विद्यार्थी और देश-प्रेम पर निबंध

ADVERTISEMENT

विद्यार्थी जीवन में देश-प्रेम पर निबंध - Essay on Student and patriotism in Hindi - Patriotism in Student Life Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - शरीर और आत्मा का संबंध - देश का परिचय - कोमल भावनाओं का अंकुरण काल - विद्याध्ययन काल और देश प्रेम - देश प्रेम के अनिवार्य बातें - दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली - उपसंहार।

परिचय | विद्यार्थी और देश-प्रेम की प्रस्तावना-

राष्ट्र और देश का वह सम्बन्ध है जो माता और पुत्र का होता है। उसकी मान-मर्यादा की रक्षा करने का सब पर समान उत्तरदायित्व है। विद्यार्थी यह कहकर कि हम तो विद्यार्थी हैं, इससे बच नहीं सकते। आज के विद्यार्थी कल के नागरिक हैं, नेता हैं, शासक हैं। इन्हीं में भावी प्रधानमंत्री, मंत्री अथवा राष्ट्राध्यक्ष छिपे हैं। उन्हें प्रारंभ से ही अपने राष्ट्र और अपने देश के प्रति कर्तव्यों को जानना चाहिए। प्रारंभ से ही उन्हें अपना दृष्टिकोण विस्तृत और कार्य-क्षेत्र विशाल रखना चाहिए। विद्यार्थी का समस्त जीवन केवल अपना ही नहीं है, वह समाज और देश का भी है। विद्यार्थी से देश को बहुत कुछ आशा रहती है और देश के निर्माण में विद्यार्थी को सहयोग देना चाहिए।


शरीर और आत्मा का संबंध-

विद्यार्थी और देश-प्रेम का संबंध ऐसा ही है जैसा कि शरीर और आत्मा का सम्बन्ध। यह उसके लिए मातृभूमि के ऋण से उऋण होने का साधन है । जीवन में स्वार्थ और कामना का हवन करना है। देश-सेवा के माध्यम से अजर-अमर होने का वरदान है। किसी भी शिक्षा-संस्था में विद्या प्राप्त करने वाला विद्यार्थी कहलाता है। सदा कुछ- न-कुछ, किसी-न-किसी विषय में जानने एवं सीखने के लिए प्रयत्नशील व्य्वित भी विद्यार्थी है मातृभूमि से साहचर्यगत प्रेम, देश-प्रेम है। देश के प्रति कर्तव्य पालन करना और तन, मन, धन समर्पण करना देश-प्रेम का परिचायक है। विद्यार्थी राष्ट्र का एक अंग है, अतः देश-प्रेम उसका कर्तव्य है।


देश का परिचय-

देश-प्रेम की पहली शर्त है देश-परिचय। बिना रूप-परिचय के देश-प्रेम कैसा ? देश के प्राणी (मानव, पशु, पक्षी, जन्तु), प्रकृति, धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति का ज्ञान देश का रूप परिचय है। रूप-परिचय देश की हित-चिंतन तथा हित-साधन की प्रवृत्ति को प्रश्नय देगा। हृदय में देश-प्रेम की ललक और भावना उत्पन्न करेगा। इस प्रकार जब देश का रूप विद्यार्थी की आँखों में समा जाएगा तो उसके अंतःकरण में यह भाव उदित होगा कि मेरा देश सदा धनधान्य से पूर्ण हो, उसके मानव सुखी रहें, पशु-पक्षियों व अन्य जन्तुओं का अकारण विनाश न हो तथा देश के वन-बाग सुरक्षित रहें। जलाशय जल से परिपूर्ण हों। पर्यावरण प्रदूषित न हो।


कोमल भावनाओं का अंकुरण काल-

विद्यार्थी मन कोमल भावनाओं के अंकुरण का काल है । उसमें जो बीज पड़ जाएगा, भविष्य में वे भावनाएं परिपक्व होकर वट-वृक्ष बन जाएंगी। विद्यार्थी काल में यदि देश के प्रति प्रेम भावना जागृत हुई तो वह जीवन भर अंतरात्मा में विद्यमान रहेगी। विद्यार्थी काल में उदित देश प्रेम सच्चा राष्ट्र-प्रेम होगा । उसमें न छल होगा, न कपट, न देश के प्रति द्रोह होगा, न दूरभि-संधि। अंतःकरण की एक ही आवाज होगी, “तेरा वैभव अमर रहे माँ। हम दिन चार रहें न रहें।'


विद्याध्ययन काल और देश प्रेम-

ब्रह्मचर्यावस्था अर्थात्‌ विद्याध्ययन-काल में छात्र अविवाहित होता है। परिवार के दायित्व से मुक्त होता है । कमाने की चिन्ता से दूर रहता है । अध्ययन रूपी तप में वह प्रवृत्त रहता है। उसके हृदय में उत्साह और उमंग भरा रहता है। अत: बिना झिझक वह संघर्षों से टक्कर ले सकता है। यही कारण है कि गाँधी जी की ललकार पर सहसरों विद्यार्थी स्वातंत्रय आंदोलन में कूद पड़े थे। सीने पर ब्रिटिश राज्य की गोली खा ली, पर पीठ नहीं दिखाई। जेल की कोठरी से प्यार किया, फाँसी के फंदे को चूमा, पर देश से द्रोह नहीं किया।


देश प्रेम के अनिवार्य बातें-

देश-प्रेम के लिए तीन बातों को जीवन में आचरित करना अनिवार्य मानते हैं।

  • (1) शक्ति बोध अर्थात्‌ अपने देश के सामर्थ्य का ज्ञान। देश को कमियों, खराबियों की सार्वजनिक चर्चा करना तथा दूसरे देशों की तुलना में अपने देश को हीन सिद्ध करना शक्तिबोध को चोट पहुँचाना है। इससे नागरिकों के मनोबल का हास होगा।
  • (2) सौन्दर्य-बोध अर्थात्‌ देश को सुंदर रखने का प्रयत्न करना। घर का कूड़ा सड़क पर फेंकना, केला खाकर छिलका रास्ते में फेंकना, गंदे शब्दों का उच्चारण करना, चुगली लगाना, गली, घर, कार्यालय को गंदा रखना, सार्वजनिक स्थानों, जीनों तथा कोनों में पीक थुकना, उत्सवों, मेलों, रेलों तथा खेलों में ठेलमठेल करना, देश के सौन्दर्य-बोध को आघात पहुँचाना अर्थात नुकसान पहुँचना है।
  • (3) मत का प्रयोग देश के हित में यह जरूरी है कि हम अपने 'वोट' का प्रयोग अपने विवेक से करें, न कि जाति, सम्प्रदाय, दल या लालच वश से करें।

दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली-

विद्यार्थी में देशहित की भावना के अभाव के लिए क्या हमारी शिक्षा-पद्धति दोषी है या विद्यार्थी का आचरण ? वस्तुत: इसके लिए न शिक्षा प्रणाली दोषी है, न विद्यार्थी का आचरण। दोषी है तो गजनीतिज्ञों का व्यवहार। जब वह अखबार में तथाकधित परम देशभक्त राजनीतिज्ञों को भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाता है तो वह नैतिक शिक्षा को अस्पृश्य मानता है। जब राष्ट्र भक्त राजनीतिज्ञ अपने द्वार संचालित शिक्षा प्रणाली को ही पानी पी पीकर कोसते हैं तो वह अध्ययन को समय की बरबादी मानता है। जब गुरुजन अध्यापन में एमाद करते हैं तो छात्र के मन में उनके प्रति विद्रोह उठना स्वाभाविक है।


उपसंहार-

शिक्षा संस्थाओं से सम्बद्ध होने के कारण आज का विद्यार्थी तो हैं पर अध्ययन के प्रति उसमें पूर्ण रुचि और एकाग्रता नहीं, अध्यापक के प्रति श्रद्धा नहीं, शिक्षा-संस्थान के प्रति आदर भाव नहीं। शिक्षा संस्थान अध्ययन, मनन, चिंतन और समर्पण के देवालय हैं। मातृभूमि को पूजा अचंना की ज्योति जागृत करने के पूजा-स्थल हैं। इनके प्रति अश्रद्धा, अवहेलना, उपेक्षा के बाद विद्यार्थी से देश-प्रेम की आशा करना वैसा ही हैं, जैसे रगिस्तान में जल की कामना करना। देश को प्रेम करना सभी विद्यार्थी एवं अन्य लोगों के लिए जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।


ADVERTISEMENT