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रूपरेखा : प्रस्तावना - विद्यार्थी का पूजा स्थल - अभिनेता व अभिनेत्री विद्यार्थियों के आदर्श - चलचित्रों की बुराइयों को ग्रहण करना - कहानीकार और गायक बनने की लालसा - विद्यार्थी का ज्ञानवर्धन - उपसंहार।
परिचय | विद्यार्थी और चलचित्र (सिनेमा) | छात्रों के जीवन में चलचित्र या सिनेमा का महत्व-विद्यार्थी के जीवन में चलचित्र यानी सिनेमा ने पकड़ जमा ली है। किसी विचारक ने सिनेमा को ‘अपराध की माँ’ (सिन = अपराध या पाप + मा) कहा है। किसी और व्यक्ति के लिए यह उक्ति चरितार्थ चाहे हो न हो लेकिन विद्यार्थियों के लिए यह कथन सत्य माना गया है। सिनेमा के अश्लील और हिंसक दृश्य विद्यार्थियों के मानस को विकृत बना देते हैं। एक समय था जब चलचित्र या सिनेमा मनोरंजन के लिए हल्का-फुल्का विषय माना जाता था लेकिन आज तो सिनेमा विद्यार्थियों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। वह अपने पाठ्यक्रम की किताबों पर कम लेकिन सिनेमा की पिक्चरों में ज्यादा ध्यान देने लगा है। फिल्में देख-देखकर वे उन्हीं के अंदाज वाली जीवन शैली को अपनाने लगे हैं, उन्हीं की वाकुशैली या संवाद शैली में बातचीत करने लगते हैं।
चलचित्र आज के विद्यार्थी के लिए प्रेयसी के समान है, जिसको देखे बिना उसको जीवन शून्य-सा लगता है। चलचित्र के संवाद उसके लिए धर्म-ग्रन्थ के श्लोक हैं, जिन्हें कण्ठस्थ करने और उच्चारण करने में ठसके जीवन की कृतार्थता है। चलचित्र के गीत- संगीत उसके हृदय को झंकृत करने के उपकरण हैं।
चलचित्रगृह विद्यार्थी का पूंजा-स्थल है। उसके नायक-नायिकाओं, अभिनेता, अभिनेत्रियों के चरणों पर वह अपने श्रद्धा-सुमन चढ़ाता है। अपने ड्राइंग रूंम में उनके चित्र टाँगता है। अपने पर्स में उनका फोटू रखता है। सिनेमा पत्र-पत्रिकाओं को वह चाव से पढ़ता है। उनके जीवन-चरित्र और 'पिक्चरों' के नाम, संवाद, गीतों को तोते की तरह रटता है। कौन-सा गाना किसने लिखा, गाया, संगीत-बद्ध किया गया और किस नायक, नायिका या अभिनेता, अभिनेत्री पर पिक्चराइज (फिल्म) किया गया है, इसे कंठस्थ करता है।
चलचित्र के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ उसके आदर्श हैं। वह उन्हीं की तरह जीवन जीना पसंद करते है, बाल बनाते है, कपड़े पहनेंगे, हावभाव बनाएंगे, एक्टिंग करेंगे, भाषण देंगे, प्रेम करेंगे, लड़कियों का पीछा करेंगे, चोरी करेंगे, डाका डालेंगे, बैंक लूटेंगे, शराब पिएंगे, नशा करेंगे। विद्यार्थी चलचित्र से प्रभावित होकर प्रेम-विवाह की ओर अग्रसर हुआ उसने प्रेमिका को पत्नी रूप में स्वीकार किया। जीवन-भर साथ रहने-निभाने की कसमें खाईं। इसके लिए माँ-बाप की इच्छा का अनादर किया। घर छोड़ा, परिवार त्यागा। जाति-बन्धन को ठोकर मारी और दहेज के मुख पर कालिख पोती, पर ऐसे कितने विवाह सफल हुए, यह न पूछिए। जिन विद्यार्थियों पर चलचित्र का जादू सिर पर चढ़कर बोला वे चलचित्र जगत के 'हीरो' और ' हीरोइन' बनने के लिए मचल उठे। 'एक्टिंग' सीखा, 'डांसिंग' का अभ्यास किया। चलचित्र नगरी में पहुँचे। अपवादस्वरूप जो सफल हुए, वे कृतार्थ हो गए, शेष बर्बाद हो गए।
विद्यार्थी चलचित्र से बुराई को ग्रहण करता है, उसकी अच्छाई से कतराता है। यही कारण है कि चलचित्र का प्रेमी विद्यार्थी चलचित्र के उपदेशों को ग्रहण नहीं करता, गरीबी के अभिशाप से पीड़ित युवती को सहारा नहीं देता, गुण्डों के चंगुल में फँसी युवती की रक्षा नहीं करता। दूसरी ओर 'ए'सर्टिफिकेट के चलचित्रों को देखने की विद्यार्थी में होड़, लालसा और चाहना, यौवन में रस ढूँढने, नेत्रों को तृप्त करने तथा वासना-विष पीकर नीलकंठ बनने की तमन्ना ही तो है। साढ़े नौ और बारह बजे दिन के शो विद्यार्थियों की इच्छापूर्ति के अमृत-कुंड ही तो हैं।
चलचित्र के गीत-संगीत विद्यार्थी के मन-मस्तिष्क पर इतने छाए हैं कि वह उनकी स्वर और धुन सुनने के लिए तड़पता है। वह रेडियो पर सिनेमा गीत सुनता है । कैसेट लगाकर अपनी तृप्ति करता है । दूरदर्शन पर चलचित्र के गाने चित्रहार, चित्रमाला, चित्रगीत, रंगोली, अन्त्याक्षरी आदि रूपों में अवतरित होते हैं तो छात्र अपनी पढ़ाई-लिखाई, घर के काम-काज, सब कुछ छोड़कर उसी में डूब जाता है। चलचित्र देख विद्यार्थी ने भी कहानी के 'प्लाट' ढूँढे। कहानीकार बनने को इच्छा जाग्रत हुई। चलचित्र के गीतों से विद्यार्थी के कण्ठों से संगीत के स्वर फूटे। गायन-विद्याकी ओर प्रवृत्त हुए। छात्राओं ने नृत्य सीखने में रुचि दर्शाई । फोटोग्राफी की रुचि बलवती बनी। घरों में परिवार-एलबम बनाना इसकी क्रियान्विति ही तो है।
चलचित्रों से विद्यार्थी का ज्ञानवर्धन भी हुआ। अनेक दर्शनीय-स्थल, पवित्र तीर्थ, ऐतिहासिक भवन, सांस्कृतिक-धरोहर तथा कला-कृतियाँ जो जीवन में देख नहीं पाता, वह उन्हें चलचित्रों में देखता है । महापुरुषों, वीरों, शहीदों तथा देशभवितिपूर्ण चित्रों ने उसमें राष्ट्रभक्ति के भाव भरे। धार्मिक चित्रों ने उसमें धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा जागृत की। चलचित्र से पूर्व सामयिक घटना की झाँकियों द्वारा भारत और विदेशों में घटित घटनाओं के प्रत्यक्ष दर्शन किए।
चलचित्रों ने विद्यार्थी-जीवन को दिशा भी दी । सोचने-समझने की शक्ति भी दी। बातचीत की शैली समझाई। गीत-संगीत की ध्वनि गुनगुनाने की प्रवृत्ति दी। समाज में व्यवहार करना सिखाया। काम निकालने का गुरु-मंत्र सिखाया । युवक-युवतियों को निर्भय होकर संपर्क और व्यवहार करने की शिक्षा दी। व्यक्तित्व की महत्ता के उपाय सुझाए। रोजी-रोटी के अनेक अवसर प्रस्तुत किए। अच्छे और बुरे प्रकार के चलचित्रों पर विद्यार्थी का उत्थान और पतन निर्भर है।
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