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मेरा प्रिय खेल - प्रिय खेल कैसे बना - उस खेल के प्रति साधना - महत्त्व - वह खेल प्रिय होने का कारण।
मेरा प्रिय खेलबचपन से ही मुझे खेलने-कूदने में ज्यादा आनंद आता रहा है। जैसे क्रिकेट, हॉकी, बॉलीबॉल, फुटबॉल, बास्केटबॉल, लॉन-टेनिस, कबड्डी, टेबल-टेनिस, बैडमिंटन, गोल्फ, पोलो, चेस आदि अनेक खेलों में मुझे दिलचस्पी है, किंतु इन सभी खेलों में क्रिकेट का खेल मुझे अधिक प्रिय है। आज सारा विश्व क्रिकेट को 'खेलों का राजा' मानता है। क्रिकेट मैच का नाम सुनते ही लोग उसे देखने के लिए उत्साह हो उठते हैं। जो लोग मैच देखने नहीं जा सकते, वे टी. वी. पर उसे देखना या रेडियो पर उसकी कॉमेंट्री सुनना नहीं चूकते। जो लोग ऑफिस जाते है वो भी अपना काम कुछ देर छोड़कर क्रिकेट दिखना शुरू कर देते है। अखबारों के पन्ने क्रिकेट के समाचारों से भरे होते हैं। यहां तक की जो लोग सफर क्र रहे होते है, वह लोग भी सफर करते करते क्रिकेट का मजा लेते है। सचमुच, क्रिकेट एक अनोखा खेल है और मेरा प्रिय खेल भी।
प्रिय खेल कैसे बनाक्रिकेट का शौक मुझे बचपन से ही रहा है।में अपने बड़े भाई को खेलता देख मुझे भी इच्छुक होने लगा क्रिकेट खेल से। उन्होंने हमारे मुहल्ले के कुछ मित्रों की एक टीम बनाई थी। यह टीम छुट्टियों के दिन मैदान में क्रिकेट खेलने जाती थी। मैं भी उन सबके साथ खेलने लगा। एक दिन मेरे बल्ले ने दनादन दो छक्के फटकार दिए। उस दिन सबने मुझे शाबाशी दी। बस, उसी दिन से क्रिकेट मेरा प्रिय खेल बन गया। धीरे-धीरे भाई ने मुझे इस खेल के सभी दाँव-पेच सिखा दिए।
उस खेल के प्रति साधनामैं प्रतिदिन शाम को अपने मित्रों के साथ क्रिकेट खेलता हूँ। क्रिकेट के सभी मैच मैं अवश्य देखता हूँ। मैं अपने फुरसत के समय क्रिकेट-संबंधी पत्रिकाएँ पढ़ता हूँ तथा पुराने क्रिकेट मैच टीवी पर देखता हूँ। अखबारों में प्रकाशित क्रिकेट-संबंधी लेखों एवं चित्रों का मैंने अच्छा-खासा संग्रह तैयार किया है। क्रिकेट के सभी प्रसिद्ध खिलाड़ियों के चित्र मैंने एक एल्बम में संभाल कर रखा है। सचमुच क्रिकेट का नाम सुनते ही मैं अपना सारा काम छोड़ के उससे देखने चले जाता हूँ। पिछले साल मैं अपने स्कूल के क्रिकेट-टीम का कप्तान था। सालभर में जितने मैच खेले गए थे, उन सबमें हमारे टीम की जीत हुई थी। आज मैं अपने स्कूल के विद्यार्थियों का प्रिय खिलाड़ी बन चूका हूँ। यहाँ तक की स्कूल के अध्यापक भी मुझ पर गर्व करते हैं। सब लोग मुझे अपने स्कूल का जूनियर "धोनी" मानते हैं।
महत्त्वक्रिकेट खेलने से हमारे शरीर को अच्छा व्यायाम हो जाता है तथा इससे शरीर फुर्तीला बना रहता है। अनुशासन, कर्तव्य-परायणता और सहयोग की शिक्षा भी क्रिकेट से मिलती है। क्रिकेट का बेहतरीन खिलाड़ी न तो विजय मिलने पर खमंड करता है और न हारने पर निराश होता है। इसके अतिरिक्त इस खेल द्वारा नाम और दाम दोनों पाने की भरपूर गुंजाइश रहती है।
वह खेल प्रिय होने का कारणआज मुझमें जो शारीरिक शक्ति और मानसिक क्षमता है, वह सभी के लिए क्रिकेट का काफी योगदान है। मैं इस खेल का बहुत ऋणी हूँ। क्रिकेट को अपना सर्वाधिक प्रिय खेल बनाकर मैं इस ऋण को उतारना चाहता हूँ। हो सकता है, यह खेल मेरे भावी जीवन में चार चाँद लगा दे और भविष्य में मेरी एक नई पहचान बना दे।
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