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रुपरेखा : परिचय - दहेज का इतिहास - दहेज एक अभिशाप - वधुओं पर अत्याचार - दहेज की प्रबलता - दहेज मिटाने के प्रयत्न - दहेज प्रथा का समाधान - उपसंहार।
परिचय -आजकल किसी भी दैनिक अखबार में, दहेज-मृत्यु का समाचार अवश्य मिलेगा। कहने के लिए हमने बहुत प्रगति की है, पर हम अपने समाज को नहीं बदल पाए हैं। यदि स्वतंत्रता की ताजी हवा समाज के मन-मस्तिष्क तक पहुँची होती तो आज दहेज-प्रथा जैसी क्रूरता हमारे यहाँ न होतीं। भारत में शादियों हमेशा से एक खर्चीली एवं कष्टकर सामाजिक रोति मानी जाती रही है। वे दुलहन और लाखो रुपए के उपहार के साथ घर जाते हैं। यही आधुनिक भारतीय शादी है। शादियों में दिए जाने वाले सभी उपहार ‘दहेज' की श्रेणी में आते है।
एक समय था जब कन्या के विवाह में उसका पिता या संरक्षक अपनी शक्ति के अनुसार भेंट-उपहार दिया करता था और वर-पक्ष उसे संतोषपूर्वक स्वीकार कर लेता था। दहेज का यह रूप हमारी संस्कृति का एक आदर्श और मंगलमय पहलू था। लेकिन दहेज आज कन्या-पक्ष के शोषण का माध्यम बन गया है। कहीं यह शोषण नकद धन-राशि के रूप में होता है तो कहीं आभूषणों के रूप में। कहीं लड़के की पढ़ाई के खर्च के रूप में दहेज वसूल किया जाता है, तो कहीं दहेज जगह-जमीन, मोटरकार-स्कूटर या अन्य रूप में लिया जाता है। प्रकार कोई भी हो, दहेज के लेन-देन के बिना कन्या डोली में नहीं चढ़ सकती है। यही कारण है आज देश में दहेज की समस्या बढ़ती चली जा रही है।
आजकल अपेक्षित दहेज न मिलने पर नववधू को कई प्रकार के ताने सुनने पड़ते हैं। नववधुओं को अनेक प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक यातनाएँ दी जाती हैं। दहेज के लालच में पुत्र का दूसरा विवाह कराने के लिए पुत्रवधुओं को विष देकर या जलाकर मार डाला जाता है। अधिकांश मामलों में तो त्रस्त नववधुएँ स्वयं ही आत्महत्या कर लेती हैं। रेल की खूनभरी पटरियाँ, बाथरूमों से निकलता मिट्टी के तेल का धुआँ और सीलिंग पंखों से लटकती या कुओं में डूबी हुई लाशें अनेक बार इसका सबूत दे चुकी हैं। दहेज का दानव कन्या-पक्ष का जमकर लहू पीता है। अपेक्षित दहेज न दे पाने पर बारात ही लौट जाती है। दहेज का इंतिजाम न होने पर कभी-कभी तो कन्या का पिता आत्महत्या कर लेता है।
दहेज की प्रथा इतनी प्रबल हो गई है कि लोगों में इसके विरोध में आवाज उठाने की मानो शक्ति ही नहीं रहती है। दहेज के खिलाफ बोलने वाली युवती मूर्ख या पागल समझी जाती है। सबसे अधिक दु:ख तो इस बात का है कि हमारे समाज का प्रगतिशील, शिक्षित वर्ग भी दहेज को अपना समर्थन दे रहा है। दहेज-प्रतिबंधक कानून समाज पर अपना खास असर नहीं डाल पाते। यह घृणित दहेज-प्रथा हमारे समाज के लिए एक अभिशाप हो गई है। यदि दुलहन अपने साथ पर्याप्त उपहार नहीं लाती है, तो वह अपने ससुरालवालों द्वारा प्रताड़ित की जाती है। यही कारण है कि, हम लोग दहेज के कारण नवविवाहिता दुल्हनों की मौत के कई मामले सुनते हैं। इसीलिए इस प्रथा को समाप्त करने की आवश्यकता है।
दहेज प्रथा मिटाने के लिए देश के हर एक व्यक्ति को आगे आना चाहिए। हमारे युवक-युवतियों को बिना ढह लिए-दिए विवाह करने का संकल्प करना चाहिए। दहेज लेने व् देने वाले का सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए। सरकार का भी यह कर्तव्य है की वह दहेज विरोधी कानून को अधिक कठोर बनाए और उसका पालन कराए जाना चाहिए।
सरकार द्वारा बनाए गए सख्त कानूनों के बावजूद दहेज प्रणाली की अभी भी समाज में एक मजबूत पकड़ है और आये दिन कई महिलाएं इसका शिकार हो रहे है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए देश के हर व्यक्ति को अपना सोच बदलना होगा। हर व्यक्ति को इसके खिलाफ लड़ने के लिए महिला को जागरूक करना होगा।
दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए तथा इसके खिलाफ लोगों के अंदर जागरूकता लाने के लिए यहां कुछ समाधान दिए गए हैं जिसे सभी गंभीरता से पढ़े और उसपे अमल करे :
उचित शिक्षा -दहेज-प्रथा, जाति भेदभाव और बाल श्रम जैसे सामाजिक प्रथाओं के लिए शिक्षा का अभाव मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक है। देश में शिक्षा के कमी के होने के कारण आज देश में दहेज प्रथा जैसे क्रूरता सामाजिक प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है। लोगों को ऐसे विश्वास प्रणालियों से छुटकारा पाने के लिए तार्किक और उचित सोच को बढ़ावा देने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए जिससे ऐसे प्रथा समाप्त हो सके।
अपनी बेटियों के लिए एक अच्छी तरह से स्थापित दूल्हे की तलाश में और बेटी की शादी में अपनी सारी बचत का निवेश करने के बजाए लोगों को अपनी बेटी की शिक्षा पर पैसा खर्च करना चाहिए और उसे स्वयं खुद पर निर्भर करना चाहिए। अगर कोई महिला शादी से पहले काम करती है और उसे आगे भी काम करने की इच्छा है तो उसे अपने विवाह के बाद भी काम करना जारी रखना चाहिए और ससुराल वालों के व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के प्रति झुकने की बजाए अपने कार्य पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहिए। महिलाओं को अपने अधिकारों, और वे किस तरह खुद को दुरुपयोग से बचाने के लिए इनका उपयोग कर सकती हैं, से अवगत कराया जाना चाहिए।
हमारे समाज में मूल रूप से मौजूद लिंग असमानता दहेज प्रणाली के मुख्य कारणों में से एक है। बच्चों को बाल उम्र से ही लैंगिक समानता के बारे में सिखाना चाहिए। बहुत कम उम्र से बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि दोनों, पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकार हैं और कोई भी एक-दूसरे से बेहतर या कम नहीं हैं। युवाओं को दहेज-प्रथा को समाप्त करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्हें अपने माता-पिता से यह कहना चाहिए कि वे दहेज स्वीकार नहीं करें।
अभिभावकों को समझना चाहिए कि दहेज के लिए धन बचाने के बजाय उन्हें अपनी लड़कियों को शिक्षित करने के लिए खर्च करना चाहिए। माता-पिता को उन्हें वित्तीय रूप से स्वावलंबी बनाना चाहिए। दहेज मांगना या दहेज देना, दोनों ही भारत में गैर कानूनी और दंडनीय अपराध है। इसलिए ऐसे किसी भी मामले के विरुद्ध शिकायत की जानी चाहिए। युवाओं को दहेज-प्रथा को समाप्त करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्हें अपने माता-पिता से यह कहना चाहिए कि वे दहेज स्वीकार नहीं करें। क्योकि, शादी आपसी संबंध होती है। दोनों परिवारों को मिलकर साझा खर्च करना चाहिए। तभी सुखद विवाह और सुरती समाज हो पाएँगे तथा देश से दहेज प्रथा हमेशा के लिए समाप्त हो पाएंगे।
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