विद्यार्थी और शिष्टाचार पर निबंध

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छात्र और शिष्टाचार पर निबंध - विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार का महत्व पर हिंदी निबंध - विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार के दस गुण - विद्यार्थी के अंदर शिष्टाचार का होने के पीछे किसकी भूमिका - विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार कैसे लाये - शिष्टाचार पर निबंध - Vidyarthiyon ke Jeevan me Shishtachar ka Mahatva

रूपरेखा : प्रस्तावना - विद्या प्राप्ति लक्ष्य - जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं - विद्यार्थी के अंदर शिष्टाचार का होने के पीछे किसकी भूमिका - संयमित आचरण, परिश्रमी और स्वाध्यायी - विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार कैसे लाये - विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार के दस गुण - सादा जीवन और उच्च विचार और सामाजिकता - उपसंहार।

परिचय | विद्यार्थी और शिष्टाचार की प्रस्तावना -

विद्यार्थी के अंदर शिष्टाचार का होना अधिक महत्व है। विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार का महत्व का कोई वर्णन नहीं है। एक विद्यार्थी जो पूरी लगन से अध्ययन करता है, स्कूल, घर और समाज में ईमानदारी से व्यवहार करता है, सभी लोगों के साथ अच्छे से रहता है तथा उनकी मदत करता है और साथ ही सह-पाठ्यचर्या वाली गतिविधियों में भाग लेता है। हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चें के अंदर शिष्टाचार हो जो दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके। एक शिष्टाचारी विद्यार्थी को हर जगह (जैसे- स्कूलों, महाविद्यालय, कोचिंग सेंटरों, खेल संस्थाओं और शिक्षा से सम्बंधित सेमिनारों में) स्वागत किया जाता है। विद्यार्थी के जीवन में शिष्टाचार का होना ही उनकी सफलता की कुंजी है।


विद्या प्राप्ति लक्ष्य | अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए उचित विद्या पाने का लक्ष्य -

जीवन का प्रथम भाग (प्राय: पच्चीस वर्ष की वय तक) विधोपार्जन का काल है। विद्याध्ययन करने का स्वर्ण काल है। भविष्य का श्रेष्ठ नागरिक बनने की क्षमता और सामर्थ्य उत्पन करने का समय है। अत: विद्यार्थी को विद्या की क्षुधा शान्त करने तथा जीवन निर्वाहि योग्य बनाने के लिए आदर्श विद्यार्थी बनना होगा। आदर्श विद्यार्थी उत्तम विचारों का संचय करेगा, क्षुद्र स्वार्थों और दुराग्रहों से मुक्त रहेगा। मन वचन कर्म में एकता स्थापित कर जीवन के सत्य रूप को स्वीकार करेगा।

विद्यार्थी का लक्ष्य है विद्या प्राप्ति करना। विद्या प्राप्ति के माध्यम हैं गुरुजन या शिक्षक । आज की भाषा में कहे तो, अध्यापक या प्राध्यापक। शिक्षक से विद्या-प्राप्ति के तीन उपाय हैं नप्रता, जिज्ञासा और सेवा। गाँधी जी प्राय: कहा करते थे- जिनमें नम्रता नहीं आती, वे विद्या का पूरा सदुपयोग नहीं कर सकते। तुलसीदास ने इसी बात का समर्थन करते हुए कहा हैं, 'यथा नवहिं बुध विद्या पाये। अध्यापक के प्रति नम्रता दिखाइए और समझ न आने वाले प्रश्न को बार-बार पूछ लीजिए, उन्हें क्रोध नहीं आएगा । वैसे भी नम्रता समस्त सद्गुणों की जननी है। बड़ों के प्रति नम्रता दिखाना विद्यार्थी का कर्तव्य है, बराबर वालों के प्रति नम्रता विनयसूचक है तथा छोटों के प्रति नम्रता कुलीनता का द्योतक है।


जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं | अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए मन में जिज्ञासा होना -

जिज्ञसा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। यह तीव्र बुद्धि का स्थायी और निश्चित गुण है। पाठ्य-पुस्तकों तथा पाद्यक्रम के प्रति जिज्ञासा-भाव विद्यार्थी की बुद्धि विकसित करेगा और विषय को हृदयंगम करने में सहायक होगा । जिज्ञासा एकाग्रता की सखी है। अध्ययन के समय एकाग्रचित्तता पाठ को समझने और हृदयंगम करने के लिए अनिवार्य गुण है। पुस्तक हाथ में हो और चित्त (ध्यान) हो दूरदर्शन के 'चित्रहार (अर्थात फिल्मों के कहानी)' में, तो पाठ कैसे स्मरण होगा ? इसीलिए आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए किसी भी कार्य करते वक़्त तथा पढाई करते वक़्त मन में उसे पूरा करने के लिए जिज्ञासा होनी चाहिए।


विद्यार्थी के अंदर शिष्टाचार का होने के पीछे किसकी भूमिका -

अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए सबसे अधिक और अहम भूमिका होती है उनके माता-पिता की। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अपनी कक्षा में हर काम में प्रथम रहें, दूसरों के लिए एक आदर्श उदाहरण बने। कई छात्र अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं लेकिन एक आदर्श छात्र बनने के लिए उनमें दृढ़ संकल्प और कई अन्य कारकों की कमी होती है। कुछ लोग प्रयास करते हैं और असफल होते हैं पर कुछ लोग प्रयास करने में ही असफ़ल हो जाते हैं लेकिन क्या अकेले छात्रों को इस विफलता के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए? नहीं! माता-पिता को यह समझना चाहिए कि वे अपने बच्चे के समग्र व्यक्तित्व को बदलने और जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। यह उनका कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को स्कूल में अच्छा करने के महत्व को समझने में उनकी सहायता करें। इसीलिए किसी भी विद्यार्थी के अंदर शिष्टाचार होने के लिए उनकी माता-पिता का सहयोग देना अनिवार्य है।


संयमित आचरण, परिश्रमी और स्वाध्यायी | एक विद्यार्थी का शिष्टाचार होने के लिए इनका अहम भूमिका -

विद्यार्थी को विद्या प्राप्ति के लिए अन्य आदर्श भी अपनाने होंगे। सर्वप्रथम उसे संयमित आचरण अपनाना होगा । असंयमित आचरण उसके जीवन को कभी सफल नहीं बनने देगा। मुख्यतः खाने, खेलने और पढ़ने में छात्र को पूर्णत संयम बरतना चाहिए। अधिक भोजन से अस्वस्थ्य, अधिक खेलने से अशिक्षित और अधिक पढ़ने से किताबी कीड़े बनते हैं । इसीलिए उचित मात्रा में खाने, नियमित रूप से खेलने और पढ़ाई के लिए निश्चित समय देने में ही विद्यार्थी जीवन की सफलता है। विद्यार्थी को परिश्रमी और स्वाध्यायी होना चाहिए। चाणक्य का कथन है- सुखार्थी को विद्या कहाँ, विद्यार्थी को सुख कहाँ ? सुख को चाहे तो विद्या छोड़ दे, विद्या को चाहे तो सुख को त्याग दे।


विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार कैसे लाये | कैसे बनते है अच्छा विद्यार्थी | अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए क्या करना होगा | विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार का महत्व -

जो विद्यार्थी पूरी लगन से अध्ययन (पढाई) करता है, स्कूल, घर और समाज में ईमानदारी से व्यवहार करता है, सभी लोगों के साथ अच्छे से रहता है तथा उनकी मदत करता है और साथ ही सह-पाठ्यचर्या वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेता है, उन्हें अच्छा विद्यार्थी कहते हैं। एक अच्छा विद्यार्थी और विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार लाने के लिए सबसे पहले-

  • आत्मनिर्भरता रहे अर्थात एक विद्यार्थी को हमेशा आत्मनिर्भरता रहना चाहिए । आत्मनिर्भरता का अर्थ है- स्वयं पर भरोसा रखना, स्वंय पर निर्भर रहना। एक विद्यार्थी को हमेशा आत्मनिर्भरता रहना चाहिए अर्थात स्वंय पर निर्भर रहना चाहिए।
  • एक अच्छे विद्यार्थी को हमेशा अनुशासन में रहना चाहिए। विद्यार्थी को हमेशा माता-पिता, शिक्षकों, बड़ों की आज्ञाओं को हमेशा पालन करना चाहिए। जीवन को आनंदपूर्वक जीने के लिए विद्या और अनुशासन दोनों आवश्यक हैं। अतः अनुशासन जीवन के लिए परमावश्यक है तथा उसकी प्रथम शिक्षा है।
  • यदि आप एक अच्छे विद्यार्थी बनना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको यह करना होगा कि आप संगठित हो। सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए अपने कमरे, अलमारी, अध्ययन की मेज और आसपास की व्यवस्था को संयोजित कर के रखना होगा।
  • विद्वानों का कहना है कि, दैनिक कार्यों की सूची तैयार करना अच्छी आदत है। प्रतिदिन कोई भी कार्य करने से पहले आप एक सूची तैयार करें जैसे कि, आपको कितने बजे उठना है, कितने बजे यह कार्य शुरु करना है, कितने बजे उसे समाप्त करना है आदि।
  • जैसे की आप जानते है घर हो या स्कूल हो या समाज का कोई कार्य, हर विद्यार्थी को उसे पूर्ण करने के लिए दिया जाता है। तो उसे आप सबसे पहले सही ढंग से पूर्ण करने के लिए कोशिश करें तथा पहले करने में आप बिलकुल भी संकोच न करें। इससे आपको प्रेरणा मिलेगी और कोई भी कार्य करने में आपको उत्साह होगा।
  • हर एक विद्यार्थी के अंदर सहायता का गुण होना आवश्यक है। अच्छे विद्यार्थी में स्वार्थ का गुण नहीं होना चाहिए उसे खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचना चाहिए। एक आदर्श और अच्छा विद्यार्थी हमेशा सकारात्मक सोच के साथ जीता है।
  • एक अच्छा विद्यार्थी को हमेशा कुछ नया सिखने का जज्बा होना चाहिए। अपने दिनचार्य में किये गए कार्यों से कुछ नया सिखने की कोशिश करनी चाहिए उसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयत्न करें। यह अपने संपूर्ण ज्ञान और क्षमता को बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है।
  • ऐसा कहा जाता है आप जिन के साथ सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं आप में उन्हीं के गुण आ जाते हैं इसलिए यदि आप एक आदर्श विद्यार्थी बनना चाहते हैं तो उन लोगों के साथ दोस्ती बनाएं जो सभी लोगों से अच्छा व्यवहार रखता है, जो समय पर पढाई करता है, जिसे जीवन में लक्ष्य हासिल करना है और जो विद्यार्थी अपनों से बड़े सभी लोगों का आदर सम्मान करता हैं।
  • एक अच्छा विद्यार्थी बनने के लिए स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। स्वस्थ रहने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों को शामिल करके उचित आहार लेना जरूरी है। प्रत्येक दिन 8 घंटे नींद पूरा करना आवश्यक है। शारीरिक व्यायाम करने के लिए आधे घंटे से एक घंटे की कसरत करना अनिवार्य है। इससे विद्यार्थी हमेशा स्वस्थ और फुर्तीला रहेगा।
  • विद्यार्थी को आदर्श जीवन जीने के लिए उन्हें हमेशा जिंदादिली के साथ रहना चाहिए। जिन विद्यार्थियों के मन में हमेशा उत्साह, जोश और उमंग का वास होता है, वही विद्यार्थी सही अर्थों में आदर्श विद्यार्थी हैं। यही विद्यार्थी जीवन में शिष्टाचार का महत्व है।

सादा जीवन और उच्च विचार और सामाजिकता -

आदर्श विद्यार्थी को 'सादा जीवन और उच्च विचार' के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए। उसे फैशनेबल बस्त्रों, केशविन्यास और शरीर की सजावट से बचना चाहिए। कारण, ये बातें विद्यार्थी के मन में कलुषित विचार उत्पन्न करते हैं, जिससे विद्यार्थी का न केवल विद्यार्थी-जीवन ही खराब होता है, अपितु आगे आने वाला स्वर्णिम जीवन भी मिट्टी में मिल जाता है । उच्च-विचार रखने से मन में पवित्रता आती है। शरीर स्वस्थ रहता है और स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। यदि मस्तिष्क स्वस्थ है, तो संसार का कोई भी काम आपके लिए कठिन नहीं। एक अच्छा और आदर्श विद्यार्थी को विद्यालय के प्रत्येक कार्यक्रम में भाग लेना चाहिए। इससे उसके जीवन में सामाजिकता आएगी। स्कूल की साप्ताहिक सभाओं से उसे किसी विषय पर तर्कसंगत और श्रेष्ठ विचार प्रकट करना आ जाएगा। 'रेडक्रास ' की शिक्षा से उसके मन में पीड़ित मानव की सेवा करने का भाव पैदा होगा। 'स्काउटिंग ' सामूहिक कार्य करने और देश के प्रति कर्तव्य निभाने का भाव उत्पन्न करेगी।


उपसंहार -

कोई भी विद्यार्थी परिपूर्ण या आदर्श रूप में जन्म नहीं लिया है। आदर्श विद्यार्थी जीवन पाने के लिए मेहनत और लगन करनी पड़ती है तब जा के वह सफल रूप से पूर्ण होता है। एक आदर्श विद्यार्थी का जीवन सुनने में मुश्किल जरूर लग सकता है परन्तु वास्तव में आम लोगों की तुलना में बहुत अधिक सुलझा हुआ होता है। आदर्श विद्यार्थियों को महत्वकांशी माना जाता है। वे अपने जीवन में उच्च लक्ष्य रखते हैं और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। एक आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए दृढ़ संकल्प लेना पड़ता है। वस्तुतः आदर्श विद्यार्थी को विनग्न, जिज्ञासु, सेवा-भाव से युक्त; संयमी, परिश्रमी, अध्यवसायी तथा मिलनसार होना चाहिए। जीवन की सादगी और विचारों की महत्ता में उसका विश्वास होना चाहिए।


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