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रूपरेखा : प्रस्तावना - करोड़पतियों की संख्या में वद्ध - निजी कंपनियों में अधिक वेतन - स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद अमीर-गरीब में अंतर - अमीरी और गरीबी के दायरे में वृद्धि - उपसंहार।
परिचय | अमीर भारत-गरीब भारत की प्रस्तावना -भारत के अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई के आंकडे हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत में धन दौलत तेज़ी से बढ़ रही है, भारत में अमीरों और मध्यम वर्ग की संख्या भी बढ़ती जा रही है लेकिन इस विकास में हर कोई हिस्सेदार नहीं है और भारत में अब भी गरीबी एक बड़ी समस्या है" । इसीलिए आज भारत दो हिस्से में बट गया है, "अमीर भारत" और "गरीब भारत" ।
हमारे देश भारत में करोड़पतियों की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रहो है और आँकड़े बताते हैं कि उसी स्तर पर देश में गरीबी की भी वृद्धि हो रही है। देश में वर्ष 2003 में एक सर्वेक्षण के अनुसार करोड़पतियों की संख्या 61 हज़ार थी, वह सन 2004 में बढ़ कर 70 हजार हो गयी। वहीं सन 2020 में दस लाख करोड़पतियों के हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है, इसके साथ ही यह भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2025 तक करोड़पतियों की संख्या भारत में तीस लाख हो जाने का अनुमान है।
देश में बढ़ रहे करोड़पतियों की संख्या में जहाँ एक ओर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी वहीं भारत की संसद में मज़दूरों की दशा पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है । भारत के ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में एक कमीज सिलाई के आज भी मज़दूर को मात्र दो रुपये ही मिलते हैं और एक हज़ार बीड़ी बनाने की मज़दूरी केवल बीस रुपये रोज़ है। बारह घंटे काम करने वाले मज़दूर की एक दिहाड़ी केवल पचास रुपये है। इन्हीं आँकड़ों के आधार पर देश में आम और अमीर आदमी की आय के बढ़ते फासलों का अनुमान कई स्तरों पर लगाया जा सकता है।
भारत में एक मान्यता प्रचलित रही कि देश के राष्ट्रपति से अधिक किसी का वेतन नहीं होना चाहिए। आज के संदर्भ में यदि देखा जाये तो अब भारत में निजी कम्पनियाँ अपने मुख्य अधिकारी या प्रबन्धक पर एक करोड़ प्रतिमाह तक खर्च करती हैं । इससे सिद्ध होता है कि एक निजी कंपनी का अधिकारी देश के राष्ट्रपति से अधिक वेतन पाता है तो कंपनी की आय अपनी घोषित आय से नहीं अधिक होगी।
इस प्रकार यदि देखा जाये तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में आय की बढ़ रही इस प्रकरण के पैमाने बदल गये हैं और देश में आय की गति तीव्र हो गयी है और इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अमीर और गरीब का अंतर देश में 90 गुना हो गया है, क्योंकि निजी कंपनी जहाँ अपने कार्य अधिकारी या प्रबन्ध को एक दिन का औसत वेतन साढ़े तीन हज़ार देती है और वहीं भारत देश-का एक मज़दूर सारा दिन अपना शरीर तोड़ कर मात्र पचास रुपया ही वेतन पाता है। इस प्रकार आय के इस अंतर को कई प्रकार से देखा जा सकता है। बढ़ती आय और घटती आय को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि अमीर भारत बनाम गरीब भारत।
भारत में अमीरी के बढ़ते स्तर को देखकर लगता है कि भारत उन्नतशील हो रहा है और जब गाँव-देहात में ध्यान दिया जाता है तो भारत एक बहुत ही पिछड़ा देश मालूम होता है। धनवानों द्वारा धन के बल पर मौज और किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या देश के नाम पर एक कहावत है। एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि अमीरों की दुनिया के भारत में नाम और सूरत में भी अंतर आया है। भारत में पहले टाटा समूह को सर्वाधिक अमीरों में मिल जाता था और आज हमारे देश में सबसे अधिक धनादय व्यक्तियों में प्रेमजी, दिलीप सिंधवी, रिलायन्स, भारती टेलीवेयर्स, एच.पी.एल., नारायण मूर्ति, सुभाष गोयल, अडानी आदि अनेक नाम गिनाये जा सकते हैं।
भारत में जहाँ एक ओर अमीरी की शोभा विस्तार पा रही है, वहीं दूसरी ओर गरीबी का दायरा भी उसी गति से बढ़ रहा है । देश के किसानों की दशा दयनीय हो रही है, उनके सरों पर क़र्ज़ें का बोझ बढ़ रहा है, यह सब देखकर तो यहीं अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या अर्थ तंत्र मानवीय त्रासदियों से स्वतंत्र है ? सरकार ने इस प्रकार देश में बढ़ रही अमीरी और गरीबी के अंतर पर अब तक कोई स्वतंत्र नीति की घोषणा नहीं की। भारत में अमीर व्यक्ति अमीर होता जा रहा है और गरीब को गरीब बनाने को सरकारी योजनायें रोज ही देखने को मिलती हैं जिनमें कभी प्रदूषण के नाम पर फैक्ट्रियों का हटाया जाना, कभी दूकानों, रेहड़ी,-पटरी वालों को प्रताड़ित करना, कभी रिक्शों के चलने पर रोक लगाना आदि गरीबी को बढ़ाने में सहायक दिखाई देते हैं। इसीलिए देश में आर्थिक नीतियों के भीषण दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, इसी बीच महानगर दिल्ली में काम की तलाश में आने वाले गरीब मज़दूरों को लगातार आर्थिक असुरक्षा कर सामना करना पड़ रहा है।
भारत को समृद्धिशील बनाने और अमीरी-गरीबी के अंतर को कम करने का एक ही समाधान है कि देश के ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में अधिक-से-अधिक कारखाने इत्यादि खोले जायें ताकि महानगरों की और दौड़ने वाले गरीब-मज़दूरों को उनके घरों के पास ही रोजगार प्राप्त हो सके। इसके साथ ही महानगरों के ऊँचे भवनों के पास उगने वाली झुग्गियों से मुक्ति पाई जा सके । इसमें मज़दूरों को दी जाने वाली मज़दूरी को भी राशि बढ़ाये जाने से गरीबी से कुछ मुक्ति अवश्य होगी और देश में बढ़ रहा अमीरी-गरीबी का अंतर भी कुछ कम हो पायेगा।
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