Railway Platform Scene Essay In Hindi

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रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य पर निबंध - Essay on Railway Platform Scene - Railway Platform ka Drishya Essay in Hindi - Railway Platform ka Ek Drishya

रूपरेखा : ट्रेनों का महत्त्वपूर्ण स्थान - प्लेटफार्म पर सार्वजनिक सुविधाएं - ट्रेन के प्लेटफार्म पर पहुँचने से हलचल - रेलवे स्टेशन का वातावरण - उपसंहार।

ट्रेनों का महत्त्वपूर्ण स्थान -

यातायात के विविध साधनों में रेलगाड़ी अथवा ट्रेनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सम्यो, सुलभ और अधिक सुरक्षित सवारी है। इसलिए इसे जनता की सवारी कहा जाता है। आज देश में रेलों का एक जालसा बिछा हुआ है। स्वराज्य-प्राप्ति के पश्चात्‌ राष्ट्र के कर्णधारों ने इसे प्रत्येक जिले, नगर, कस्बे तथा गाँव तक पहुँचाने का प्रयास किया है और आज भी कर रहे हैं। विशालकाय लौहपथ-गामिनी के ठहरने, विश्राम करने, कोयला-डीजल व पानी लेने तथा अपने भार को हल्का करने और नया भार लेने के लिए निश्चित स्थान है यह रेलवे स्टेशन । स्टेशन के अंदर गाड़ी पर यात्रियों के चढ़ने और उतरने के लिए एक चबूतरा या मंच होता है जिसे रेलवे की भाषा में प्लेटफार्म कहते हैं।


प्लेटफार्म पर सार्वजनिक सुविधाएं -

यात्रियों की सुविधा के लिए प्लेटफार्म पर कई सार्वजनिक सुविधाएं मुहैया कराई गयी है। पानी के लिए सार्वजनिक नल होते हैं, क्षुधा-शान्ति के लिए जलपान की सुविधाएं होती हैं, ज्ञानवर्धन और मानसिक भूख मिटाने के लिए बुकस्टाल होते हैं। इनके अतिरिक्त एक-दो रेहड़ियाँ बच्चों के खेल-खिलौनों या स्थान-विशेष की प्रसिद्ध वस्तुओं की भी होती हैं। प्लेटफार्म पर गाड़ी में चढ़ने और उतरने वालों, अपने सम्बन्धियों अथवा मित्रों की बिदाई अथवा अगवानी (स्वागत-सत्कार) के लिए आए प्रतीक्षार्थियों की भीड़ रहती है। इनके अतिरिक्त सामान उठाने, गाड़ी में रखने तथा उतारने के लिए कुलियों की भीड़ होती है। कुलियों की पहचान लाल या हरा कुर्ता, पगड़ी, सफेद पाजामा, बाँह पर बँधा हुआ रेलवे का अधिकृत बिल्ला से होती है। भारत की दरिद्र जनता का एक अंश हाथ में भिक्षा-पात्र लिए उदर-पूर्ति के लिए याचना करने वाले नर-नारी, बाल-वृद्ध भी प्लेटफार्म पर भारत की आर्थिक दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत कर रहे होते हैं। जिसे देखकर मन विचिलित होने लगता है। कुछ लोग उन्हें भिक्षा देकर पुण्य कमाने का अवसर प्राप्त करते है।


ट्रेन के प्लेटफार्म पर पहुँचने से हलचल -

और अब गाड़ी आने वाली है। स्टेशन-कर्मचारी ने गाड़ी आने की सूचना घंटी बजाकर तथा ध्वनि-विस्तारक यंत्र पर घोषणा दे दी है। सबको सावधान कर दिया है। हलचल तेज हो गई है। भूमि पर चौकड़ी लगाए और बैंचों पर पैरं लटकाए बैठे प्रतीक्षार्थी खड़े हो गए हैं। यात्रियों ने अपना सामान सँभालना शुरू कर दिया है। बच्चों को आवाजें लग रही हैं की जल्दी आओ, गाड़ी आ रही है। ओ बिटिया, चाट के पत्ते को फेंक, जल्दी कर, वरना यहीं रह जाएगी कुलियों में हलचल मच गई है। जिन लोगों ने पहले ही अपने कुली निश्चित कर रखे हैं, वे उन्हें आवाज लगा रहे हैं। कुछ कुली स्वत: ही अपने निश्चित किये सामान की ओर दौड़ रहे हैं। पानी पिलाने वाले कर्मचारी ने बाल्टी भर ली है। द्वार पर नियुक्त टिकट-चेकर, जो मटरगश्ती में मस्त था, द्वार पर पहुँच चुका है। पोर्टर और कुली आने वाली गाड़ो में चढ़ाने का सामान हाथ-रेहड़ी में लेकर प्लेटफार्म पर आ रहे हैं। धुआँ उड़ाती, सीटी बजाती, छक्-छक्‌ करती अपेक्षाकृत मन्द गति से चलती हुई रेलगाड़ी प्लेटफार्म में प्रवेश कर रही है। गाड़ी के प्लेटफार्म में प्रवेश करते हीं जनता में तेजी से हलचल मच गई है।


रेलवे स्टेशन का वातावरण -

गाड़ी एक झटके के साथ रुकती है। गाड़ी में चढ़ने वाले और सामान लादे कुली गाड़ी में चढ़ने के लिए उत्तावलापन दिखाकर धक्का-मुक्की कर रहे हैं । उतरने वाले उनसे अधिक जल्दी में हैं। इस सारी आपा-धापी में नर-नारियों के तीव्र, कर्कश और घबराहट भरे स्वर सुनाई पड़ते हैं, कृष्णा, तू चढ़ती क्यों नहीं ? “अरे भाई, जरा मेरे लड़की को तो चढ़ने दो। आदि। उधर इस हल्के, मधुर, कर्णप्रिय शोर में वातावरण को अशान्त कर रही है वेंडरों की कर्कश आवाजें चाय गरम चाय गरम गर्म गर्म समोसे ठंडा पानी कोल्डड्रिंक्स। इधर चाय के गिलास लिए हुए चाय-स्टॉल के लड़के डिब्बे की खिड़कियों के अन्दर की ओर मुँह करके आवाज लगा रहे हैं, चाय गरम, गरम चाय । चार-पाँच मिनट में ही प्लेटफार्म का दृश्य बदल जाता है । उतरने वाले यात्री प्लेटफार्म छोड़ रहे हैं। प्लेटफार्म की भूमि और बैंचों पर के यात्री अब गाड़ी में बैठे हैं । सभी बैंच खाली हैं। कुछ लोग चाय-पान या अल्पाहार में संलग्न हैं । पानी पिलाने वाले और चाय बेचने वालों की फुर्ती में थोड़ा अन्तर आ गया है। वेंडरों के कर्कश स्वर में धीमापन आ गया है। कुलियों की धका-पेल कम हो गई है। पुस्तकों का स्टॉल फिरसे खाली हो गया है। इधर, गाड़ी ने चलने के लिए सावधान होने की पहली सीटी दी । उधर, एक परिवार और दो बच्चे कुली से सामान उठवाए क्षिप्र गति से प्लेटफार्म पार कर गाड़ी में घुसने की कोशिश कर रहे हैं । कुली सिर का सामान उतार और मजदूरी की प्रतीक्षा में बाबू पैसे दो, ट्रैन खुल जाएगी के शोर में रत है। उधर बाबू जी हाँफते हुए जेब से पैसे निकाल रहे है।


उपसंहार - गाड़ी आई और चली गई। यात्री आए और चले गए। पर प्लेटफार्म शान्त भाव से अपनी जगह अवस्थित है । वह आने वाली गाड़ी की प्रतीक्षा में है, जिसके आने से चेहरे पर रौनक आ जाती है। फिर वही दृश्य देखने को मिलेगा, फिरसे प्लेटफार्म पर हलचल होगी। फिर लोगों में अपने परिजनों को विदाई देने तथा परिजनों का स्वागत करने की फुर्ती दिखेगी। फिरसे गरम चाय गरम चाय समोसा गरम ठंडा पानी की ध्वनि सुनाई देगी।


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