ वर्ष 1919 में जलियावाला बाग नरसंहार की वीभत्स घटना घटित हुई थी। जिसमें हजारों मासूम लोगों को बिना किसी कारण के निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया था। आज भी इस दिन को भारत में एक राष्ट्रीय शोक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इसी घटना को देखते हुए हर साल 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग जो कि पंजाब राज्य में स्थित है वहाँ एक सभा रखी गई थी उसी सभा के दौरान ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर और उनके सैनिकों के द्वारा गोलीबारी की गयी जिसमें हजारों मासूम लोग मारे गए थे। जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में हुआ था।
हर साल 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग में हुए मासूम लोगों का हत्याकांड को याद करने के लिए और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए यह जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 में, 13 अप्रैल मंगलवार के दिन जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिवस मनाया गया है।
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 में जलियाँवाला बाग में भारी नरसंहार की वजह से भारतीय इतिहास में जलियाँवाला बाग एक प्रसिद्ध नाम और जगह बन गया। ये भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित एक सार्वजनिक उद्यान है। भारत के पंजाब राज्य में शांतिप्रिय लोगों की याद में एक स्मारक बनाया गया है जो एक महत्वपूर्णं राष्ट्रीय स्थान के रुप में प्राख्यात है और आज वह जलियाँवाला बाग स्मारक नाम से प्रसिद्ध है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड या अमृतसर नरसंहार, वहाँ के लोगों के लिये एक बुरी घटना का दिन था, जिसे आज भी पंजाब राज्य के अमृतसर में बने स्मारक के द्वारा भारत के लोग उन्हें याद करते है। इसकी स्थापना पहली बार 1951 में हुई थी। जहाँ लोगों को याद करते है और उन्हें श्रद्धांजलि देते है जिन्होंने ब्रिटिश शासन के सैनिकों द्वारा किये गये नरसंहार में अपने प्राणों की आहूती दे दी। इस दिन अर्थात् 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में पंजाबी नया साल कहलाने वाले पंजाबी संस्कृति के सबसे प्रसिद्ध उत्सव को मनाने के लिये काफी लोग शामिल थे। औपनिवेशिक ब्रिटिश राज सूत्रों के द्वारा ये सूचित किया गया था कि लगभग 379 लोग मारे गये थे और 1100 लोग घायल हुए थे जबकि एक सिविल सर्जन (डॉ स्मिथ) के अनुसार, ये अनुमान लगाया गया कि 1526 लोग घायल हुए लेकिन सही आँकड़ों के बारे में आज भी पता नहीं है। पंजाब क्षेत्र में स्थित जलियाँवाला बाग मैदान स्वर्ण मंदिर परिसर के पास है जो सिक्ख धर्म के लोगों के लिये बहुत ही पवित्र स्थान कहा जाता है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड अमृतसर नरसंहार के रुप में भी प्रसिद्ध है क्योंकि यह घटना पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में घटित हुआ था। यह घटना भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान घटित हुआ था। भारतीय इतिहास के सबसे बुरी घटनाओं में से एक घटना माना जाता है। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को घटित हुई, जब पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग के सार्वजनिक मैदान में अहिंसक विद्रोहियों सहित जब एक आम लोगों (बैशाखी तीर्थयात्री) की बड़ी भीड़ जमा हुई थी। आम लोग (सिक्ख धर्म के) अपने सबसे प्रसिद्ध त्यौहार बैशाखी को मनाने के लिये इकट्ठा (कर्फ्यू घोषित होने के बावजूद इकट्ठा) हुए थे जबकि ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दो नेताओं (सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलूव) की गिरफ्तारी के खिलाफ अहिंसक विरोधकर्ता भी जमा हुए थे।
11 अप्रैल 1919 का वह दिन था जब जलंधर कैंटोनमेंट से जनरल डॉयर वहाँ पहुँचा था और नगर को अपने कब्जे में ले लिया था। उसने अपनी टुकड़ी को गोली चलाने का आदेश दिया जिससे दस मिनट तक लगतार उसके सैनिक गोली चलाते रहें। वो बेहद आक्रामक रुप से गेट की ओर गोली चलाते रहे जिससे कोई भी उस जगह से बाहर नहीं निकल पाया और सभी सीधे गोलियों का निशाना बने। रिपोर्ट के अनुसार ये बताया गया था कि 1000 से ज्यादा संख्या में लोगों की मौत हुई थी। ब्रिटिश सरकार की इस हिंसक कार्रवाही ने सभी को अचंभित और हैरान कर दिया। इस कार्रवाई के बाद लोगों का अंग्रेजी हुकुमत की नीयत पर से भरोसा उठ गया जो उन लोगों को 1920-1922 में हुए असहयोग आंदोलन की ओर ले गया।
अमृतसर के जलियाँवाला बाग में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक बड़ी क्रांति के होने की उम्मीद थी जहाँ 15000 से अधिक लोग उत्सव मनाने के लिये इकट्ठा हुए थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोंलन के नेताओं की योजनाओं को दबाने और खत्म करने के लिये अमृतसर नरसंहार एक प्रतिक्रिया के रुप में थी। सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलूव नाम के दो प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं को छुड़ाने के लिये 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के डिप्टी कमीशनर के आवास पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं द्वारा विरोध और माँग हो रही थी ये गिरफ्तार किये गये वो नेता थे जिन्हें बाद में ब्रिटिश सरकार द्वारा किसी गुप्त स्थान पर भेजने की योजना थी। इस विद्रोह में अंग्रेजी टुकड़ी द्वारा बड़ी भीड़ पर हमला किया गया था। सत्यपाल और सैफुद्दीन ने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन में भी साथ दिए थे।
13 अप्रैल के दिन सिक्ख धर्म के लोगों का एक पारंपरिक त्यौंहार बैशाखी था जिसके दौरान विभिन्न धर्मों के लोग जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख आदि अमृतसर के हरमिंदर साहिब के निकट जलियाँवाला बाग के सार्वजनिक उद्यान में इकट्ठा हुए थे। तभी सभा शुरु ही हुई थी कि जनरल डॉयर वहाँ अपने समूह के साथ आ पहुँचा जो लीइनफिल्ड बोल्ट एक्शन राइफल और मशीन गन के साथ थे, उसके सैनिकों ने पूरे मैदान को चारों तरफ से घेर लिया और बिना चेतावनी के गोलियाँ बरसानी शुरु कर दी गयी। बाद में क्रूर डॉयर ने सफाई देते हुए कहा कि ये कार्रवाई अवज्ञाकारी भारतियों को सजा देने के लिये थी जबकि वो भीड़ को तितर-बितर करने के लिये नहीं थी। गोलियों की आवाज सुनने के बाद, लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे लेकिन वो वहाँ से बच निकलने की कोई जगह नहीं पा सके क्योंकि वो पूरी तरह से ब्रिटिश सैनिकों से घिरा हुआ था। अपने आप को बचाने के लिये बहुत सारे लोग पास के ही कुएँ में कूद गये थे। बाद में इसी कुएँ से 120 लाशों को बाहर निकाला गया। इस तरह 13 अप्रैल 1919 भारत का सबसे दर्दनाक और अविस्मरणीय से भरा दिन था।
13 अप्रैल 1919 का रविवार का वो दिन जहाँ क्रांति को रोकने के लिये जनरल डॉयर के द्वारा सभी सभाएँ पहले ही रोक दी गयी थी लेकिन ये खबर सभी जगह ठीक से नहीं पहुंची थी। ये बड़ा कारण था कि जिससे कि अमृतसर के जलियाँलावा बाग में इकठ्ठा हुई थी लोगों की भीड़। वह सार्वजनिक मैदान जो जलियाँवाला बाग कहलाता है, जहाँ 13 अप्रैल 1919 को सिक्ख धर्म के लोगों का बैशाखी उत्सव था। जलियाँवाला बाग में उत्सव को मनाने के लिये कई गाँवो के लोग जमा हुए थे। जैसे ही आर.ई.एच. डॉयर को जलियाँवाला बाग में सभा होने की खबर मिली, वो अपने गोरखा बँदूकधारीयों के साथ वहाँ आ गया और भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। वो सैनिक बिना रुके लगातार निर्दोष लोगों पर गोलियाँ चलाते रहें जबतक कि उनके सारी गोलियाँ खाली नहीं हो गयी।
पंजाब राज्य के जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिये 14 अक्टूबर 1919 को भारतीय सरकार द्वारा एक कमेटी की घोषणा हुई। लार्ड विलियम हंटर (अध्यक्ष) के नाम पर हंटर कमीशन के रुप में इसका नाम रखा गया। बॉम्बे (आज वह मुंबई के नाम से जाना जाता है), दिल्ली और पंजाब में कुछ ही समय पहले हुई सभी घटनाओं के बारे में अच्छे तरीके से जाँच करने के लिये इस कमीशन की स्थापना हुई। हालाँकि डॉयर की कार्रवाई के खिलाफ हंटर कमीशन कोई भी अनुशासनात्मक कार्रवाई को लागू करने में अक्षम साबित हुआ क्योंकि उसके वरिष्ठों के द्वारा उसे भुला दिया गया।
अमृतसर नरसंहार के बाद जलियाँवाला बाग तीर्थस्थान का एक राष्ट्रीय स्थल बन गया। शहीदों की याद में नरसंहार की जगह पर स्मारक बनाने के लिये मदन मोहन मालवीय ने एक कमेटी का निर्माण किया। स्मारक का नाम “अग्नि की लौ” रखा गया जिसका उद्घाटन उसके घटने की तारीख दिन 13 अप्रैल को 1961 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा किया गया। हर किनारे पर खड़े पत्थर के लालटेन के साथ एक छिछले पानी में चार तरफ वाले लाल मतवाले किनारे पर पतली लंबाई के द्वारा घिरा हुआ मध्य में 30 फीट के ऊँचें स्तंभ के साथ स्मारक बना है। राष्ट्रीय प्रतीक के एक चिन्ह के रुप में अशोक चक्र के साथ ये 300 पट्टियों से बना है। स्मारक के चारों स्तंभों पर हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी और ऊर्दू में “13 अप्रैल 1919, शहीदों की याद में” लिखा हुआ है। जलियाँवाला बाग के मुख्य प्रवेश द्वार के बहुत पास एक बच्चों की स्वीमिंग पूल बनाने के द्वारा डॉयर के सैनिकों की अवस्था को चिन्हित किया गया है। आज कई क्षत्रों से लोग जलियाँवाला बाग का स्मारक देखने आते है और वहां कुछ देर बैठ के उन दिनों को याद कर सभी मृत्यु हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
दिनांक 13 अप्रैल 1919 में जलियावाला बाग नरसंहार की वीभत्स घटना घटित हुई थी। जिसमें हजारों मासूम लोगों की मौत हुए थी। आज भी इस दिन को भारत में एक राष्ट्रीय शोक दिवस के रुप में मनाया जाता है। वर्तमान में इस दिन देश भर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोगों द्वारा जलियाँवाला बाग नरसंहार में मारे गये व्यक्तियों को श्रद्धांजलि देते है। जिसमें देशभक्ती गीत तथा भाषण जैसे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। पंजाब के अमृतसर में भारतीय किसान यूनियन द्वारा 13 अप्रैल के दिन जलियाँवाला बाग नरसंहार की शताब्दी मनाई जाती है। जहाँ जलियाँवाला बाग नरसंहार के मृतकों को श्रद्धांजलि दिया जाता है। इसी तरह जलियाँवाला नरसंहार शताब्दी दिवस के अवसर पर भारत के कई क्षत्रों में कार्यक्रम, गतिविधियां का आयोजन किया जाता है।
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