बगीचे में दो घंटे का दृश्य

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बगीचे में दो घंटे पर हिंदी निबंध कक्षा 10,11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on Two Hours in Garden - Two Hours in the Garden in hindi for class 10,11 and 12 Students. Essay on Hours in Garden in Hindi for Class 10, 11 and 12 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - बगीचे में पहुँचना - बगीचे की सुंदरता - जलकुंड की शोभा - बगीचा और मनुष्य - बगीचे में शेर के दौरान मित्र से मुलाकात - उपसंहार।

प्रस्तावना

हमारे जीवन में रोज के कामों से हमे सुकून रहती है। इसी बीच मैं भी अपने रोज के कामों से फुर्सत निकाल कर बगीचा जाने का मन बनाया। बगीचे में एक-दो घंटे की सैर के समान आनंददायक और क्या हो सकता है ! बगीचे की मोहक सुंदरता देखकर दिल भी बाग-बाग हो जाता है।

बगीचे में पहुँचना

उस दिन शाम को जब मैं उद्यान पहुँचा तो ऐसा लगा मानो संसार का सारा सुख यहीं सिमट आया हो। बगीचे का वो नजारा देख मानों मेरी सारी थकान तुरंत गयाब हो गया। बगीचे की वो ठंडी हवा जो घर के कूलर को भी फ़ैल कर दे।

बगीचे की सुंदरता

बगीचे की सुंदरता दिल पर जादू कर रही थी। मखमल-सी मुलायम हरी-भरी घास मानो मुझे बैठने का निमंत्रण दे रही थी। मैं बैठ गया। तबीयत हरी हो गई। चमेली और जूही, गुलाब और हरसिंगार के फूलों से बगीचे की शोभा में चार चाँद लग गए थे। फूलों पर भी मँडरा रहे थे। वायु के झोंकों से पेड़-पौधे झूम उठते थे। पत्तों की मर्मर-ध्वनि सुनाई दे रही थी। पक्षियों का मोहक कलरव, कोयल की 'कुहू कुहू' और पपीहे की 'पिऊ पिऊ' की ध्वनि वातावरण में मिठास भर रही थी।

जलकुंड की शोभा

थोड़ी देर बाद मैं फौआरे के पास गया। फौआरे से जल की रंगबिरंगी धाराएँ निकल रही थीं। ऊपर जाकर वे नन्ही-नन्ही बूंदों की झड़ी में बदल रही थीं। सूर्य की अंतिम किरणों के कारण इन बूंदों में इंद्रधनुष की छटा दिखाई दे रही थी। जलकुंड में बतख के जोड़े कल्लोल कर रहे थे। कितना मोहक दृश्य था वह !

बगीचा और मनुष्य

बगीचे का वातावरण बहुत मनोरंजक था। कोमल घास पर बैठे युवक-युवतियों की रंगीली बातों ने वातावरण को और भी रसमय बना दिया था। कुछ बच्चे झूला झूल रहे थे, कुछ बच्चे सरकपट्टी पर फिसलने का मजा ले रहे थे। रंगबिरंगी फ्राक पहने छोटी-छोटी बालिकाएँ उड़ती हुई तितलियों के समान सुंदर लग रही थीं। एक ओर माली पौधों को बड़ी लगन से सींच रहा था। बाग में फूलों की खुशबू थी, तो हृदय में खुशियों की मस्ती। बगीचे के एक कोने में बेंचों पर बैठे कुछ वृद्ध स्त्री-पुरुष अपनी चर्चा में मग्न थे।

बगीचे में शेर के दौरान मित्र से मुलाकात

बगीचे में शेर करते करते मुलाकात मेरे एक प्रिय मित्र से हुई। वो भी मेरी तरह शेर करने आया था। हम फिर इधर-उधर टहलने लगे। कुछ देर घूमने के बाद हमने देखा कि, सूर्य भगवान बिदा लेने की तैयारी कर रहे थे। धीरे-धीरे उनकी रौशनी बगीचे में कम हो रही थी। पूनम का चाँद अमृत की वर्षा करता हुआ झाँकने लगा था। वातावरण में चारों ओर शांति का साम्राज्य था। घूमते-घूमते हम एक पेड़ के नीचे बैठ गए। शाम का वक़्त था, मौसम सुहाना हो गया था। मेरा मन कविता सुनने को तरस रहा था। तभी मैंने अपने मित्र को एक कविता सुनाने की आग्रह किया। मेरे आग्रह पर मित्र ने एक कविता सुनाई। उसकी मीठी आवाज सुनकर मेरा आनंद दुगुना हो गया। शाम सुहाना हो गया।

उपसंहार

शाम गहराने लगी थी। बगीचे से लोग बिदा होने लगे थे। बच्चे अपने माता-पिता का हाथ पकड़े हुए घर की ओर लौट रहे थे। हम भी उठे और आँखों में नए सपने, होठों पर नए और दिल में नई खुशियाँ लिए घर ओर चल दिए।


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