सरस्वती पूजा पर निबंध इन हिंदी Saraswati Puja Essay in Hindi

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रूपरेखा : परिचय - सरस्वती पूजा क्या है - सरस्वती पूजा कब है 2022 - सरस्वती पूजा कहाँ-कहाँ मनाया जाता है - सरस्वती पूजा का महत्व - सरस्वती पूजा का इतिहास - सरस्वती पूजा कैसे मनाते हैं - निष्कर्ष।

सरस्वती पूजा की परिचय (Introduction of Saraswati Puja)

सरस्वती पूजा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस त्यौहार का अपने आप में ही बहुत महत्व होता है। इस त्योहार पर माता सरस्वती की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में सरस्वती माता को स्वयं ज्ञान की देवी कहा जाता है। सरस्वती पूजा को हर साल बसंत पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। बसंत पंचमी का यह त्यौहार प्राचीन काल से बहुत प्रचलित है। इस दिन प्रत्येक मनुष्य सरस्वती माता की पूजा करके उनसे शांति समृद्धि बुद्धि व सफलता के लिए कामना करते हैं। इसके साथ ही साथ स्कूल व कॉलेजों में भी इन की प्रतिमा की पूजा की जाती है और पीले पीले सुगंधित पुष्प चढ़ाए जाते हैं।


सरस्वती पूजा क्या है (What is Saraswati Puja| सरस्वती पूजा क्यों मनाया जाता है (Why is Saraswati Puja celebrated?)

सरस्वती पूजा मां सरस्वती के लिए एक निश्चित दिन पर विशेष प्रकार से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आयोजित किया जाता है। वसंत पंचमी या सरस्वती पूजा कोई साधारण पूजा नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म के लोग इसे एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में देखते हैं। कहा जाता है, कि सरस्वती पूजा करने से विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं।

सरस्वती पूजा को वसंत पंचमी अथवा श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी का यह त्यौहार प्राचीन समय से ही प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है की किसी भी क्षेत्र में कला अथवा शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को मां सरस्वती की पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए। वैसे तो सरस्वती माता की पूजा प्रतिदिन विद्यार्थियों को करना चाहिए, किंतु वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा करने का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।


सरस्वती पूजा 2022 में कब है (When is Saraswati Puja in 2022)| इस साल सरवस्ती पूजा कब है (What is the Date of Saraswati Puja in 2022)

सरस्वती पूजा हर वर्ष माघ महिने में शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। वसंत का मौसम बेहद खास इसलिए भी होता है क्योंकि इस मौसम में फसलों का उत्पाद बहुत अच्छा होता है। यह महीना बेहद खूबसूरत होता है जिसमे माता सरस्वती की पूजा की जाती है।

सरस्वती पूजा प्रति नए वर्ष के जनवरी-फरवरी माह में मनाया जाता है। इस वर्ष 2022 में सरस्वती पूजा 5 फरवरी के दिन मनाया जाएगा। यह दिन शनिवार का दिन होगा।

यह दिन अपने आप में बहुत विशेष होता है क्योंकि इस दिन सरस्वती माता की सभी लोग पूजा अर्चना करते हैं और उनसे इस संसार के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं।


सरस्वती पूजा कहाँ-कहाँ मनाया जाता है (Where is Saraswati Puja celebrated?)

भारत के अलावा सरस्वती पूजा का यह त्यौहार हमारे पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश इत्यादि कई अन्य देशों में मनाया जाता है। वसंत पंचमी या सरस्वती पूजा का वर्णन भारत के प्राचीन शास्त्रों में भी उल्लेखित है। इसके अलावा कई काव्य ग्रंथों और साहित्य में भी मां सरस्वती का विभिन्न ढंग से वर्णन मिलता है।


सरस्वती पूजा का महत्व (Importance of Saraswati Puja)

सरस्वती पूजा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व हैं। यह केवल भारत में ही प्रचलित नहीं है अपितु भारत देश के साथ-साथ भारत के पड़ोसी देश जैसे कि नेपाल, बांग्लादेश में भी खूब धूमधाम से मनाया जाता है। सरस्वती पूजा को बसंत पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। सरस्वती पूजा का उल्लेख हिंदू धर्म के धर्म ग्रंथों में भी किया गया है। इस पूजा में प्रत्येक विद्यार्थी को अवश्य ही भाग लेना चाहिए।

सरस्वती पूजा बसंत के मौसम के समय होती है बसंत का मौसम भी बेहद खास होता है क्योंकि इस मौसम में सब कुछ हरा-भरा होता है, बच्चे हो चाहे फिर पेड़-पौधे हर कोई मस्ती में झूम रहा होता है। हिंदुस्तान में सरस्वती पूजा लगभग पूरे देश में मनाया जाता है। इस महत्वपूर्ण पर्व के दिन सभी विद्यार्थी इकट्ठे होकर माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करते हैं तथा उनकी आरती करने के पश्चात सभी को माता का प्रसाद बांटा जाता है। एक बार जिस पर माता सरस्वती का आशीर्वाद बन जाता है, वह मंदबुद्धि से चतुर और बुद्धिमान मस्तिष्क प्राप्त करता है।


सरस्वती पूजा का इतिहास (History of Saraswati Puja

सरस्वती पूजा मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। कथाओं के मुताबिक जब भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, तब सभी जीवो और वनस्पतियों का निर्माण किया था। किंतु भगवान शिव के अनुसार ब्रह्मा जी ने संसार का निर्माण तो कर दिया लेकिन सारा जगत अभी भी मूक और रंगहीन था।

भगवान शिव ने परम पिता ब्रह्मा को यह आज्ञा दी की इतने बड़े संसार के निर्माण के बावजूद अभी भी सारा जगत अधूरा है। सभी ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं ने मिलकर इस समस्या का निवारण करना चाहा। इसके लिए ब्रह्मा जी ने समस्या के निदान के लिए श्री विष्णु की स्तुति की। इसके पश्चात विष्णु भगवान उनके समक्ष तुरंत ही प्रकट हो गए। ब्रह्मा जी के बताए अनुसार उन्होंने समस्या का हल ढूंढने के लिए आदिशक्ति की याचना की।

जब मां आदिशक्ति दुर्गा देवों के समक्ष प्रकट हुई तो उन्होंने समस्या को समझ कर सृष्टि को और भी सुशोभित करने के लिए स्वयं के तेज से एक श्वेत दिव्य प्रकाश को प्रकट किया। आदिशक्ति के ही एक रूप से वह तेज स्वरूपी चार भुजाओं वाली देवी, जिनके हाथों में वीणा, कमंडल, पुस्तक और माला विराजमान था।

देवी ने देवताओं के अनुसार जैसे ही अपने वीणा से स्वर निकाले तो उसके मधुर ध्वनि से पूरे संसार में जीवन आ गया। समस्त संसार में शब्दों और कलाओं का संचार होता गया। वह तेज स्वरूप प्रकाश पुंज वाली देवी का नाम मां सरस्वती पड़ा, जो माता आदिशक्ति के आज्ञा अनुसार परम पिता ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी बनी।

तभी से संपूर्ण जगत में माता सरस्वती के प्रकट होने के उल्लास में सरस्वती पूजा किया जाने लगा, जो आज तक जारी है। माता सरस्वती के विषय में यह भी कहा जाता है की भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने उनके कार्यों से खुश होकर उन्हें यह वरदान दिया था कि हर वर्ष वसंत पंचमी के दिन विद्या तथा कला की देवी के रूप में उन्हें पूजा जाएगा।


सरस्वती पूजा कैसे मनाते हैं (How to Celebrate Saraswati Puja) | भारत में सरस्वती पूजा कैसे मनाया जाता है (How Saraswati Puja is Celebrated in India)

भारत में प्राचीन समय से ही धार्मिक अथवा सांस्कृतिक पहलुओं से देवियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हिंदू धर्म में विद्या तथा संगीत की देवी कहे जाने वाली मां सरस्वती की पूजा सभी के लिए लाभदायक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार किसी भी देव की पूजा करने से पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है अतः भगवान गणेश की मूर्ति भी मां सरस्वती की पूजा के पहले स्थापित किया जा सकता है।

मूर्ति स्थापित करने के बाद मां सरस्वती का श्रृंगार किया जाता है, उनके चरणों में गुलाल-अबीर इत्यादि अर्पित किया जाता है तथा दीपक जलाए जाते हैं।

पवित्र सरस्वती पूजा दिन कई शैक्षणिक संस्थानों में विद्यार्थियों द्वारा भव्य रुप से मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन लोग सवेरे उठकर स्नान करके पीला वस्त्र धारण करते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि मां सरस्वती को पीला रंग बहुत ही लुभावना लगता है, जिसके कारण इस दिन पीले रंग का वस्त्र पहनना अच्छा माना जाता है।

प्राचीन समय में गुरुकुल में सरस्वती पूजन के दिन माता सरस्वती के प्रतिमा के समक्ष सभी विद्यार्थी उनके उज्जवल भविष्य तथा आशीर्वाद की कामना करते थे। आज भी इसी प्रकार से सरस्वती पूजन हर वर्ष किया जाता है। स्कूल व कॉलेजों में विद्यार्थी एकजुट इकट्ठा होकर माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करते हैं व प्रेम भाव से उनकी आरती करते हैं। इसके पश्चात माता का प्रसाद सभी विद्यार्थियों में बांटा जाता है। माता सरस्वती के आशीर्वाद से प्रत्येक विद्यार्थी के मन से अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाता है।

इसके पश्चात पूजा के लिए सभी लोग इकट्ठे हो जाते हैं तथा माता सरस्वती की आरती की जाती है। आरती खत्म होने के पश्चात सभी लोगों को स्वादिष्ट प्रसाद वितरण किया जाता है। अंत में माता सरस्वती की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

जिस प्रकार ज्ञान से ही हम सबका विकास संभव है ठीक उसी प्रकार माता सरस्वती के आशीर्वाद के बिना हम सच्चे ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते। हम सरस्वती माता से विनती करते हैं कि वह सब पर अपनी कृपा दृष्टि हमेशा बनाए रखें। बसंत के मौसम में आयोजित सरस्वती पूजा का त्यौहार खिलखिला उठता हैं। प्रकृति के साथ-साथ मां सरस्वती की अलौकिक कृपा हर तरफ उजाला कर देती है। सूर्योदय की चारों तरफ अपने अलौकिक प्रकाश को बिखेर ही होती है जो कि मनुष्य पर पढ़ते हैं। उसके चेतना को जागृत कर देती है। इसके साथ ही मनुष्य में सकारात्मक विचार और ज्ञान से विकास होता है। यह भारतीय संस्कृति के संस्कार हैं जो कि आज भी लोग विद्या व विद्या की देवी का इतना सम्मान करते हैं।


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