काला धन की समस्या पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक - काला धन क्या है - काला धन का अर्थ - भ्रष्ट नेताओं, अपराधियों और व्यवसायियों द्वारा अवैध रूप से कमाया गया धन - अवैधानिक मानसिकता से काला धन - उपसंहार।

परिचय | भारत में काला धन की प्रस्तावना

काला धन, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लेक मनी (Black Money)’ कहा जाता है, ऐसा धन होता है, जो व्यावहारिक रूप से आयकर विभाग की नजर से छुपा हुआ होता है । इस धन का लेखा-जोखा सरकारी पन्नों में कहीं नहीं होता । यह बड़े-बड़े व्यापारियों, राजनेताओं, अधिकारियों, माफियाओं एवं हवाला कारोबारियों का अघोषित धन होता है । काले धन का मुद्दा भारत में प्रचलित है और सरकार ने हाल ही में इसके निपटान के लिए कठोर कदम उठाए हैं। अवैध तरीके से अर्जित धन काले धन के रूप में जाना जाता है। काले धन को पैदा करने के कई स्रोत हैं और लोग समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के बावजूद दशकों से यह काम अभ्यास में ला रहे हैं।


राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक

राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक है, काला धन। अर्थव्यवस्था के राजपथ पर असीमित बढ़ती अन्तहीन विकृति है, काला धन। अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त बनाता है, काला धन। राष्ट्र की सम्पूर्ण संस्कृति और सभ्यता की कर्मनाशा है, काला धन।

राजनीति में काला धन उज्ज्वल वस्त्रधारी राजनेता की ताकत की पहचान है। व्यावसायिक क्षेत्र में काला धन व्यापारी को समृद्धि का द्योतक है । नौकरशाही और अपराध जगत में काला धन उनकी सम्पन्नता और शक्ति का प्रतीक है।


काला धन क्या है | काला धन का अर्थ

काला धन क्या है? काली आय से सृजित धन, काला धन है। हवाला, तस्करी, वेश्यावृति, रिश्वत जैसे अवैध धंधों से प्राप्त धन, काला धन है। आय-कर, बिक्री-कर और उत्पादन-कर से छिपा कर रखा गया धन, काला धन है।

सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में लगभग तीन करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास पर्याप्त काला धन है। इनमें लगभग एक करोड़ लोग ऐसे हैं जो काले धन में आकंठ डूबे हुए हैं अर्थात भारत की एक प्रतिशत आबादी के पास ही जमा है, अधिकांश काला धन।

उद्योगपतियों और राजनीतिकों के संबंध जन गहरे होने लगे तो:उद्योग जगत में 'काला धन' बनाने की प्रक्रिया जोर पकड़ने लगी। उद्योग जगत विभिन्न राजनीतिज्ञों को आर्थिक सहायता देने लगा और बदले में तमाम वैध-अवैध तरीके से कमाई करने को अपना अधिकार समझने लगा।


भ्रष्ट नेताओं, अपराधियों और व्यवसायियों द्वारा अवैध रूप से कमाया गया धन

काले धन का अर्थशास्त्र ऐसा है कि वैध और अवैध, दोनों ही धंधों के जरिये काला धन पैदा होता है। जहाँ शेयर बाजार तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र वैध की श्रेणी में आते हैं वहीं हवाला, तस्करी, वेश्यावृत्ति जैसे अनेक धंधे अवैध माने गए हैं। अवैध धंधों के जरिये पैदा होने वाला काला धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

पूरे विश्व में करीब 35 लाख करोड़ रुपये की नशीली दवाओं का व्यापार होता है जो भारत के घरेलू उत्पाद का लगभग दोगुना है । एक अनुमान के मुताबिक नशीली दवाओं की तस्करी के जरिये 1990 में हमारे देश के तस्करों ने करीब 20 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया।

भ्रष्ट राजनेताओं, व्यवसायियों, नौकरशाहों और अपराधियों की चौकड़ी ही काले धन का मूल स्रोत है। अनुमान है कि इस चौकड़ी के बेताज बादशाहों ने हवाला के जरिये 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा धनराशि विदेशों में जमा कर रखी है । इस राशि पर उन्हें प्रति वर्ष कम से कम 6 अरब डॉलर ब्याज मिलता है।


अवैधानिक मानसिकता से काला धन

सरकार की नियत यदि देश के काले धन को काबू करना हो तो वह छह मास में देश में ऐसा आतंकित वातावरण निर्माण कर सकती है कि काले धन के चारों खनोत बंद हो जाएँगे। जैसे- मकान की रजिस्ट्री लगभग 75 प्रतिशत कम मूल्य की होती है। रजिस्ट्री उपरांत ऐसे मकानों का रजिस्ट्री मूल्य चुकाकर सरकार जब्त कर ले तो करोड़ों रुपए के काले धन का स्रोत सूख जाएगा। आयकर तथा बिक्रीकर विभाग यदि व्यापारियों और उद्योगपतियों से इमानदारी से आयकर और बिक्रौकर वसूल करें तो काले धन के दानव की कमर टूट सकती है। नौकरशाही की रिश्वत-प्रवृति पर लौह-प्रहार किया जाए तो काले धन की कर्मनाशा उज्ज्वल धन की गंगा में बदल सकती है।


उपसंहार

भारत आध्यात्मिक देश है। पहले यहाँ भगवान के भय से जनता कानून का पालन करती थी और नैतिकता को गले लगाती थी। गलत काम का लेखा 'ऊपर' देना होगा, की मानसिकता ने अपराध जगत से भारतवासियों को बचा रखा था। धन ने जब नैतिकता की आँखों को विमोहित किया तो आदमी के मन से 'ऊपर' का भय निकल गया। संस्कृति पर भौतिक सभ्यता के आक्रमण ने सांस्कृतिक मूल्यों का अपहरण कर लिया। फलत: भारत जैसे आध्यात्मिक देश में ही काला धन फलने-फूलने लगा। ज्यों-ज्यों भगवान का भय कम होता जाएगा, त्यों-त्यों काला धन भारत में बलवतो होगा।


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