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रूपरेखा: तनाव मुक्त अध्ययन का समय - विद्यार्थी जीवन के प्रकार - एक विद्यार्थी का कर्तव्य - आज का विद्यार्थी भटकाव की ओर - छात्रों का कामवासना की ओर आकर्षित - परिवार की समस्याएँ।
विद्यार्थी जीवन पर निबंध प्रस्तावना | तनाव मुक्त अध्ययन का समय -एक समय आता है जब बालक या युवक किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता है, वह जीवन ही विद्यार्थी जीवन (Student Life) है । कमाई की चिंता से मुक्त अध्ययन का समय ही विद्यार्थी-जीवन है। भारत की प्राचीन विद्या-विधि में पचीस वर्ष की आयु तक विद्यार्थी घर से दूर आश्रमों में रहकर विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था, किन्तु देश की परिस्थिति-परिवर्तन से यह प्रथा गायब हो गई। इसका स्थान विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने ले लिया। इन तीनों संस्थाओं में जब तक बालक या युवक पढ़ते है, वह विद्यार्थी कहलाते है। उसकी अध्ययन पद में उसका जीवन “विद्यार्थी-जीवन (Vidyarthi Jeevan); नाम से नामांकित किया जाता है। आधुनिक भारत में गुरुकुल तथा छात्रावास नियम प्राचीन ऋषि- आश्रमों का बदला हुआ समय है।
आज का विद्यार्थी-जीवन दो प्रकार का है, पहला वह जो परिवार में रहते हुए विद्यार्थी - जीवन पूरा करता है। दूसरा जो छात्रवास में रहकर अपना विद्यार्थी जीवन समाप्त करता है | परिवार में रहते विद्यार्थी -जीवन में विद्यार्थी परिवार में रहकर ठसकी समस्याओं, आवश्यकताओं, माँगों को पूरा करते हुए भी अध्ययन करता है। नियमित रूप से विद्यालय जाना और पारिवारिक कामों को करते हुए भी घर पर रहकर ही पढ़ाई करना, उसके विद्यार्थी-जीवन की पहचान है। दूसरी ओर, छात्रावास में जो विद्यार्थी रहते है वह पारिवारिक समस्याओं से मुक्त शैक्षिक वातावरण में रहता हुआ विद्यार्थी-जीवन का निर्वाह कर अपना शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास करता है।
विद्यार्थी-जीवन उन विद्याओं, कलाओं के शिक्षण का काल है, जिनके द्वारा वह छात्र-जीवन में ही कमाई कर अपने परिवार का देखभाल कर सके यही एक विद्यार्थी का कर्तव्य है। यह काल संघर्षमय संसार में सम्मानपूर्वक जीने तथा निर्माण करने का समय है। इन सबके निमित्त सीखना, शारीरिक और मानसिक विकास करने, नैतिकता द्वारा आत्मा को विकसित करने की स्वर्णिम समय है यह विद्यार्थी जीवन। निश्चित-पादयक्रम के अध्ययन से छात्र सीखता है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के अध्ययन तथा आचार्यों के प्रवचनों से वह मानसिक विकास करता है। शैक्षणिक-प्रवास और भारत-दर्शन कार्यक्रम उसके मानसिक-विकास में विकास करता हैं। हर रोज सुबह उठकर व्यायाम कर अपना शारीरिक विकास करता है।
प्रश्न यह है कि क्या आज का शिक्षार्थी सही अर्थ में विद्यार्थी-जीवन का दायित्व पूर्ण कर रहा है ? इसका उत्तर नहीं में होगा। कारण, उसे अपने विद्यार्थी-जीवन में न तो ऐसी शिक्षा दी जाती है, जिससे जीवन में प्रवेश करते ही जीविका का साधन प्राप्त हो जाये। और नाही उसे वैवाहिक अर्थात् पारिवारिक जीवन जीने की कला का पाठ पढ़ाया जाता है। इसलिए जब वह विद्यार्थी-जीवन से अर्थात् गैर-जिम्मेदारी से पारिवारिक-जीवन अर्थात् सम्पूर्ण जिम्मेदारी के जीवन में कदम रखता है तो उसे असफलता का सामना करना पड़ता है। आज का विद्यार्थी जीवन के लिए अनुचित अनेक प्रकार के विषयों का अपने दिमाग पर बोझ लादता है। सिखने के नाम पर पुस्तकों का भार अपने कमर पर लादता है।
आज का विद्यार्थी-जीवन विद्या की साधना, मन कौ एकाग्रता और अध्ययन के चिंतन-मन से कोसों दूर है। इसीलिए छात्र पढ़ाई से जी चुराता है, श्रेणियों से पलायन करता है। आज के छात्र हर वक़्त नकल करके पास होना चाहता है। जाली-डिग्रियों के भरोसे अपना भविष्य उज्ज्वल करने की प्रयास करता है। स्कूल, कॉलिजों में उपयुक्त खेल-मैदानों, श्रेष्ठ खेल-उपकरणों तथा योग्यशिक्षकों के अभाव में विद्यार्थी-जीवन की पहुँच से परे होते जा रहे हैं। ऐसे में आज का विद्यार्थी- जीवन जीवन को स्वस्थ और उत्तेजित बनाने में पिछड़ रहा है। आज का छात्र विद्यार्थी-जीवन में राजनीति से प्रेम करता है। हड़ताल, तोड़-फोड़, जलूस, नारेबाजी, का पाठ पढ़ता है। जो पढ़ता है, वह उसे प्रत्यक्ष करता है। आज के छात्र का विद्यार्थी-जीवन प्रेम और वासना के आकर्षण का जीवन है। वह गर्ल फ्रेंड, तथा बॉय फ्रेंड बनाने में रुचि लेता है । व्यर्थ घूमने-फिरने, होटलों-क्लबों में जाने में समय का सदुपयोग मानता है।
वर्तमान में तेजी से बढ़ते महँगाई की मार ने, पारिवारिक उलझनों और संकटों ने, दूरदर्शन की चकाचौंध ने, सामाजिक कुरूपता और राजनीतिक अस्थिरता ने भारतीय जीवन से ही जीवन-जीने का हक छीन लिया है। गिरते परीक्षा-परिणाम, फस्ट डिवीजन और डिस्टिकशन की गिरतीसंख्या वर्तमान विद्यार्थ-जीवन के अभिशाप के प्रमाण हैं। जो विद्यार्थी के पारिवारिक की समस्याएँ तथा परेशानी बढ़ा देती हैं।
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