बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

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बेरोजगारी की समस्याओं पर हिंदी निबंध - बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध - बेरोजगारी की समस्या कारण और निवारण

रूपरेखा : प्रस्तावना - राष्ट्र के मस्तक पर कलंक - बेरोजगारी के प्रकार - दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली - गलत औद्योगिक योजना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा न देना - बेरोजगारी के अन्य कारण - उपसंहार।

परिचय | बेरोजगारी की समस्या की प्रस्तावना -

जहाँ रोजगार नहीं होता तथा जिन लोगों के पास रोजगार नहीं होता उन्हें बेरोजगार कहते है। बेरोजगारी स्वंय तथा देश की उन्नति के रास्ते में एक बड़ी समस्या है। काम करने की इच्छा करने वाले को काम न मिलना को भी बेरोजगारी कहते है। आज भारत में बेरोजगारी की समस्या प्रमुख है। बेरोजगारी के कारण बहुत से परिवार आर्थिक दशा से खोखले हो चुके हैं। हमारे देश में आर्थिक योजनाएँ तब तक सफल नहीं हो पाएंगी जब तक बेरोजगारी की समस्या खत्म नहीं हो जाती। आज हम स्वतंत्र तो हैं लेकिन अभी तक आर्थिक दृष्टि से सक्षम नहीं हुए हैं।


राष्ट्र के मस्तक पर कलंक -

बेरोजगारी राष्ट्र के भाल पर कलंक का टीका है। देश की गिरती आर्थिक स्थिति का सूचक है । सामाजिक अवनति का प्रतीक है । उद्योग-धन्धों की राष्ट्र-व्यापी कमी का द्योतक है। जब काम की कमी और काम करने वालों की अधिकता हो, तब बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है। जो अपने श्रम को बाजार में बेच पाने में असमर्थ हैं या व्यवसायहीन हैं, वे बेरोजगार हैं।


बेरोजगारी के प्रकार -

बेरोजगारी भी चार प्रकार की हैं।

  1. सम्पूर्ण बेकारी : जहाँ श्रम का कुछ भी महत्त्व नहीं आँका जाता।
  2. अर्ध बेकारी अर्थात्‌ 'पार्टटाइम जॉब' : जहाँ 2-4 घंटों के लिए श्रम को खरीदा जाता है।
  3. मौसमी बेकारी : जैसे फसल कटते समय मजदूरों को रख लिया जाता है । कोई भवन निर्माण के समय मजदूर रख लिए जाते हैं, बाद में वे बेरोजगार हो जाते हैं।
  4. स्टेटस बेकारी : जहाँ योग्यता तथा क्षमता से गिर कर काम न करने के कारण बेकारी है।

स्तर की दृष्टि से बेरोजगारी के चार प्रकार हैं

  1. शिक्षित जनों की बेकारी।
  2. शिल्पीय दक्षता प्राप्त जन की बेकारी ।
  3. अकुंशल जनों की बेकारी।
  4. कृपक-जन की बेकारी।

बेकारी का सर्वप्रथम कारण देश की बढ़ती जनसंख्या है। देश में प्रतिवर्ष एक करोड़ शिशु जन्म लेते हैं । जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ रही है, उस अनुपात में रोजगार के साधन नहीं बढ़ रहे। फलत: बेकारी प्रतिपल-प्रतिक्षण बढ़ती जा रही है।


दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली -

बेकारी का दूसरा बड़ा कारण है "दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली"। हाईस्कूल तक की थोड़ी- सी शिक्षा पाकर हर नव युवक नौकरी की ओर भागता है, बाबूगिरी में ही जीवन का स्वर्ग देखता है। किसान का बेटा किसानी से मुँह मोड़ता है । चमार का बेटा चमारी से घृणा करता है तथा कर्मकाण्डी पण्डित का बेटा कर्मकाण्ड को पाखण्ड मानता है। श्रम से पलायन को प्रवृत्ति के कारण बेकारी दूध के उबाल की भाँति उफन रही है।

गलत औद्योगिक योजना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा न देना बेकारी या बेरोजगारी का तीसरा कारण है, देश की गलत औद्योगिक योजना। देश ने पहली पंचवर्षीय योजना से ही विशाल, विशालतर और विशालतम उद्योगों को बढ़ावा दिया, किन्तु छोटे उद्योग सिसकियाँ लेते रहे। 'बाटा' ने चमारों का धंधा छीना, “टाटा ने लुहारों को चौपट किया, बिड़ला-भरतराम ने बुनकरों को रोजी पर लात मारी और तेल-मिलों ने तेलियों का रोजगार ठप्प किया, साबुन की बड़ी कम्पनियों ने लघु-उद्योगों का गला-घोंटा। विदेशी कम्पनियाँ तो भारतीय औद्योगिक उत्पादनों की कन्न खोदने पर उतारू हैं।

बेकारी या बेरोजगारी का चौथा कारण है, सरकार की ओर से घरेलू उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन का अभाव। बड़ी मिल लगाने के लिए बैंक करोड़ों रुपये कर्ज दे देते हैं, किन्तु लघु उद्योगों के लिए वे तड़पा-तड़पाकर कर्ज देते हैं । परिणामत: लघु उद्योग-धन्धे विकसित नहीं हो पा रहे । दूसरे, उनकी बिक्री का बाजार नहीं, उनके पास खपत का सुनियोजित माध्यम नहीं ।

बेकारी या बेरोजगारी का पाँचवाँ कारण है, मशीनीकरण एवं यन्त्रों के अभिनवीकरण को प्रोत्साहन जैसे कम्प्यूटर का प्रयोग देशहित में है, किन्तु इससे बेरोजगारों की संख्या में तो वृद्धि हुई है।


बेरोजगारी के अन्य कारण -

बेकारी के अन्य कारण हैं

  • कृषि पर बढ़ता दबाव।
  • परम्परागत हस्तशिल्प उद्योगों का हास।
  • दोषपूर्ण नियोजन।
  • व्यवसायपरक शिक्षा की उपेक्षा।
  • श्रमिकों में गतिशीलता का अभाव।
  • स्वरोजगार की इच्छा का अभाव।

देश की बेकारी दूर करने के लिए दूरदर्शिता से काम लेना होगा। उसके लिए सर्वप्रथम परिवार-नियोजन पर बल देना होगा। जो पालन-पोषण नहीं कर सकता, उससे प्रजनन का अधिकार छीनना होगा। आपत काल की भाँति कठोर हृदय होकर इस कार्यक्रम को सफल बनाना होगा। धर्म-विशेष के आधार पर प्रजनन की छूट को प्रतिबंधित करना होगा।

शिक्षा का व्यवसायीकरण करना होगा। ताकि 'स्वरोजगार' के प्रति युवा वर्ग में दिलचस्पी पैदा हो । नई तकनीक द्वारा विकास के साथ नए कौशल (स्किल) तेजी से बढ़ेंगे। बाबूगिरी के प्रति मोह भंग होगा। प्रत्येक तहसील में लघु उद्योग-धन्धे खोलने होंगे। लघु-उद्योगों के कुछ उत्पादन निश्चित करने होंगे, ताकि वे बड़े उद्योगों की स्पर्धा में हीन न हों, पिछड़ न जायें।

शिक्षित युवकों को शारीरिक श्रम का महत्व समझना होगा। श्रम के प्रति उनके मन में रुचि उत्पन्न करनी होगी, ताकि वे घरेलू उद्योग-धन्धों को अपनाएँ। उद्योग राष्ट्र की प्रगति के प्रतीक होते हैं। आज राष्ट्र का उत्पादन गिर रहा है। इसे बढ़ाना होगा, नए-नए उद्योग स्थापित करने होंगे। नए उद्योगों से राष्ट्र को आवश्यक चीजों की प्राप्ति होगी और रोजगार के साधन बढ़ेंगे।


उपसंहार -

भारत की अस्सी प्रतिशत जनता गाँवों में जीवनयापन करती है और कृषि पर निर्भर रहती है। कृषकों का बहुत-सा समय व्यर्थ जाता है । इसलिए जरूरत है रोजगारपरक ग्रामीण विकास नियोजन तथा कृषि पर आधारित उद्योग-धंधों के विकास की। साथ ही गाँवों में बिजली देकर गाँवों के जीवन में क्रांति लाई जा सकती है। प्राकृतिक साधनों का पूर्ण विदोहन, विनियोग में वृद्धि, रोजगार की राष्ट्रीय नीति निर्धारण तथा औद्योगिक विकास सेवाओं को तीक्रता द्वारा बेरोजगारी कम की जा सकती है।


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