छात्र अराजकता पर निबंध

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विद्यार्थी अराजकता पर हिंदी निबंध - अराजकता का अर्थ - Essay on Student Anarchy - Student Anarchy Essay in Hindi

रूपरेखा : प्रस्तावना - आज का विद्यार्थी - दूषित राजनीति की भूमिका - शिक्षक का कर्त्तव्य विमुख होना - दूरदर्शन का योगदान - विद्यार्थी का अहं दोषी - छात्र-अराजकता को रोकना - उपसंहार।

परिचय | छात्र अराजकता की प्रस्तावना | अराजकता का अर्थ-

छात्रों द्वारा तंत्र, विधि, व्यवस्था अथवा शासन की उपेक्षा करना 'छात्र अराजकता' है। रोषपूर्व विध्वंसात्मक कार्यों को अपनाना अराजकता है। हिंसा पर आभारित प्रवृत्ति अराजकता है। राजकीय अथवा विद्यालय अनुशासन को नकारना अशणफंता है। छात्रों द्वारा गुरुजनों की अवहेलना करना, विद्यालय-भवन और विद्यालय-कार्यालय, पुस्तकालय को क्षति पहुँचाना, जलसे करना, जलूस निकालना, पुतले जलाना, अध्यापकों तथा व्यवस्थापकों की पिटाई करना, मकान-दूकान लूटना, बसों का अपहरण करना, उन्हें पेंचर अथवा भस्म कर डालना, छात्र अराजकता के परिचायक हैं।


आज का विद्यार्थी-

आज का विद्यार्थी उपाधि प्राप्ति का सरलतम मार्ग ढूँढ़ता है। बिना पढ़े, बिना परिश्रम के वह उत्तीर्ण होना चाहता है। कक्षा के बंधन में वह बँधना नहीं चाहता, नकल करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता है। अतः परीक्षा भवन में मेज पर छुरी-पिस्तौल रखकर नकल करता है। नकल करने से रोकने वाले निरीक्षक पर लड़कियों को छेड़ने का झूठा आरोप लगाता है। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा कर निरीक्षक को सबक सिखाने की चेष्टा करता है।

आज का छात्र अपने लिए अनेक सुविधाएँ चाहता है। वह शुल्क में कटौती चाहता है। बस-भाड़े में रियायत चाहता है । बस के इच्छानुसार स्टॉपेज चाहता है । कक्षा में उपस्थित होने और पीरियड का बंधन स्वीकार करना नहीं चाहता। जब उसको ये सुविधाएँ नहीं मिलीं तो बह वाहनों को क्रोध का निशाना बनाता है। पुलिस से टक्कर लेता है।


दूषित राजनीति की भूमिका-

विद्यार्थी की इस मन:स्थिति के निर्माण में भारत की दूषित राजनीति मुख्य रूप से जिम्मेदार है। आज का राजनीतिज्ञ विद्या के मर्म को जानता नहीं, लेकिन विद्यालयों की कार्यकारिणी तथा संचालन समितियों का अध्यक्ष या सदस्य बन जाता है। वह विद्यालय के प्रबंध में अनुचित हस्तक्षेप करता है, रोड़ा अटकाता है। कर्तव्यनिष्ठ प्रिंसीपल जब राजनीतिज्ञों की अनुचित बात नहीं मानता, उनके कहने से छात्र-विशेष को पास नहीं करता, नकल करते पकड़ा जाने पर छात्र को माफ नहीं करता, अर्हता न होने पर विषय-विशेष में प्रवेश नहीं देता, तो राजनीतिज्ञ विद्यालय को व्यवस्था को तहस-नहस करने का षड्यंत्र करता है। अध्यापकों में फूट डालता है, विद्यार्थियों को अराजकता के लिए प्रेरित करता है।


शिक्षक का कर्त्तव्य विमुख होना-

अराजकता का एक प्रमुख कारण है आज का अनुत्तरदायी शिक्षक। अहर्निश ट्यूशनों में व्यस्त अध्यापक स्कूल में बच्चों को ' क्या और क्यों ' पढ़ाएगा ? यदि वह बच्चों को विषय का ठीक-ठीक अध्यापन करा दे तो ट्यूशन कौन रखेगा ? दूसरे, अहर्निश ट्यूशनों से चढ़ी थकान से क्लांत शरोर बच्चों को क्या पढ़ाएगा ? वह तो विद्यालय की कुर्सी पर थकान उतारने आता है। शिक्षक की ' क्या और कयों' मनोदशा पर जाग्रत विद्यार्थियों में विक्षोभ उत्पन्न नहीं होगा तो क्या जे वरदान देंगे ? यह विक्षोभ भी छात्र अराजकता का एक कारण है।

विद्यार्थी अपने जगर का वातावरण दूरदर्शन पर खुली नजर से देखता है, देश के वातावरण के किस्से अखबारों में पढ़ता है। अनुशासन के नाम पर नगर-पालिकाओं, विधान-सभाओं तथा संसद्‌ में गाली-गलौच, लड़ाई-झगड़ा, मार-पिटाई के आदर्श-युक्त, गर्व-योग्य समाचार पढ़ता है, तो नैतिकता उसे क्षितिज-समान दूर लगती है। 'महाजनो येन गत: स पंथा:' का आचरण करता हुआ वह विद्यालय में विधानसभा तथा संसद का या कोलाहलपूर्ण दृश्य उपस्थित करता है।


दूरदर्शन का योगदान-

विद्यार्थी-अराजकता के लिए आज का दूरदर्शन जगत्‌ भी कम दोषी नहीं है। उसने विद्यार्थियों के जीवन को बर्बाद करने का ठेका लिया हुआ है। दूरदर्शन में क्लासरूम के प्रसंग में कभी अध्यापक का मजाक उड़ाते छात्र-छात्राओं को दिखाएंगे, कभी लड़का- लड़की को छेड़ता दिखाएंगे, कभी अध्यापिका से छात्र का प्रेम दिखाएंगे। इतना ही नहीं जेब कतरने, चाकू चलाने, डाका डालने, बसें फूकनें तथा कानून की अवज्ञा करके अराजकता के विविध और सफल तरीके दूरदर्शन प्रस्तुत करता है। युवा-छात्र बुराई को सहज पकड़ता है, अच्छाई सीखने में समय लगता है । फलत: विद्यार्थी दूरदर्शन से सीखकर अराजकता का पल्‍ला पकड़ता है।


विद्यार्थी का अहं दोषी-

विद्यार्थी-अराजकता में विद्यार्थी का अहं भी दोषी है। वह झूठे अहं में अध्यापक के हित के बचनों को बुरा समझता है। डाँट-फटकार को अपमान समझता है। ऐसी स्थिति में गुरु-भक्ति, विद्यालय के प्रति श्रद्धा, अध्ययन के प्रति रुचि कहाँ उत्पन्न होगी ? वह अहं की तुष्टि के लिए साथियों को भड़काएगा, अध्यापकों को मजा चखाएगा, प्रिंसीपलों (प्राचायों) को प्रिंसीपल (सिद्धांत) सिखाएगा।


छात्र-अराजकता को रोकना-

छात्र-अराजकता को रोकने के लिए आवश्यक है कि विद्यालयों को राजनीतिज्ञों से दूर रखा जाय, विद्यालयों पर उनकी छाया भी न पड़ने दी जाए। दूसरे, छात्रों में अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन की जाए। तीसरे, शिक्षकों में योग्यता तथा अध्यापन के प्रति समर्पण के गुण उत्पन्न किए जाएं। चौथे, विद्यालयों में अनुशासन का सख्ती से पालन कराया जाए, जिसमें पक्षपात की तनिक भी गुँजाइश न हो।


उपसंहार-

शिक्षक का पक्षपातपूर्ण व्यवहार भी छात्रों में अगजकता की चिंगारी जगाता है । ट्यूशन के छात्रों के प्रति दैनन्दिन कक्षाओं में सहानुभूति और शेष छात्रों के प्रति क्रोध; परीक्षाओं में उत्तर-पुस्तिकाओं में पक्षपातपूर्ण अंक-प्रदान, छात्रों में अध्यापक के सम्मान को कम करता है। उनके प्रति घृणा, क्रोध, विक्षोभ उत्पन्त करता है। छात्र-अराजकता समाप्त होने पर ही विद्यालयों में पढ़ाई का वातावरण बनेगा। छात्र विद्या तथा गुरुजनों के प्रति श्रद्धावनत होंगे। उनके हृदय में माँ शारदा प्रकाश उत्पन्न करेगी। अज्ञान रूपी अंधकार को उनके जीवन से दूर हटाएगी।


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