अस्पताल में आधा घंटा पर निबंध

ADVERTISEMENT

अस्पताल में आधा घंटा पर हिंदी निबंध कक्षा 10, 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए। - Essay Writing on half hour in Hospital in hindi - Half Hour in Hospital Essay in hindi for class 10, 11 and 12 Students. Essay on Half Hour in Hospital in Hindi for Class 10, 11 and 12 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना - अस्पताल जाने का कारण - अस्पताल का आँखों देखा हाल का वर्णन - अस्पताल का वातावरण- दुर्घटना हुए मित्र के साथ कुछ समय - जनरल वार्ड का दृश्य - ऑपरेशन थियेटर - डॉक्टर-परिचारिकाएँ - रिश्तेदार - उपसंहार।

प्रस्तावना

जिंदगी के अनेक रूप हैं। जिंदगी घरों-परिवारों में है। जिंदगी होटलों, क्लबों और थियेटरों में है। जिंदगी मेलों बाजारों में है। जिंदगी का एक दर्दभरा स्वरूप अस्पतालों में देखने को मिलता है। इसी बीच आज में आपको अस्पताल में बीते मेरे आधे घंटे के बारे में मैं आपको बताऊँगा।

अस्पताल जाने का कारण

हुआ यू कि, कुछ दिन पहले मेरा एक मित्र बाइक-दुर्घटना में जख्मी हो गया था। मेरे एक दूसरे मित्र से इस बात की सुचना मिली और मैं उससे मिलने के लिए घर से फ़ौरन निकल गया। उसे सिटी अस्पताल में दाखिल किया गया था। उसी शाम को मैं उसे देखने अस्पताल पहुँचा।

अस्पताल का आँखों देखा हाल का वर्णन

अस्पताल की इमारत सुंदर और शानदार है। उसके विशाल प्रांगण में हरी-भरी और सँवारी हुई लॉन है। आसपास फूलों की आकर्षक क्यारियाँ हैं। फाटक के सामने एक फौआरा है। फौआरे के निकट एक ऊँचे चबूतरे पर भगवान की प्रतिमा है। अस्पताल में कई रोगी वाहने थी। रोगी वाहन आना-जाना लगा हुआ था। अस्पताल में कई आपातकालीन वार्ड भी थे जहाँ दुर्घटना हुए लोगों का इलाज चल रहा था।

अस्पताल का वातावरण

अस्पताल का वातावरण का मैं क्या ही कहु आपको, कई परिवार डरे हुए थे तो कई परिवार अपने परिजनों को सही सलामत देख भगवान को शुक्रिया कर रहे थे। कई परिजनों अपने रिश्तेदारों को धुंध रहे थे तो कई दवाई को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे।

दुर्घटना हुए मित्र के साथ कुछ समय

मेरा मित्र जनरल वार्ड में था। मुझे देखकर उसने उठने की कोशिश की, पर मैंने उसे मना कर दिया। मैं उसके सिरहाने पड़े स्टूल पर बैठ गया। मैंने उसकी हालत के बारे में पूछा। उसकी तबीयत अब धीरे-धीरे सुधर रही थी। मैंने उसे अपने साथ लाए हुए फल दिए और कुछ देर उससे बातें की। वहाँ दूसरे मरीजों के पास भी उनके मुलाकाती यानी उनके परिजनों उनसे भेट करने आए हुए थे।

जनरल वार्ड का दृश्य

जनरल वार्ड में कुल 54 पलंग थे। वहाँ तरह-तरह के मरीज थे। किसी के सिर में पट्टी बैंधी हुई थी तो किसी के हाथ-पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था। एक मजदूर का हाथ मशीन की चपेट में आ गया था। बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का पतंग उड़ाते उड़ा छज्जे से गिर गया था। कुछ मरीजों को ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था। वहाँ कई ऐसे मरीज थे जिन्हें देखकर हृदय भर आता था। महिला मरीजों के लिए अलग वार्ड था।

ऑपरेशन थियेटर

कुछ देर के बाद मैंने मित्र को अपना ध्यान रखने कहा और उससे मैंने बिदा ली। जाते जाते उसे मैं जल्दी ठीक होकर घर आने की प्रोत्साहित किया। तत्पश्चात मैं जनरल वार्ड से बाहर आया। सामने ऑपरेशन थियेटर था। एक कर्मचारी एक स्त्री-मरीज को ऑपरेशन के लिए स्ट्रेचर पर ले जा रहा था। वहाँ दो डॉक्टर और कुछ परिचारिकाएँ थीं। मैंने एक्स-रे विभाग भी देखा। उसमें बड़ी-बड़ी आधुनिक मशीनें रखी हुई थीं।

डॉक्टर-परिचारिकाएँ

अस्पताल में डॉक्टरों और परिचारिकाओं की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती थी। मरीजों की सेवा में व्यस्त परिचारिकाएँ दया की देवियों जैसी लगती थीं। मैंने डॉक्टरों को मरीजों की जाँच करते हुए और परिचारिकाओं को आवश्यक सूचनाएँ देते हुए देखा। किसी-किसी मरीज के पास दो-तीन डॉक्टर एकत्र होकर सलाह-मशविरा कर रहे थे।

रिश्तेदार

मरीजों के रिश्तेदारों के कारण अस्पताल में बड़ी भीड़ थी। अपने-अपने मरीज के लिए कोई फल तो कोई खाना लाया था। कुछ परिजन अपने संबंधी मरीजों के लिए उनका मनपसंद अखबार या कोई पत्रिका लाए थे। जिन मरीजों की हालत सुधर रही थी, उनके स्वजन प्रसन्न थे। गंभीर स्थितिवाले मरीजों के स्वजनों के चेहरों पर उदासी और चिंता थी।

उपसंहार

मुलाकात का समय पूरा होने पर घंटी बजी और मुलाकाती अस्पताल से बिदा हो लगे। मैं भी बाहर आया। अस्पताल की गतिविधियों को देखते-देखते पता ही न चला कि आधा घंटा कब और कैसे बीत गया। फिर मैं अपने घर के लिए रवाना हो गया।


ADVERTISEMENT