ADVERTISEMENT
रूपरेखा : प्रस्तावना - भ्रष्टाचार का अर्थ - काम निकालने की रामबाण औषध - दूषित-निन्दनीय व्यवहार रोग के लक्षण - मानसिक विकार - भ्रष्टाचार के रोगियों की विशेषता - उपसंहार।
परिचय | भारत में भ्रष्टाचार की बीमारी की प्रस्तावना -भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो देश, संप्रदाय, समाज और परिवार के कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है। इसमें केवल छोटी सी इच्छा और अनुचित लाभ के लिए सामान्य जन के संसाधनों की बरबादी की जाती है। किसी के द्वारा अपनी ताकत और पद का गलत इस्तेमाल करना है, फिर चाहे वो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था क्यों न हो। इसका प्रभाव व्यक्ति के विकास के साथ ही राष्ट्र पर भी पड़ रहा है और यही समाज और समुदायों के बीच असमानता का बड़ा कारण बन चूका है। साथ ही ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से राष्ट्र के प्रगति और विकास में बाधा बनते जा रहा है।
दूषित और निन्दनीय, पतित और अवैध आचरण भ्रष्टाचार है। अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा विहित कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक यथोचित रूप से पालन न करके, अवैध ढंग से, विलम्ब से तथा कार्यार्थी से रिश्वत लेकर अनुचित रूप में कार्य करना भी भ्रष्टाचार है।
'भ्रष्टचार' वर्तमान युग में भ्रष्टाचारियों के लिए सफलता का सर्वश्रेष्ठ साधन है । काम निकालने का रामबाण औषध है। ऋद्धि-सिद्धि का प्रदाता है, भाग्योदय का द्वार है। ऐश्वर्यमय जीवन जीने का साधन है। दु:साहस और अविवेक इसके जनक हैं। आज भारत में यह एक असाध्य रोग बन चुका है।
स्वार्थ और अबाध भौतिक सुखोपभोग की लालसा का आधिक्य इस रोग के कारण हैं। दूषित और निन्दनीय आचार व्यवहार इस रोग के लक्षण हैं। करप्शन, रिश्वत, घूस, दस्तूरी इस रोग के पर्याय हैं। मन की शुद्धता, आचार की पवित्रता तथा संतोष इस रोग की औषध हैं। भ्रष्टाचार का रोग बीमारी होते हुए भी बहुत मीठा है, प्यारा है। कुछ अपवादों को छोड़कर प्रत्येक नर-नारी, गृहस्थी, राजनीतिक-सामाजिक नेता इसका प्यार पाने का आकांक्षी है। इसके प्यार में आकंठ डूब जाने को सबका हृदय मचलता है।
भ्रष्टाचार एक मानसिक विकार है । चित्त-वृत्ति को विकृत करने वाली की एक प्रवृति है। मन का विलास है। आकार, संकेत, गति, चेष्टा, बचन, नेत्र तथा मुख के विकारों से अन्तर्मन का ग्रहण हो जाता है। अत: इस रोग की चपेट में मानव शीघ्र आ जाता है। वह 'क्यू (पंक्ति) में लग कर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहीं करता। द्वारपाल को 'टिप' देकर सबसे पहले अंदर घुस जाता है। विद्यार्थी पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं देता। वह ट्यूशन रखकर अधिक अंक पा जाता है। सरकारी अधिकारियों को उपहार तथा बड़े-बड़े ठेकों में सुरा-सुन्दरी का प्रयोग भ्रष्टाचार के ही तो नमूने हैं। इस प्रकार भ्रष्टाचारी दूसरों को भी अपने समान नंगा करने के लिए अपनी चित्त-वृत्ति को विकृत करता है।
दूसरों को भ्रष्ट कर उनके मन में इस रोग के कौराणु घुसा देता है। रक्तचाप और मधुमेह के बारे में यह प्रसिद्ध है कि ये रोग मृत्यु के साथ जाते हैं । इसी प्रकार भ्रष्ट आचरण भी बहु-विधि दण्ड पाने एवं उत्पीड़न, दमन सहने पर भी स्वच्छ नहीं होता। ललित नारायण मिश्र तथा नागरवाला कांड का अंत उनके देह-विसर्जन पर ही हुआ। भ्रष्ट आचरण में सजा पाए सेठ डालमिया कारावास भोगने के बाद भी और अधिक विस्तार से अपने व्यापार-साम्राज्य को बढ़ाने में संलग्न रहे।
भ्रष्टाचार-रोग के रोगियों कौ एक विशेषता है- मनसा, वाचा, कर्मणा वे एक हैं। विविध तन होते हुए भी मन से एक हैं | उनके दु:ख-सुख एक हैं। जैसे काँटा पैर में चुभता है, मन उसके दुःख दूर करने के लिए तुरंत चिंतित होता है और हाथ अपना सहयोग प्रदान करते हैं, उसी प्रकार रिश्वतखोर पकड़ा जाए, तो ऊपर से नीचे तक की 'मशीनरी' उसको छुड़ाने के लिए तन, मन, धन से जुट जाएगी।
आज की स्थिति तो और भी विषम है। जहाँ घोटाले और काण्ड राजनीति-सफलता के अलंकरण हैं। पकड़ में न आना राजनीतिक कौशल तथा सत्ता पर राजनीतिक बदला लेने का आरोप लगाना, घोटाला करने वालों के उलट प्रहार हैं। श्रीमान लालू प्रसाद यादव तथा श्रीमती राबड़ी देवी के पक्ष में संसद् में जो हंगामे होते रहते हैं, वे राजनीतिक बचाव ही तो हैं।
श्री अटलबिहारी वाजपेयी के शब्दों में- 'देश में जब कोई संक्रामक रोग फैलता है तो अच्छे-खासे स्वस्थ लोग भी उसकी चपेट में आ जाते हैं। भ्रष्टाचार एक संक्रामक रोग है। यह सभी दलों को लग चुका है। मेरा दल भी इसका अपवाद नहीं । व्यवस्थागत दोषों से कोई भी दल अछूता नहीं है।
व्यवस्थागत बदलाव के बिना भ्रष्टाचार के रोग पर चोट कर पाना असंभव है। कोई भी व्यवस्थागत बदलाव तात्कालिक दौर की राजनीतिक चेतना से हटकर नहीं लाया जा सकता। सवाल यह है कि इस वास्तविक और प्रभावी बदलाव का अभिकर्ता कौन होगा ? कोई समग्रतावादी, उदार-संवेदनशील तथा औद्योगिक-वैज्ञानिक परिवर्तनों पर विवेकपूर्ण दृष्टि रखने वाला अभिकरण ही इस बदलाव का संवाहक हो सकता है।
क्या यह सच नहीं है कि जापान और इटली में कई भ्रष्ट राजनेता सजा काटने के लिए बाध्य किये गये। जब अमरीका जैसे देश में राष्ट्रपति क्लिंटन के खिलाफ भी पब्लिक ग्रोसीक्यूटर खड़ा हो सकता है, तो हमारे देश में यह व्यवस्था क्यों नहीं लागू की जा सकती ? हमारे देश के युवाओं को भी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आगे आना चाहिये साथ ही बढ़ते भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कड़ी नियम-कानून बनाने का प्रस्ताव रखना चाहिए।
ADVERTISEMENT