राष्ट्रीय ध्वज पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - राष्ट्रीय ध्वज में कितने रंग होते हैं - राष्ट्रध्वज का इतिहास - राष्ट्रीय ध्वज का महत्व - उपसंहार।

प्रस्तावना

प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक चिन्ह या प्रतीक होता है। जिससे उसकी पहचान बनती है। राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र के गौरव का प्रतीक होता है। ‘तिरंगा’ हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। हमारा देश भारत विविध जातियों, धर्मों और संस्कृतियों को देश है। इसी प्रकार हमारा ध्वज भी भाव प्रधान है। हमारे राष्ट्र के झंडे में तीन रंग हैं इसीलिये इसे तिरंगा कहते हैं। झंडे में तीन रंगों की पट्टियाँ हैं। जिनका आकार समान है। झंडे के सबसे ऊपर केसरिया रंग है जो वीरता और शौर्य को प्रकट करता है। बीच का हिस्सा सफेद रंग हा है जो पवित्रता, त्याग भावना एवं सादगी का प्रतीक है। नीचे के भाग का हरा रंग हमारे देश की हरी भरी धरती और सम्पन्नता को दर्शाता है। ध्वज की मध्य सफेद पट्टी पर अशोक चक्र बना है। नीले रंग के अशोक चक्र में 24 लाइनें हैं। अशोक चक्र धर्म, विजय एवं प्रगति का द्योतक है।


राष्ट्रीय ध्वज में कितने रंग होते हैं

राष्ट्र ध्वज में तीन रंग सुशोभित हैं, इसकी अभिकल्पना स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ ही समय पूर्व पिंगली वैंकैया ने किया था। इसमें केसरिया, सफेद तथा हरे रंग का उपयोग किया गया है। इनके दार्शनिक तथा अध्यात्मिक दोनों ही मायने हैं।

  • केसरिया- भगवाँ मतलब वैराग्य, केसरिया रंग बलिदान तथा त्याग का प्रतीक है, साथ ही अध्यात्मिक दृष्टी से यह हिन्दु, बौद्ध तथा जैन जैसे अन्य धर्मों के लिए अस्था का प्रतीक है।
  • सफेद- शान्ति का प्रतीक है तथा दर्शन शास्त्र के अनुसार सफेद रंग स्वच्छता तथा ईमानदारी का प्रतीक है।
  • हरा- खुशहाली और प्रगति का प्रतीक है तथा हरा रंग बिमारीयों को दूर रखता है आखों को सुकून देता है व बेरेलियम तांबा और निकील जैसे कई तत्व इसमें पाए जाते हैं।

इसकी प्रत्येक पट्टियां क्षैतिज आकार की हैं। सफेद पट्टी पर गहरे नीले रंग का अशोक चक्र अपनी 24 आरों के साथ तिरंगा की शोभा बढ़ा रहा है। जिसमें 12 आरे मनुष्य के अविद्या से दुःख तक तथा अन्य 12 अविद्या से निर्वाण (जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति) का प्रतीक है। ध्वज की लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार राष्ट्रध्वज हस्त निर्मित खादी कपड़े से ही बनाया जाना चाहिए।


राष्ट्रध्वज का इतिहास

सबसे पहला झंडा 1906 में कांग्रेस के अधिवेशन में, पारसी बगान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकत्ता में, फहराया गया। यह भगिनी निवेदिता द्वारा 1904 में बनाया गया था। इस ध्वज को लाल, पीला और हरा क्षैतिज पट्टी से बनाया गया, सबसे ऊपर हरी पट्टी पर आठ कमल के पुष्प थे, मध्य की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा था तथा सबसे आखरी के हरे पट्टी पर चाँद तथा सूरज सुशोभित थे।

दूसरा झण्डा 1907 पेरिस में, मैडम कामा तथा कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया। यह पूर्व ध्वज के समान था। बस इसमें सबसे ऊपर लाल के स्थान पर केसरिया रंग रखा गया। उस केसरिया रंग पर सात तारों के रूप में सप्तऋषि अंकित किया गया।

तीसरा झण्डा 1917 में, जब भारत का राजनैतिक संघर्ष नये पढ़ाव से गुज़र रहा था। घरेलु शासन आन्दोलन के समय पर डॉ एनी बेसेन्ट तथा लोकमान्य तिलक द्वारा यह फहराया गया। यह पाँच लाल तथा चार हरी क्षैतिज पट्टी के साथ बना हुआ था। जिसमें एक लाल पट्टी तथा फिर एक हरी पट्टी करके समस्त पट्टीयों को जुड़ा गया था। बाये से ऊपर की ओर एक छोर पर यूनियन जैक था, तथा उससे लग कर तिरछे में बायें से नीचे की ओर साप्तऋषि बनाया गया व एक कोने पर अर्ध चन्द्र था।

चौथा झण्डा तथा गाँधी का सुझाव 1921 में, अखिल भारतीय कांग्रेस सत्र के दौरान बेजवाड़ा (विजयवाड़ा) में, अन्द्रप्रदेश के एक युवक “पिंगली वैंकैया” ने लाल तथा हरे रंग की क्षैतिज पट्टी को झण्डे का रूप दिया। जिसमें लाल हिन्दु के आस्था का प्रतीक था और हरा मुस्लमानों का। महात्मा गाँधी ने सुझाव दिया इसमें अन्य धर्मों की भावनावों की कद्र करते हुए एक और रंग जोड़ा जाए तथा मध्य में चलता चरखा होना चाहिए।

पांचवा झंडा , स्वराज ध्वज 1931 झण्डे के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष रहा। इस वर्ष में राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने का प्रस्ताव रखा गया तथा राष्ट्रध्वज को मान्यता मिला। इसमें केसरिया, सफेद तथा हरे रंग को महत्व दिया गया जो की वर्तमान ध्वज का स्वरूप है, तथा मध्य में चरखा बनाया गया।

छठवां झंडा, तिरंगा को राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता 22 जुलाई 1947 को अन्ततः कांग्रेस पार्टी के झण्डे (तिरंगा) को राष्ट्र ध्वज के रूप में (वर्तमान ध्वज) को स्वीकार किया गया । केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया।


राष्ट्रीय ध्वज का महत्व

राष्ट्रध्वज की शान, प्रतिष्ठा, मान तथा गौरव सदा बनी रहे, इसलिए भारतीय कानून के अनुसार ध्वज को सदैव सम्मान के नज़र से देखना चाहिए, तथा झण्डे का स्पर्श कभी भी पानी और ज़मीन से नहीं होना चाहिए। मेज़पोश के रूप में, मंच, किसी आधारशिला या किसी मुर्ति को ढकने के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। किसी राष्ट्र का “राष्ट्रीय ध्वज” उस राष्ट्र के स्वतंत्रता का प्रतीक है। प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का एक अपना राष्ट्रीय ध्वज होता है। इसी प्रकार से हमारे देश का भी राष्ट्र ध्वज है, जिसे तिरंगा कहते हैं। भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा भारत का गौरव है और यह प्रत्येक भारतवासी के लिए बहुत महत्व रखता है। यह ज्यादातर राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर तथा भारत के लिए गर्व के क्षणों में लहराया जाता है।


उपसंहार

भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा कहते हैं, राष्ट्रीय ध्वज देश की स्वतंत्रता का प्रतीक होता है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में, तीन रंग विद्यमान हैं, इसके वजह से इसका नाम तिरंगा रखा गया है। पहले के राष्ट्रध्वज संहिता के अनुसार केवल सरकार तथा उनके संगठन के माध्यम से ही राष्ट्र पर्व के अवसर पर ध्वज फहराने का प्रावधान था। परन्तु उद्योगपति जिन्दल के न्यायपालिका में अर्जी देने के बाद ध्वज संहिता में संशोधन लाया गया। कुछ निर्देशों के साथ निजी क्षेत्र, स्कूल, कार्यालयों आदि में ध्वज लहराने की अनुमति दी गई।


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