छात्र और राजनीति पर निबंध

ADVERTISEMENT

विद्यार्थी और राजनीति पर हिंदी निबंध - विद्यार्थी और राजनीति क्या है - छात्र राजनीति का इतिहास - छात्र जीवन और राजनीति निबंध - छात्र राजनीति से निकले नेता - आज की राजनीति - विद्या और राजनीति में क्या संबंध है - Student and Politics Essay in Hindi - essay on student and politics in India in Hindi

प्रस्तावना - विद्या और राजनीति - राजनीति का वर्तमान परिदृश्य - छात्र जीवन में राजनीति - राजनीति का अध्ययन क्यों आवश्यक है - उपसंहार।

परिचय | छात्र और राजनीति की प्रस्तावना -

छात्र की जीवन-वृत्ति इस पर निर्भर करती है कि वह विद्यालय में क्या पढ़ता है। छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन करते हैं। जो राजनीतिज्ञ बनना चाहते हैं, वे शुरू से ही राजनीति में रुचि लेते हैं। वे विद्यालय एवं महाविद्यालय के चुनावों में हिस्सा लेते हैं। छात्र और राजनीति का संबंध बहुत पुराना रहा है।


विद्या और राजनीति | विद्या और राजनीति में क्या संबंध है -

विद्या और राजनीति सहोदरा हैं। दोनों का पृथक रहना कठिन है। दोनों: के स्वभाव भिन हैं, किन्तु लक्ष्य एक है : व्यक्ति और समाज को अधिकाधिक सुख पहुँचाना। विद्या नैतिक नियमों का वरण करती है, अत: उसमें सरलता हैं, विजय है तथा बल है, जबकि राजनीति में दर्प है, और है बाह्य शक्ति। भारतीय-संस्कृति के ऐतिहासिक पृष्ठों को पलटें, तो पता लगेगा कि विद्या ने राजनीति को स्नेह प्रदान किया है और प्रतिदान में राजनीति ने शिक्षा को समुचित आदर दिया है, जिसका संचालन राजनीतिक नेताओं द्वारा होता है।

संसार का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी किसी राष्ट्र में क्रांति का बिगुल बजा, तो वहाँ के छात्र द्रष्टा मात्र नहीं रहे, अपितु उन्होंने क्रांति के बागडोर संभाली। परतंत्रता काल में स्वातंत्र्य के लिए और वर्तमान काल में भ्रष्टाचारी सरकारों के उन्मूलन के लिए भारत में छात्र शक्ति ने अग्रसर होकर क्रांति का आह्वान किया। इंडोनेशिया और ईरान में छात्रों ने सरकार का तख्ता ही उलट दिया था। यूनान की शासन नीति में परिवर्तन का श्रेय छात्र वर्ग को ही है। बंगलादेश को अस्तित्व में लाने में ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। असम के मुख्यमंत्री तो विद्यार्थी रहते ही मुख्यमंत्री बने थे।


राजनीति का वर्तमान परिदृश्य | आज की राजनीति -

बहुत-से छात्रों ने अपना अध्ययन छोड़ा और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उनका त्याग सराहा गया। परंतु, अब परिदृश्य बदल चुका है। अब हमारी राजनीतिक व्यवस्था में ज्यादातर स्वार्थी नेता हैं। उनका एकमात्र प्रयोजन अपनी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करना होता है। वे शायद ही राष्ट्र की परवाह करते हैं। ऐसे नेताओं ने हमारे छात्रों का भी उपयोग करना शुरू कर दिया है।

मेधावी छात्र राजनीति को किसी उपयोग का नहीं समझते। जो पढ़ाई में अच्छे नहीं होते, वे राजनीति से जुड़ जाते हैं। ऐसे छात्र बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न कर देते हैं। वे अपनी पढ़ाई से भागते हैं और अन्य छात्रों एवं शिक्षकों को परेशान करते हैं। वे हड़ताल पर चले जाते हैं। वे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्हें स्वार्थी नेताओं द्वारा समर्थन किया जाता है। ये नेता युवाओं और छात्रों की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे नेताओं से प्रभावित होकर वे गलतियाँ कर बैठते हैं।


छात्र जीवन में राजनीति | छात्र जीवन में राजनीति की भूमिका -

छात्र को पढाई खत्म करने के बाद भी जीवन के चौराहे पर किंकर्तव्य-विमूढ़ (परेशान) खड़ा होना पड़ता है। नौकरी उसे मिलती नहीं, हाथ की कारीगरी से वह अनभिज्ञ है। भूखा पेट रोटी माँगता है। वह देखता है, राजनीतिज्ञ बनकर समाज में आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा और धन प्राप्त करना सरल है, किन्तु नौकरी पाना कठिन है। ईमानदारी से रोजी कमाना पर्वत के उच्च-शिखर पर चढ़ना है तो वह राजनीति में कूद पड़ता है। आज कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र-संघों के चुनाव होते हैं, जो कि संसद्‌ के चुनाव से कम महत्त्वपूर्ण और अल्पव्ययी नहीं हैं विद्यालयों में संसद्‌ और राज्य विधान-सभाओं का अनुकरण कराया जाता है।


राजनीति का अध्ययन क्यों आवश्यक है -

हमारे देश को युवा और ईमानदार नेताओं की जरूरत है। हमलोग भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, घोटाले, हड़ताल आदि-जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन सबसे निपटने के लिए हमलोगों को योग्य शासकों की आवश्यकता है। अन्य विषयों की तरह विद्यालयों और महाविद्यालयों में राजनीति भी पढ़ाई जानी चाहिए। लेकिन, ऐसी राजनीति निश्चय ही राष्ट्र-हित में होनी चाहिए। इसीलिए समाज को भ्रष्टाचार और अंधविश्वास से मुक्त करने के लिए राजनीति का अध्ययन करना आवश्यक हैं।


उपसंहार -

यदि छात्रों को राजनीति के वास्तविक प्रयोजन से अवगत कराया जाए, तो वे इसके प्रति एक सकारात्मक रवैया विकसित करेंगे। यह स्वस्थ मनोवृत्ति योग्य नेताओं का सृजन करेगी। तभी हमारे पास देश के लिए अच्छे प्रशासक होंगे। दलगत और फरेबी राजनीति के अखाड़ेबाजों को यह समझना होगा कि शिक्षक एवं छात्र भ्रष्टाचार, सामन्तशाही, आडम्बर, विलासिता आदि को समाजवाद की संज्ञा नहीं देंगे और राजनीति के नाम पर समाज विरोधी तत्त्वों द्वारा शिक्षा की छेड-छाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे। इस प्रकार शिक्षा में राजनीति का हस्तक्षेप समाप्त होने पर ही भारत का छात्र व्यावहारिक राजनीति के दर्शन का पण्डित बन पथ-प्रदर्शक, सूत्रधार, क्रान्त-दर्शी और समाज का उन्‍नायक बन सकेगा। अतः छात्र और राजनीति के संबंध को पुनर्जीवन की आवश्यकता है।


ADVERTISEMENT