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रुपरेखा : किसान - किसान की दिनचर्या - किसान की सेवा निष्काम - भारतीय कृषक कर्मयोगी और धार्मिक - किसान की कमजोरियाँ - उपसंहार।
किसान -'किसान' कठोर परिश्रम, त्याग और तपस्वी जीवन का दूसरा नाम है। किसान का जीवन कर्मयोगी की भाँति मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की साधना में लीन रहते है। वीतराग संन्यासी की भाँति उसका जीवन परम संतोषी है। तपती धुप, कंडकती सर्दी और घनघोर वर्षा में तपस्वी की भाँति वह अपनी साधना में अडिग रहते है। सभी ऋतुएँ उसके सामने हँसती-खेलती निकल जाती हैं और वह उनका आनंद लेते है। यह उनकी जीवन की विशेषता है। सृष्टि का पालन विष्णु भगवान् का कार्य है । मानव-समाज का पालन किसान का धर्म है। इसीलिए कहते है की, किसान में हम भगवान् विष्णु के दर्शन कर सकते हैं। प्राणिमात्र के जीवन को पालने वाले किसान का तपस्या -पूर्ण त्याग, अभिमान रहित उदारता, थकान रहित परिश्रम उनके जीवन के अंग हैं। उसमें सुख की लालसा नहीं होती। कारण, दुःख उनका जीवन साथी है। संसार के प्रति अनभिज्ञता और अज्ञानता से उसमें आत्म-ग्लानि नहीं होती, न दरिद्रता में दीनता का भाव-बोध होता है। यही उनके जीवन के गुण हैं।
किसान अहर्निश कर्म-रत रहता है। वह ब्राह्म-मुहूर्त में उठता है, पुत्र सम बैलों को भोजन परोसता है, स्वयं हाथ-मुँह धो, हल्का नाश्ता कर कर्मभूमि 'खेत' में पहुँच जाता है । जहाँ सवेरे की किरणें उसका स्वागत करती हैं। वहाँ वह दिनभर कठोर परिश्रम करेगा। स्मान-ध्यान, भजन- भोजन, विश्राम, सब कुछ कर्मभूमि पर ही करेगा। साँझ के समय अपने बैलों के साथ हल सहित घर लौटते है। धन्य है किसान का ऐसा कर्मयोगी जीवन। चिलचिलाती धूप, पसीने से तर शरीर, पैरों में छाले डाल देने वाली तपन, उस समय सामान्य जन छाया में विश्राम करता है, किन्तु उस महामानव किसान को यह विचार ही नहीं आता कि धूप के अतिरिक्त कहीं छाया भी है। मूसलाधार वर्षा हो रही है, बिजली कड़क रही है, भयभीत जन-गण आश्रय ढूँढ रहा है, किन्तु यह देवता-पुरुष कर्मभूमि में अपनी फसल को रक्षा में संलग्न है। वरुण देवता की ललकार का सामना कर रहा है। वाह रे साहसिक जीवन। प्रकृति के पवित्र वातावरण और शुद्ध वायुमण्डल में रहते हुए भी वह दुर्बल है, किन्तु उनकी हड्डियाँ वज् के समान कठोर हैं। शरीर स्वस्थ है, व्याधि से कोसों दूर है। रात-दिन के कठोर जीवन में मनोरंजन के लिए स्थान कहाँ ? रेडियो पर सरस गाने-सुनकर, यदा-कदा गाँव में आई भजन-मण्डली के गीत सुनकर या कचहरी की तारीख भुगतने अथवा आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए शहर आने पर चलचित्र देखने में ही उसका मनोरंजन मुमकिन है । जहाँ किसान अपेक्षाकृत समृद्ध है, वहाँ दूरदर्शन भी मनोरंजन का साधन है।
किसान पक्का स्वार्थी होता है, इसमें सन्देह नहीं । उनकी गाँठ से रिश्वत के पैसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं, भाव-ताव में भी वह चौकस होते है। वह किसी के फुसलाने में नहीं आते। दूसरी ओर उसका सम्पूर्ण जीवन प्रकृति का प्रतिरूप है। वृक्षों से फल लगते हैं, उन्हें आम जनता खाती है। खेती में अनाज होता है यह संसार के काम आता है । गाय के थन में दूध होता है वह दूध नहीं पीता बल्कि दूसरे ही उसे पीते हैं। इसी प्रकार किसान के परिश्रम की कमाई में दूसरों का साझा है, अधिकार है। उनके स्वार्थ में परमार्थ है और उसकी सेवा निष्काम है।
एक ओर भारतीय कृषक कर्मयोगी है, दूसरे और धर्मभीरु अथवा धार्मिक भी है। गाँव के पंडित उनके लिए भगवान् का प्रतिनिधि है । उनकी नाराजगी उनके लिए अभिशाप है । इस शाप-भय ने इहलोक में उसे नरक भोगने को विवश कर रखा है । तीसरी ओर, वह कायदे-कानून से अनजान भी है, तो साहूकार अथवा बैंक का कर्जदार भी है निम्न वर्ग का किसान कर्ज में जन्म लेता है, साहूकारी-प्रथा में जीवन-भर पिसता है और कर्ज में डूबा ही मर जाता है। उनकी मेहनत की कमाई पर ये नर-गिद्ध ऐसे टूटते हैं कि उनका सारा माँस नोंच- नोंच कर उसे ठठरी बना देते हैं । ब्याज का एक-एक पैसा छुड़ाने के लिए वह घंटो म्हणत करते है।
इस तपस्वी के जीवन की कुछ कमजोरियाँ भी हैं। अशिक्षा के कारण बातों-बातों में लड़ पड़ना, लट्ट चलाना, सिर फोड़ना या फुड़वा लेना; वंशानुबंश शत्रुता पालना, किसी के खेत जलवा देना, फसल कटवा देना, जनता के प्रहरी पुलिस से मिलकर षड्यन्त्र रचना, मुकदमेबाजी को कुल का गौरव मानकर उस पर नेतहाशा खर्च करना, ब्याह-शादी में चादर से बाहर पैर पसारकर झूठी शान दिखाना, इसके जीवन के अंधेरे पल को प्रकट करने वाले तत्त्व हैं।
आज भारतीय किसान का जीवन संक्रमण काल से गुजर रहा है। एक ओर वह शिक्षित हो गया है, खेती के लिए नये उपकरणों और सघन खेती करने के साधनों का प्रयोग करता है। जिससे आर्थिक सम्पन्नता की ओर आगे है। रहन-सहन में नागरिकता की स्पष्ट छाप उसके जीवन पर प्रकट हो रही है, तो दूसरी ओर उसमें अनुशासनहीनता व उद्ण्डता और बेईमानी, चालाकी और आधुनिक जीवन की विषमताएँ, कुसंस्कार और कुरीतियाँ घर कर रही हैं । अब उसके बेटे-पोते किसानी से नाता तोड़कर बाबू बनने लगे हैं । खेतों की सुगंध युक्त हवा में उन्हें धूल अधिक दिखाई देने लगी है, जिससे वस्त्र खराब होने का भय है। इस कठोर परिश्रमी, धर्मभीरु और स्वाभिमानी भारतीय कृषक का जीवन भविष्य में किन विचिन्न प्राराओं में प्रवाहित होगा, यह कहना कठिन है। जिस दिन देश के किसानों के जीवन से परेशानी समाप्त होगी वह दिन सभी किसानों के लिए गौरव तथा प्रसन्नता का दिन होगा।
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