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रूपरेखा: प्रस्तावना - बिना किसी तनाव के पढाई - विद्यार्थी जीवन के प्रकार - विद्यार्थी जीवन पर अनुशासन का महत्व - एक विद्यार्थी का कर्तव्य - आज का विद्यार्थी - छात्रों का बुरे आदतें की ओर आकर्षित होना - परिवार की समस्याएं - विद्यार्थी जीवन में अभ्यास का महत्व - विद्यार्थी जीवन में खेलों का महत्व - उपसंहार।
परिचय | विद्यार्थी जीवन का महत्व की प्रस्तावना- विद्यार्थी जीवन का वह समय किसी भी मनुष्य के जीवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण और उत्साह से भरा हुआ समय होता है। इसी विद्यार्थी जीवन काल पर विद्यार्थी का सम्पूर्ण भविष्य निर्भर करता है। इस काल का सदुपयोग करने वाले विद्यार्थी अपने भविष्य काल को बहुत ही आरामदायक और सुखमय बना सकते हैं और इस काल को व्यर्थ में ही नष्ट कर देने वाले विद्यार्थी अपने आने वाले भविष्य को अंधकारमय बना लेते हैं जिससे की आने वाले कल में उनको निराशा देखने को मिलता है। विद्यार्थी जीवन काल एक ऐसा समय है जिसमें किसी भी मनुष्य के चरित्र की नींव पड़ जाती है। अतः सभी विद्यार्थियों को अपने इस जीवन काल में अपना हर एक कदम बहुत ही सोच समझकर उठाने की जरूरत होती है। इसीलिए विद्यार्थी जीवन का अधिक महत्व है।एक समय आता है जब बालक या युवक किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता है, वह जीवन ही विद्यार्थी जीवन (Student Life) है । कमाई की चिंता से मुक्त अध्ययन का समय ही विद्यार्थी-जीवन है। भारत की प्राचीन विद्या-विधि में पचीस वर्ष की आयु तक विद्यार्थी घर से दूर आश्रमों में रहकर विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था, किन्तु देश की परिस्थिति-परिवर्तन से यह प्रथा गायब हो गई। इसका स्थान विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने ले लिया। इन तीनों संस्थाओं में जब तक बालक या युवक पढ़ते है, वह विद्यार्थी कहलाते है। उसकी अध्ययन पद में उसका जीवन “विद्यार्थी-जीवन (Vidyarthi Jeevan) नाम से नामांकित किया जाता है। आधुनिक भारत में गुरुकुल तथा छात्रावास नियम प्राचीन ऋषि- आश्रमों का बदला हुआ समय है।
आज का विद्यार्थी-जीवन दो प्रकार का है, पहला वह जो परिवार में रहते हुए विद्यार्थी - जीवन पूरा करता है। दूसरा जो छात्रवास में रहकर अपना विद्यार्थी जीवन समाप्त करता है | परिवार में रहते विद्यार्थी -जीवन में विद्यार्थी परिवार में रहकर ठसकी समस्याओं, आवश्यकताओं, माँगों को पूरा करते हुए भी अध्ययन करता है। नियमित रूप से विद्यालय जाना और पारिवारिक कामों को करते हुए भी घर पर रहकर ही पढ़ाई करना, उसके विद्यार्थी-जीवन की पहचान है। दूसरी ओर, छात्रावास में जो विद्यार्थी रहते है वह पारिवारिक समस्याओं से मुक्त शैक्षिक वातावरण में रहता हुआ विद्यार्थी-जीवन का निर्वाह कर अपना शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास करता है।
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्व होता है। अनुशासन सफलता की कुंजी है। अनुशासन मनुष्य के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। यदि मनुष्य अनुशासन में जीवन व्यतीत करता है तो वह स्वयं के लिए एक सुखद और उज्जवल भविष्य निर्धारित करता है और यदि किसी व्यक्ति के भीतर(अंदर) अनुशासनहीनता होती है तो वह स्वयं के लिए कठिनाइयां उत्पन्न करता है और निराशा एवं असफलता प्राप्त करता है।
यदि किसी विद्यार्थी में अनुशासन की कमी होगी तो उनका भविष्य खतरे में होगा। यदि आंखें उठाकर हम देखे तो अनुशासन मनुष्य के जीवन में हर रूप में विद्यमान है। इस संसार में हर कोई अनुशासन का पालन करता है जैसे, जिस प्रकार सूर्य समय पर उगता व अस्त होता है, पेड़-पौधों में भी अनुशासन व्याप्त है। घड़ी की सुई भी अनुशासन का पालन करते हुए चलती है। वर्तमान समय में देखा जाए तो हर तरफ अनुशासनहीनता दिखाई देती है। यही कारण है कि आज देश में अधिक विद्यार्थी का जीवन सफल नहीं हो पा रहा है। अतः विद्यार्थियों के जीवन में अनुशासन का विशेष महत्व है।
विद्यार्थी-जीवन उन विद्याओं, कलाओं के शिक्षण का काल है, जिनके द्वारा वह छात्र-जीवन में ही कमाई कर अपने परिवार का देखभाल कर सके यही एक विद्यार्थी का कर्तव्य है। यह काल संघर्षमय संसार में सम्मानपूर्वक जीने तथा निर्माण करने का समय है। इन सबके निमित्त सीखना, शारीरिक और मानसिक विकास करने, नैतिकता द्वारा आत्मा को विकसित करने की स्वर्णिम समय है यह विद्यार्थी जीवन। निश्चित-पादयक्रम के अध्ययन से छात्र सीखता है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के अध्ययन तथा आचार्यों के प्रवचनों से वह मानसिक विकास करता है। शैक्षणिक-प्रवास और भारत-दर्शन कार्यक्रम उसके मानसिक-विकास में विकास करता हैं। हर रोज सुबह उठकर व्यायाम कर अपना शारीरिक विकास करता है।
प्रश्न यह है कि क्या आज का शिक्षार्थी सही अर्थ में विद्यार्थी-जीवन का दायित्व पूर्ण कर रहा है ? इसका उत्तर नहीं में होगा। कारण, उसे अपने विद्यार्थी-जीवन में न तो ऐसी शिक्षा दी जाती है, जिससे जीवन में प्रवेश करते ही जीविका का साधन प्राप्त हो जाये। और नाही उसे वैवाहिक अर्थात् पारिवारिक जीवन जीने की कला का पाठ पढ़ाया जाता है। इसलिए जब वह विद्यार्थी-जीवन से अर्थात् गैर-जिम्मेदारी से पारिवारिक-जीवन अर्थात् सम्पूर्ण जिम्मेदारी के जीवन में कदम रखता है तो उसे असफलता का सामना करना पड़ता है। आज का विद्यार्थी जीवन के लिए अनुचित अनेक प्रकार के विषयों का अपने दिमाग पर बोझ लादता है। सिखने के नाम पर पुस्तकों का भार अपने कमर पर लादता है।
आज का विद्यार्थी-जीवन विद्या की साधना, मन कौ एकाग्रता और अध्ययन के चिंतन-मन से कोसों दूर है। इसीलिए छात्र पढ़ाई से जी चुराता है, श्रेणियों से पलायन करता है। आज के छात्र हर वक़्त नकल करके पास होना चाहता है। जाली-डिग्रियों के भरोसे अपना भविष्य उज्ज्वल करने की प्रयास करता है। स्कूल, कॉलिजों में उपयुक्त खेल-मैदानों, श्रेष्ठ खेल-उपकरणों तथा योग्यशिक्षकों के अभाव में विद्यार्थी-जीवन की पहुँच से परे होते जा रहे हैं। ऐसे में आज का विद्यार्थी- जीवन जीवन को स्वस्थ और उत्तेजित बनाने में पिछड़ रहा है। आज का छात्र विद्यार्थी-जीवन में राजनीति से प्रेम करता है। हड़ताल, तोड़-फोड़, जलूस, नारेबाजी, का पाठ पढ़ता है। जो पढ़ता है, वह उसे प्रत्यक्ष करता है। आज के छात्र का विद्यार्थी-जीवन प्रेम और वासना के आकर्षण का जीवन है। वह गर्ल फ्रेंड, तथा बॉय फ्रेंड बनाने में रुचि लेता है । व्यर्थ घूमने-फिरने, होटलों-क्लबों में जाने में समय का सदुपयोग मानता है।
वर्तमान में तेजी से बढ़ते महँगाई की मार ने, पारिवारिक उलझनों और संकटों ने, दूरदर्शन की चकाचौंध ने, सामाजिक कुरूपता और राजनीतिक अस्थिरता ने भारतीय जीवन से ही जीवन-जीने का हक छीन लिया है। गिरते परीक्षा-परिणाम, फस्ट डिवीजन और डिस्टिकशन की गिरतीसंख्या वर्तमान विद्यार्थ-जीवन के अभिशाप के प्रमाण हैं। जो विद्यार्थी के पारिवारिक की समस्याएँ तथा परेशानी बढ़ा देती हैं।
विद्यार्थी जीवन में उचित पढाई-लिखाई का होना अधिक महत्वपूर्ण है। विद्वानों का कहना है कि, अभ्यास विद्यार्थी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अभ्यास का किसी भी विद्यार्थी के जीवन में बहुत अहम भूमिका होता है। किसी भी विद्यार्थी को निरन्तर अभ्यास करने से ही विद्या प्राप्त होती है और अभ्यास न करने से विद्या समाप्त हो जाती है। अभ्यास करने की कोई सीमा नहीं होती। निरन्तर अभ्यास से व्यक्ति कुछ भी प्राप्त कर सकता है। अभ्यास के बल पर असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है।
विद्यार्थी जीवन काल में पढ़ाई के साथ ही खेलों का भी अधिक महत्व है। विद्यार्थी का पढाई के साथ-साथ खेल में भी रूचि रखना अत्यंत आवश्यक है। वे विद्यार्थी जो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ खेलों को भी बराबर का महत्व देते हैं, वे प्रायः कुशाग्र बुद्धि के होते हैं।
खेल प्रत्येक मनुष्य के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और खेल मानव शरीर के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि भोजन, खासतौर पर विद्यार्थियों के जीवन में मानसिक बोझ और शारीरिक थकान को हल्का करने का एक साधन खेलकूद भी है। खेल हमारे सम्पूर्ण विकास का एक अहम हिस्सा है, जिससे हम दिनभर की थकान को नई ऊर्जा में बदल सकते हैं। इसीलिए विद्यार्थी के साथ-साथ हर व्यक्ति के जीवन में खेल का होना अधिक महत्वपूर्ण हैं।
इसी प्रकार और भी ऐसी बहुत सी महत्वपूर्ण बातें हैं जो विद्यार्थी जीवन का महत्व को दर्शाता है। विद्यार्थी का उचित लगन, उनका कर्तव्य, समाज के प्रति योगदान आदि उन्हें सफल और बेहतरीन भविष्य की ओर ले जाती हैं। विद्यार्थी जीवन किसी भी मनुष्य के जीवन का सबसे अच्छा और यादगार काल होता है। विद्यार्थियों को अपने विद्यार्थी जीवन काल में अपनी उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल कूद और व्यायाम पर पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए तथा उन्हें इस विद्यार्थी जीवन में बहुत ही परिश्रमी और लगनशील होनी चाहिए। हर व्यक्ति को अपने जीवन में सफल होने के लिए उचित शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक है।
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