हमारा प्यारा भारतवर्ष पर निबंध

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रुपरेखा : भारत के नाम - भारत हमारी सोने की चिड़िया - भारत की सभ्यता और संस्कृति - भारत ज्ञान-विज्ञान का केंद्र - भारत संस्कृति के गुण - कांग्रेस के नेतृत्व में स्वाधीनता - उपसंहार।

भारत के नाम -

भारत हमारी मातृभूमि, पितृभूमि, पुण्यभूमि है । भारत ने ही हमारा पालन-पोषण किया है तथा इसके तीर्थ हमारी आस्था और श्रद्धा के स्थल हैं। वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि मेँ स्थापित धर्म भारतीय-धर्म है। प्राचीन काल में यह देश जम्बू द्वीप कहलाता था। सात महान नदियों के कारण इसे सप्तसिन्धु कहा गया था। श्रेष्ठ जन का वास होने के कारण इसका आर्यावर्त नाम पड़ा। परम भागवत ऋषभदेव के पुत्र भरत के सम्बन्ध से भरतखंड और भारत नाम बन गया। भारत की गीत देवता भी गाते थे। विष्णु पुराण के अनुसार स्वर्ग में देवत्व भोगने के बाद देवता मोक्ष-प्राप्ति के लिए भारत में ही मनुष्य रूप में जन्म लिए थे ऐसा मानना था।


भारत हमारी सोने की चिड़िया -

एक समय था जब सभी देशों ने भारत को सोने की चिड़िया या स्वर्ण भूमि कहकर इसकी प्रशंसा किया है। भारत को मानवीय गुणों की प्रेरणा और शिक्षा का एकमात्र केन्द्र है। भारत को महामानव-समुद्र कहा जाता था क्यूंकि भारत में जो आता, वह इसका हो जाता। भारत का हिमालय हमारा भाव-प्रतीक है, तो गंगा हमारी माँ है। यहाँ प्रकृति का मनोहरता और सौंदर्य अलसा कर बिखर गया है। यह प्रकृति का लाडला देश है।


भारत की सभ्यता और संस्कृति -

भारत सभ्यता और संस्कृति का आदि साधन है। धर्म की जन्मभूमि होने के कारण भारत आध्यात्मिक देश है । यहीं मानव, प्रकृति के रहस्यों की जिज्ञासाओं के अंकुर उगे। यहीं परमात्मा की अमरता, एक अन्तर्यामी ईश्वर की सत्ता, प्रकृति और मनुष्य के भीतर एक परमात्मा के दर्शन किए गए। यहाँ धर्म तथा दर्शन के उच्चतम सिद्धांतों ने अपने चरम शिखर स्पर्श किए। भारत की आध्यात्मिकता और दर्शन की लहर बार-बार उमड़ी और उसने समस्त संसार को सिक्‍त किया।


भारत ज्ञान-विज्ञान का केंद्र -

विश्व गणित और ज्योतिष के लिए भारत का ऋणी है। अरब-राष्ट्रों ने ज्योतिष-विद्या भारत से ही सीखी है। भारत ने चीन को ज्योतिष और अंकगणित सिखाया। गणित में शून्य (0) का सिद्धान्त भी भारत ने ही विश्व को पढ़ाया है। आयुर्वेद, चित्रकारी और कानून भी भारतवासियों ने यूरोप को पढ़ाया है। मलमल, रेशम, टीन, लोहे और शीशे का ज्ञान भी यूरोप ने भारत से ही प्राप्त किया है।


भारत संस्कृति के गुण -

कर्म, त्याग और संयम भारत की धरोहर हैं । भोग संयम के साथ बँधा है तथा निर्मल शांति के द्वारा दै्य उज्ज्वल होता है। सम्पदा पुण्य कर्मों द्वारा मांगल्य प्राप्त करती है तो त्याग मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। समन्वय और सामंजस्य भारत और भारतीय-संस्कृति के विशेष गुण हैं। शक और हृण, यूनानी और तुरुक, मुगल और पठान एक दिन काल्पनिक होकर यहाँ आए और सब कुछ भूलकर यहाँ के ही हो गए । शक, हृण, कुषाण तो यहीं की संस्कृति-सभ्यता में रच-खप गये, किन्तु इस्लाम के मानने वाले आक्रान्ता, मुगल, तुर्क, पठान भारत पर राज्य करते हुए, यहां रहते हुए भी भारतीय संस्कृति को अपना न सके।


कांग्रेस के नेतृत्व में स्वाधीनता -

देश की स्वाधीनता के लिए जहाँ कांग्रेस के तत्त्वावधान में अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा था, वहाँ क्रान्तिकारियों ने अंग्रेज शासकों के दिलों में दहशत पैदा करने में कसर न छोड़ी । सुभाषचन्द्र बोस ने जापान और जर्मनी के सहयोग से भारत पर सशस्त्र आक्रमण ही कर दिया था। दूसरी ओर नौ-सेना में विद्रोह हो गया तो इधर, द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेज कौम राजनीति के मोर्चे पर विजयी होते हुए भी आर्थिक मोर्चे पर हार गई। अर्थ-संकट ने ब्रिटेन की कमर तोड़ दी। इन सभी कारणों से अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए विवश हो गए, किन्तु अंग्रेज जाते-जाते भारत के दो भाग कर गए। 15 अगस्त, 1947 को देश का विभाजन करके अंग्रेजी साम्राज्य की झंडा भारत से उतर गई। वही दूसरी और मुस्लिम बहुल प्रान्तों का स्वतन्त्र राष्ट्र पैकिस्तान बना । हिन्दुओं के लिए बस हिन्दुस्तान रह गया। भारत माता का अंग-अंग कटवाकर हमे आजादी मिली। इस खण्डित भारत को ही भारत माता को वास्तविक मूर्ति मानकर हमने इसकी पूजा-अर्चना शुरू किये। देश के नेता भारत की प्रगति और समृद्धि के लिए जुट गए तथा अपना संविधान-निर्माण कर 26 जनवरी, 1950 को भारत गणतंत्र दिवस घोषित हुआ।


उपसंहार -

आज भारत की आबादी एक अरब से अधिक हो गई है। शासन की नजर से भारत संघ में 28 राज्य तथा 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। स्वंतंत्र भारत में जनता का जीवन-स्तर गौरव से ऊँचा किया। जनसंख्या की दृस्टि से विश्व का द्वितीय महान्‌ राष्ट्र भारत में जनतंत्र सफल हुआ तथा यहाँ लोकतंत्र की आधार भूत मान्यताओं का विकास हुआ। आज भारत में विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई और भारत विकास के ओर आगे बढ़ रहा है। अंतरिक्ष-विजय में तो विश्व के महान्‌ राष्ट्रों में भारत की भी गिनती होने लगीउ है। आज पूरा विश्व स्वतंत्र भारत की महानता को स्वीकार करते हैं।


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