मेले में दो घंटे पर निबंध

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मेले में दो घंटे पर हिंदी निबंध कक्षा 10, 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on two hours in fair in hindi - Mele mein Do Ghante Essay in hindi for class 10, 11 and 12 Students. Essay on spending two hours in Fair in Hindi for Class 10,11 and 12 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - मेले का परिचय - मेले का बाहरी दृश्य - मेले के भीतर का दृश्य - वस्तुओं की खरीददारी और मनोरंजन - मेले का अन्य दृश्य - उपसंहार।

प्रस्तावना

ग्रामीण जीवन में लोगों को जितना आकर्षण मेले के प्रति होता है उतना और किसी के प्रति नहीं होता। अपने गाँव का मेला देखकर मुझे इस सत्य का पता चला।

मेले का परिचय

इस बार जब मैं अपनी पढाई खत्म कर के छुट्टियों में गाँव गया, तब मैंने देखा कि सारे गाँव में मेले की धूम मची हुई है। गाँव में हर किसी के मुँह से मेले के बारे में सुनने को मिल रहा था। तभी मैंने भी अपने परिवार को कहा की मुझे भी मेला ले चलो अब बिना मेला देखे रहा नहीं जायेगा।

मेले का बाहरी दृश्य

दूसरे दिन अपने परिवार के साथ मैं भी मेला देखने चल पड़ा। सरस्वती नदी के किनारे घने वृक्षों की छाया में मेला लगा हुआ था। चारों ओर लोहे के तारों से उसकी सीमा बना दी गई थी। दूर से ही उसकी चहल-पहल मन में कुतूहल पैदा कर रही थी। आसपास के गाँवों से हजारों की संख्या में लोग पैदल चलकर या वाहनों में बैठकर आ रहे थे। सभी लोग रंगबिरंगे वस्त्रों में सजे हुए थे। खास करके ग्रामीण नारियों की वेशभूषा देखते ही बनती थी। मेले के प्रवेशद्वार की रचना बहुत आकर्षक थी।

मेले के भीतर का दृश्य

मेले में चारों ओर तरह-तरह की वस्तुओं की दुकानें थीं। स्त्रियों के लिए शृंगार-सजावट की वस्तुओं की भी अनेक दुकानें थीं। कोई काजल, कोई क्रीम, तो कोई रंगबिरंगी बिंदियाँ खरीद रही थीं। काँच की चूड़ियों की दुकानों पर महिलाओं की खूब भीड़ थी। एक ओर मिठाइयों की दुकानें थीं। खिलौनों की दुकानों पर छोटे-छोटे बच्चों की भीड़ थी। मेले में पुस्तकों की भी कुछ दुकानें थीं, जिनमें अधिकतर धार्मिक साहित्य दिखाई पड़ता था। फेरीवालों का तो रंग ही कुछ और था। कोई फल की ढेरी लगाए बैठा था, तो कोई शाक-सब्जी की। इस प्रकार सारा मेला मनुष्यों और वस्तुओं का अजायबघर-सा लग रहा था !

वस्तुओं की खरीददारी और मनोरंजन

मेले में बहुत-सी वस्तुओं ने हमें अपनी ओर आकृष्ट किया। मेरी माँ ने कुछ साड़ियाँ खरीदीं। छोटे भाई ने चलने वाली एक मोटर और हवाई जहाज खरीदा। इसके बाद पिताजी सबको एक स्टॉल पर ले गए। वहाँ हमने भेल-पूरी और आइसक्रीम खाई। इतने में छोटे भाई और बहन ने झूले पर बैठने की जिद की। आखिर हम टिकट लेकर झूले पर बैठे। यहाँ भी बहुत मजा आया।

मेले का अन्य दृश्य

एक जगह एक जादूगर जादू के खेल दिखा रहा था। एक कोने में दो पहलवान कुश्ती लड़ रहे थे। एक तरफ चरखी घूम रही थी। कुछ दूरी पर एक फोटो स्टूडियो था, जहाँ कई ग्रामीण फोटो खिंचवा रहे थे। हम सबने भी अपने पूरे परिवार का फोटो खिंचवाया। मेले में एक ज्योतिषी तोते द्वारा चिट्ठी निकलवाकर भविष्य बतलाता था।

उपसंहार

मेले में लगभग दो घंटे घूमने। शाम 9.30 बज चुके थे। चल-चलकर पैर जवाब दे चुके थे, परन्तु मन देख-देखकर नहीं भर रहा था, उसकी तमन्ना थी, और देखा जाए। मन को झुकना पड़ा । हम बाहर निकल आए। हमें गाँव के मेले की तथा गांव के लोगों का जीवन की अच्छी और यादगार जानकारी लेकर हम घर की ओर चल पड़े।


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